पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

VIII. 281.) काशीपुर ३३३ पुत्र पदण्डी तोण्डोरके समय इसकी विशेष समृधि: बाह्मणों को रक्खा था। ( (Indian Antiquary, दुई। पाचात्य पुराविद फागुसनने उनमत समर्थनकर लिखा है,-"पहले यह स्थान जंगलसे परिवत था। बौद्धगण अनुमान स्वृष्टीय श्य शताब्दको काशीसे उस समय यहां असभ्य कुरुम्बर रहते थे। ई०११वें ना कांचीपुरमें रहे थे। पाण्डा राजावोंके समय यहां या १२वें शताब्द पदण्डी चक्रवतोंने यह नगर पत्तन जैनधर्म प्रबल हो गया पार जेन राजावाने अधिकांश faati ( Fergusson's History of Indian and बौद्ध पधिवासियाको भगा दिया। (Wilson's Eastern Architecture. ) Mackenzie Collection, p. 40-41.) उक्त उभय मत समीचीन नहीं समझ पड़ते। शिल्पलिपिके अनुसार सिंहविष्णु ही कांचीपुरके वास्तिक यह कांचीपुर अति प्राचीन नगर है। प्राचीन प्रथम पनवराज थे, जो खुष्टीय ४थ शताब्दको राजल शिल्यलिपि और प्राचीन संस्कृत पुस्तक पढ़नेसे मना कर गये। वह वैष्णव थे। अनेक लोग अनुमान यास उपलब्धि आती, कि चोल राजाकि अभ्युदयसे करते, कि उन्होंके समय विष्णुकांचौके वरदराजवामी बहुत पहले कांचीपुरमें दक्षिणापथके प्रबल परा. पाविर्भूत हुये थे। क्रांत पतियों को राजधानी स्थापित हुई थी। पान- हृष्टीय इष्ट शताब्दको पुलिकेशी (२य ) ने एक- कत यह जैसा क्षुद्र नगर है, पूर्वकालको वैसा न था। वार पल्लवराज पर थाक्रमण किया। ५०७ शकमें उस समय कांचीपुर एक विस्तीर्ण ननपदमें विभक्त था। खोदित पुलिकेशीको शिल्यलिपि पढ़नेसे समझते कि स्कन्दपुराणके कुमारिकाखण्ड में लिखा है- पासवराज उनसे हार कांचीपुरके प्राकारमें छिप रहे थे। "ग्रामाचा नवलचच काचोपुर प्रकीर्तितम्। (२०१०) "भक्तान्तात्मवलोसिवलरजस्सन्छन्नवासीपुरः। प्राकारान्तरितप्रतापमकरोद्यः पजवानाम्पतिम् ॥". महाभारतके समय कांचीपुर सम्भवतः कलिङ्गके (५०७ सके खोदित ऐहोल थिपलिपि।) क्षत्रिय रानापों के अधीन था। उस समय भी यह खुष्टाय ७म शताब्दको चौन-परिव्राजक हुएन- स्थान द्राविड़ रान्यके अन्तर्गत नहुपा था। यही बात चुयाङ्ग कांचीपुर (कि-एन-चि-पु-जो) पाये थे। महाभारत, द्राविड़ और कांचौके स्वतन्त्र उल्लेखसे उस समय यह द्राविड़ राज्यको राजधानी था। अनुमित होती है। फिर दक्षिणापथके पाण्ड्य विस्तृति प्रायः २॥ कोस रही। बौद्ध, निग्रन्थ और राजानी ने इसे अधिकार किया। हिन्दू सौन दल प्रबल थे। १०० बौद्ध सङ्काराम और पाण्ड्य राजावों के पीछे ही कांचीपुर पल्लव ८०देवमन्दिर रहे। कांचीपुर धर्मपाल बोधिसत्वका राजावों के हाथ लगा। किसी समय पल्लव राजावों ने जन्मस्थान है। इसीसे बौद्ध इस स्थानको पुण्य भूमि द्राविड़ और दक्षिणापथका अधिकांश जीत इसी समझते और नाना देशोंसे बौद्ध याची यहाँ पा कांचीपुरमें राजधानी स्थापित की थी। वौद्ध और जैन पंहुचते थे। धर्म प्रबल पड़ते भी तत्कालीन कांचीपुरके पावरान अनेक लोगोंके अनुमानसे चीन-परिव्राजकके हिन्दू धर्मावलम्बी रहे। वृष्टीय ४थे और श्म शताब्दकी भागममकाल यहां बौडराज राजत्ल करते थे। किन्तु शिल्पलिपि उक्त विषयका साक्षा देती है। उता शिल्प यह वात ठीक नहीं । हृष्टीय ७म शताब्दको शिल्यलिपि लिपि पढ़नेसे समझ पड़ता, कि उस समय और उस पढ़नेसे समझ पड़ता कि उस ..समय भी कांचीपुरमें से पहले कांचीपुरमें जैन धर्म भी विशेष प्रबल था। वैष्णव धर्मावलम्बी पल्लव राजावोंका राजल था। तत्कालीन पक्षव राजावो ने वेदन्न ब्राह्मणों को पूर्वतन पन्नव राजावोंके वैष्णव होते भी खुष्टीय अनुशासन द्वारा जो ग्राम दिये, उन सकल स्थानिमि दम शताब्दकी पिल्यन्तिपिमें कांचीपुराधिप नरसिंह ब्राह्मणों के अव्यवहित पूर्व जैनोंके अधिकार रहे। वर्माने पपनको शव वा महेश्वरोपासक लिखा है। सम्भवतः हिन्दू राजावाने जैनीको निकाल उन स्थानों में सम्भवतः उसो समय यहा शवधर्म प्रबस हुवा था। Vol. IV, 84