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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३३८

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काठमाण्डू ३३९ 1 खेल औषधर्म इन्द्रायणके अभावसे डाल दी जाती है। लवणटोला और राजमवनका निकटवर्ती स्थान हो इसका अपर नाम 'कारित है। अधिक प्रसिद्ध है। काठमाण्डू खाधीन नेपाल राज्यको राजधानी। बाघ नगरके मध्यभागमें दरबार या राजभवन अवस्थित मती और विष्णामती नदीके सङ्गम स्थलपर नागार्जुन है। यह देखने में अधिक सुन्दर न होते भी बहुत बड़ा गिरि अवस्थित है। इसी गिरिके पाददेशसे आध कोस है। इसका कोई कोई अंश बहुत प्राचीन ब्रह्मदेशीय दूर उपत्यकाके पचिमांशमे काठमाण्डू नगर है। मन्दिरादिक पाकारका बना है। इस प्रासादके मोटे इसका प्राचीन नाम 'मञ्ज पत्तन' है। देशीय लोगों के मोटे उत्को शिल्प देखने में बहुत अच्छे लगते हैं। विश्वासानुसार पूर्वकालको मञ्जबी नामक किसी प्रासादक मध्यका दरबार बने २० वर्ष हुये। वुमने यह नगर स्थापन किया था। राजधानीको भवनका पाकार कुछ कुछ चतुरस्त्र पौर उत्तर ओर । भूमि चतुरन वा त्रिकोप अथवा वृत्त अर्धवृत्त कोई नगरमुखको उन्म व है। इस ओर प्रत्यञ्च तन्नि नियमित आकार विशिष्ट नहीं । हिन्दू इसका भाकार नामक मन्दिर अवस्थित है। दक्षिए और शेष भागमें देवीके खडकी भांति बताते हैं। फिर बौच निवासी मन्त्रणाह, वसन्तपुर नामक अहानिका पौर इसके प्राकारको मञ्जुश्री नामक नगरस्थापयिताको नूतन दीर्घ सभाग्रह (दाबार) है। पूर्वमें उद्यान तलवारसे मिलाते हैं। इस कस्थित खनका मुष्टि नगर. और अखशाला विद्यमान है। पविममें प्रधान तोरण- की दक्षिण और बाधमती तथा विष्णुमतीका सङ्गमस्थल हार है। इसके सम्मुख नगरका प्रधान पथ निकला और नगरको उत्तर भोर 'सिम्पाले' नामक उपकण्ड है। पथके पाचमें हिन्दुवोंके अनेक मन्दिर हैं। स्थान इसका सूक्ष्म अग्रभाग है। मनुश्रीको सभाएइके उत्तर-पश्चिम 'कोर्ट' वा युयविग्रहादिका तलवारको मूठमें जैसे एक खण्ड वस्त्र छत्राकार मन्त्रणागार है। इसी पइये १८४६ ई० को. भीषण वेष्ठित रहता, उक्त तिम्माले जनपद भी वैसे ही देख नरहत्याका आदेश निकला था। राजभवनके पश्चिम पड़ती है। कचहरी अदालत और सम्म,ख अनेक सुन्दर देव- प्रचात पक्षमें प्राय: ७२३ ई० को काठमाण्ड गुण मन्दिर हैं। इन मन्दिरोमें घनेक .अति उच्च और कामदेव हाराः पतिष्ठित हुवा था। नगर उत्तर बहुतल विशिष्ट है। मन्दिरों का उत्को- कारु, दक्षिणको ही अधिक दीर्घ, कोई भाध कोस होगा। चित्र और स्वर्णादि वर्णके मुन्नम्मे का काम बहुत अच्छा इसे काठमाण्डू बहुत दिनसे नहीं कहते। १५८६ है। अनेकोंके समस्त हारों पर पीतल या तावका ०को राना लक्ष्मणसिंह मनने नगरके मध्य मुत्तम्मा चढ़ा है। मन्दिरों के कारनिसमें बहुतसी संन्यासियोंके लिये एका काष्ठमय वृहत् मन्दिर वा पतली घण्टियां कटकती हैं। कुछ जोरसे.इवा चलने साधुमण्डप निर्माण कराया। यह मन्दिर आज भी पर सब घण्डियां टन टन बजते पति मधुर शब्द होने बना और इसी कार्य में लगा है। इसी काष्ठमण्डपस लगता है। इन मन्दिरोम कईके द्वारोंपर प्रस्तरके 'काठमाण्डू' नाम निकला है। पहले यह नगर सिंहादिको मूर्ति उभय भोर स्थापित है। प्राचौर वेष्ठित था। प्राचौरके गावमें बीच बीच अनेक सरदारांने आजकल शहरमै सुन्दर सुन्दर अन्दर तोरण रहे। आजकाल स्थान स्थान पर अट्टालिका बनवा शोभा बढ़ायी है। प्राचीरका भग्नावशेष मान मिलता, किन्तु पधिकांश ५स नगरमें एक प्रकार दूसरे मन्दिर भी देख स्खलमें कोई चिह्नतक देख नहीं पड़ता। ३२ तोरण पड़ते, जो स्तम्भपर गुम्बज रख बने हैं। इस विद्यमान रहते मी कवाटका अभाव है। श्रेणीके मन्दिर विशेष कारु कार्य न रहसे भी देखने में काठमाण्डू बुद्र क्षुद्र ३२पलियों या टोलों में विभक्त वहुत परिष्कार और परिछात्र है। पूर्वोक्त तलेजू है। उनमें भासमान, इन्द्रचक, काठमारह टोला, मन्दिर देखने में ब्रह्मदेशोय 'मन्दिरसे. मिलता पौर