पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३३

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३३.४ काचौपुर वृष्टीय टमः शताव्दको चोलराज अञ्चोन्तुङ्गने *। संस्कार कराया था । १४३८ शकले खोदित अनुयामन- कांचीपुर पधिकार किया। तत्पुत्र प्रदण्डी चक्रवत्तौके पत्र पढ़नेसे समझते कि कृष्णदेव रायने कांचीपुरके समय कांचीपुर तोण्डोरमण्डन्तको राजधानी हुवा। प्रसिह वरदराज स्वामोके मन्दिर व्ययको ११ मो रुपये खुष्टीय १०म पोर ११ शताब्दके मध्य चालुक्य आयके विशरा, तिरुप्य, कदाह, उपंथगान पौर रानावांने कांचीपुर लेनेको चेष्टा की थी। विहलण गोविन्दवदी प्रभृति पनेक ग्राम प्रदान किये। कवि विरचित विक्रमाचरित पुस्तक पढ़नेसे समझ १६४४ ई. को विजयनगर यवन-कवनित होने पड़ता कि चालुक्यराज प्राइवमलने (१०४०-६१ई.) पर कांचीपुर गोन्नकुण्डावाले मुसन्धमान राजाके हाथ चोलराजधानी कांचीको आक्रमण किया। वह युवमें लगा। कुछ दिन यौछ यह अस्कदुरमें यामिल हुवा। जय पातमी चोल राजावोंको स्ववशम ला न सके। २०५१ ई०को लार्ड क्लाइवने फरासीसियोक हायने उनके आदेश-क्रमसे तत्पुत्र विक्रमादित्य चालुक्य कांचीपुर पधिकार किया था। किन्तु उसी वर्ष राजा कई बार कांचीपर चढ़े। माहवको छोड़ देना पड़ा। १७५० ई.को फरामो- (विलपळव विक्रमाश्चरित २०६१, ६६३२२-२८) सिनि यह स्थान पाक्रमण कर भाग गायो यो। मालूम पड़ता कि उसी समय कांचौका कोई | दूसरे वष अंगरेजो सैन्य कांचीपुर शेड़ मन्द्रासमें कोई अंश पनव राजवोंके भी अधिकारमें था। कारण फरासीसियों पर चढ़ा। किन्तु फिर लौटकर फरासी- शिल्पलिपि और वितणका ग्रन्थ पढ़नेसे समझ पड़ता सियोंके पवरोधसे इसे रहार किया। कांचीपुरसे कि विक्रमादित्यने पुत्र विनयादित्यसे कांचौके राज्य अदर पुन्नन्तर स्थानपर अंगरेजों और मुमच्चमानमि पल्लवको विपुलवाहिनी आक्रान्त और पदस्त हुयी। एक घोरतर युद्ध हुवा था । उममें हैदामचौने (१०६. १०७४ शकको एक शिल्पन्तिपि, खोदित है कि ई०) जनरन्न वैलीके सैन्य व्युहको कैद किया। उस समय (वृष्टीय १२२ शताब्द) काकत्वराज कांचीपुर एक प्राचीन महातोय है। भारतवर्ष की रुद्रदेव कांचीपुर शासन करते थे। (Ind. Anti जो सात पुण्यनगरी दर्शन करनेसे जीव पनायास quary, XI. 19.) सिहि पा सकता, उनमें इसका भी नाम मिलता है,- १५य शताब्दके मध्यकाल उत्कलके केशरीवंशीय "पयोध्या नवरा माया बायो काबी अवन्तिका। पुरी द्वारावती देव मौका मिचिदायिका" एक रानाने कांचीपुर लूटा था। फिर १४७७ ई०को बहमानी वंशीय मुसलमानराज मुहम्मदने कांचीपुर तोड़चतन्त्र मतसे यही तीर्थ विखरूप जीत अपना अधिकार जमाया। इसी प्रकार यह महादेवका कटिदेय है,- कुछ काल बहमानियों के शासनाधीन रहा। उसके “नामिमूले नमानि पयोध्यापुरी मास्थिता । वाघोपीठ कोटोदेश यौहपृष्ठदशक" पोछे विजयनगरले राजा नरसिंह रायने वहमानियों के (बौरववन, रन उसास) इाथसे इसे छोड़ाया। उन्होंने बोरवसन्त रायको नरसिंह केवल तीर्थ ही नहीं, कांचो महापौठस्थान है। कांचीपुरमें शासनकर्ताके पद पर बैठाया। रायके पुत्र कृष्णदेव राय १५०८ ई० को राज्याभिषित वहनीलतन्त्रक मतसे यहां: कनकांची देवी विराजतो हैं, हुये थे। वह १५१५ ई.को यहां पाये। उन्होंने "कायांकनकाचौखादवन्तामतिपावनो।" कांचीपुरके विख्यात यतस्तम्भ पौर कई शिवमन्दिरका (इनौलदव म पटन)।

  • फाप्सन प्रभति पायात पुराविदोके नतसे खुटोय ११५ वा १२५

कांचीपुर नगर दो भागमे विभक्त है-विष्णु- यवान्दक मध्य कुलोद चोलराजका राजत्वकाल रहा। किन्तु इचियापथके प्रसिद्ध उददीश्वरमाारम्य नामक पुस्तक देखते खुष्टीय रम शताब्दयो वा कांची पोर शिवकांची। शिवकांचीमें शिवमन्दिर और विष्णुकांचौमें विशु मन्दिर प्रवखित है। .. इन या राजत्व करते थे।