पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३१

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कांजी। - ३३२ काञ्चनार--काचौपुर कोष और एलवालुक दो दो तोले मृतकुमारी तथा हैं। मरने पर इनके शवको समाधि देते या नदौके केशराजके रस एवं अनाक्षीरमें तीन तीन दिन घोटते जनमें वहाते है। . हैं। माना धार रत्ती है। यह रस भी अनुपानके कांचनीय (सं० वि०) वजात, मोनेका बना हुवा। अनुसार सर्वरोग दूर करता है। कांचनीया (सं. स्त्री.) १ हरितान्न । २ गोरोचना। काञ्चनार (सं० १०) काञ्चनं तद्वर्ण ऋच्छति पुर्यः कोचि (सं० स्त्री० ) काचि-इन् । १रमना, करधनी । । काञ्चन-ऋ-प्रण। रक्षाकाञ्चनच, ज्ञान कचनार। २दाक्षिणात्य द्राविड़ राज्यको राजधानी । कांचीपुरदेखो। यह कषाय, संग्राही, व्रणरोपण, दीपन और कफ, काचिक (सं० सी०) कांचि संभ्रायां कन् । कानिक, वात तथा मूववच्छ नायक होता है। (राज निघण्ट्र) २ खेतकाक्षन वृक्ष, सफेद कचनार । कांची (सं० स्त्रो०) कांचि-डीए । १ रसना, करधनौ। कांचनारक (सं० पु.) कांचनार स्वार्थ कन्। इसका संस्कृत पर्याय-मेग्जा, सप्तकी, रसना, वाचनार देखो। सारसन, कांचि, कक्षा, कक्षा, सप्तका, सारपान, रसन काशनारगुग्गुल (सं० पु.) औषध विशेष, एक और बंधन है। इन पर्यायों में किसी किसीके मता. दया। कचनारको छालका चुर्ण ५ पल, पुण्ठी, नुसार विभिन्नता रहती है। एक बड़वाली यष्टिको योपल एवं मरिचका चूर्ण एक-एक पल, हरीतकी, कांची कहते हैं। फिर आठ लड़वानी मेखला, आमलकी तथा विभीतफाका चूर्ण चार-चार तोला, सोलह लड़वानी रसना और पञ्चौस लड़वाही करधनी वरुणकी 'छालका चूर्ण २ तोला, गुड़त्वक, पत्रक कालाप कहलाता है। २ द्राविड़ राज्यका राजधानी (वेजपात ) एवं एलाका चूर्ण एक एक तोला और ३ गुन्ना, धुंधची। सब चूर्ण के बराबर गुग्गुलु डास एकत्र मर्दन करनेसे कांचीनगर (सं० ली. ) काधोपुर देखो। यह औषध प्रस्तुत होता है। इसके सेवन से गण्डमालो, { कांचीपद (सं० लो०) काथ्याः पदं स्थानम्, ६ तत् । गलगण्ड और पदादि रोग नष्ट होता है। मात्रा अधनदेश, नितम्ब, करधनी बांधने को जगई । आप तोले तक है। (भावप्रकाथ) कांचीपुर-मन्द्राज प्रांतस्य चेंगलपट जिलेके कांची. काञ्चनाल (सं० पु०) काञ्चनं कांचनवणे प्रति, पुरम् तालुकका एक प्रसिद्द नगर। यह पक्षा० १२ काञ्चन-अल-अण्। १ खेतकांचन वृक्ष, सफेद कच 88"४५० और देशान्तर ७.४५ पू०पर अव. नारका पेड़।२ रग्वध पक्ष, पमिलतास । स्थित है। भूपरिमाण ५८५८ एकर है। यहां कांचनाद्धय (सं० पु.) कांचनं खणं पाहवयते स्पर्धत न्यायालय, कारागार, चिकित्सालय और विद्यालय खभासा इति शेषः कांचन-पा-हवे-क। विद्यमान है। पुरान-कांचीपुर अति प्राचीन नगर है। महा- वृक्ष।३ पद्मकेशर कांचनिका (सं० स्त्री०) गणिकारी युष्यवक्ष, अरनी। भारतमें उल्लेख मिलता है, कांचनी (सं० स्त्री०) कचते दोप्यते अनया, काचि “पसनद पहलवान् पच्छात प्रयवाद्रिविका श्वान् । शकतयासन काधीन सवरांय व पाव" (महामारत, पादि, Pow) ल्युट-डी। १ हरिद्रा, इलदो। २ गोरोचना। भनेक महाभात्रोके मतसे महाभारतमें कांची ३ स्वर्णक्षौरी, खिरनी। हिन्दीमें 'कांचनी नर्तकी और नामका उल्लेख रहते भी केवल उसी प्रमाण पर गायिकाको कहते हैं। निर्भर कर इसको महाभारतका समकालीन प्रति कांचनी-गोस्वामी सम्पदायविशेष। यह लोग नृत्य प्राचीन नगर का नहीं सकते। तामिच भाषाके गीत द्वारा जीविका निर्वाह करते और गैरिक वस्त्र पहनते हैं। आचार-व्यवहार धाधारण गांसायियोंसे । “कांचीपुर स्यपुराण में लिखा कि प्रसिद्ध चोखराम मिलता है। आवश्यक भानेसे यह विवाह कर सकते। कुचीतुङ्गने कांचीपुर नगर मापन किया था। तब १ नागकेशर