काठिन्य-काठियावाड़ काठिन्य (सं० ली०) कठिनस्य भाषः, कठिन-प्यञ् । बरड़ामें नबी बन्दरके समीप समुद्रमें जा गिरी है। १ कठनता, काड़ापन। २ निष्ठुरता, बेरहमी। इसकी धाराका परिमाप ११. मौल है। नदोके दोनों "काठिन्यस्य परीक्षा पा कर्मकतामपि।" पोर खेती होती है। दूसरी नदी भाज', माकू, भीगाब (राजतरहियो ५४४) और शतरंजी है। शतरंजीका वन्य दृश्य सुप्रसिद्ध है। काठिन्य फल (सं० पु.) काठिन्यं फले यस्य, बहुब्रो । इंसस्थान, भावनगर, सुन्दरी, बवलियाबी और कपिस्थवक्ष, कैथेका पेड़। धोलेरा लवणात जलके खात हैं। काठियावाड़ (सौराष्ट्र) बम्बई प्रान्तका एक प्रायो जषामण्डल के उत्तर-पूर्व कोणपर वैयत बन्दर है। होप। यह अचा. २०४१ एवं२३८. और पिराम, चांच, थाल, डिज, बेयत और चांक प्रधान देशा० ६८.५६ तथा ७२२० पू० के मध्य अवस्थित होपोंमे गण्य हैं। नव और भेडस छोटे छोटे मोल हैं। है। काठियावाड़ गुजरातशा पश्चिमांश है। यह प्रायो दक्षिण-पश्चिम कोणपर खाराबोड़ नामक लवणा- होप २२० मोल लम्बा और १६५ मोल चौड़ा है। गार है। पारबन्दरका पत्थर अच्छा होता है । काष्ठ क्षेत्रफल कोई २३४४५ वर्गमील होगा। लोकसंख्या बहुमूल्य नहीं । मारियल और जंगन्ती खज़र बहुत है। . २५ लाख से अधिक है। इसमें १२४५ वर्ग मोल भूमिपर पहले काठियावाडमें सिंह सवत्र देख पड़ते थे, किन्तु गायकवाड़ राज्य करते, १२८८ वर्ग मौल अहमदा भब गौर वनके अतिरिक्त दूसरे स्थानमें नहीं मिलते। बाद जिलेके अधीन पड़ते, २० वगमोल पोर्तगीज़ काठियावाड़का जलवायु प्रसन्नताकारक और वास्था- राज्यमें लगते और २०८८२ वर्गमोल पर पन्यान्च कर हैं। दक्षिण भागमें सप्त वायु अधिक चलता है। देशी राजा अपना प्रभुत्व रखते हैं। इन राजावोंके काठियावाड़में पित्तप्रकोपसे ज्वर पा जाता है। जूना- ' राज्यको एक एजेंसी १८२२ई में बनी। काठियावाड़ गढ़ और राजकोट में वृष्टि अधिक होती है। ऐनेसी ४ प्रान्तमें विभक्त है-झालावाड़, हालार, पूर्वतन समय काठियावाड़में ब्राह्मणोंने अपना सोराठ और गोहेलवाड़। इस एजन्मोके अधीन राज्य प्रभाव बहुत बढ़ाया था। जनागढ़ और गिरनारके बीच १८६३ ई० से ७ श्रेणियों में निबद्ध है। प्रथम ८, अशोकको शिलालिपि (२६५-२३१ पूर्व दृष्टाब्द) द्वितीयके 4, ढतीयके ८, चतुर्थ के 2, पंचमके १६, षष्ठ मिन्नती है। ट्रावोने सारओस्टोस (Saraostos) के मोर सप्तम श्रेणीक ५ गज्य हैं। सम्भवतः सौराष्ट्रको ही लिखा है। ऐसा होनेसे सोदीय काठियावाड़ प्रायोहोप वर्गाकार है। यह अरब राजावाने खष्टपूर्वाव्द १९०-१४४को काठियावाड़ सागरमें कच्छ और गुजरात समुद्र तटके मध्य विद्य जीता.था। अलेकसेन्दराके बणिक भी ई० १म तथा मान है। इसके आकार प्रकारसे समझ पड़ता कि श्य शताब्दको इससे परिचित थे। किन्तु उन्होंने जिन पहले यह अग्निहोरण करनेवाले होपोंका एक स्थानोंके नाम. लिखे, उनके मिलान में विहान् उलझ समूह था। उत्तरीय तटपर रानका उथला जल और पूर्वका लवणात भूमि है । ई० १३ वै' और.१४३ काठियावाड़का प्राचीन इतिहास बहुत कम शताब्दको काठियोने कच्छसे था यहां आश्रय लिया मिलता है । सम्भवतः क्रमागत मयूर, यूनानी प्रार और १५ वें शताब्दको इसे अधिकार किया। चवप इसके अधिपति रहे। फिर गुप्तान सेनापतियां पर्वत निम्नश्रेणीके हैं। झालावाड़के पश्चिम ठांगा द्वारा यहां थोड़े दिन राज्य किया। सेनापतियांने और माण्डव तथा हालारके कुछ क्षुद्र पर्वतोंको छोड़ राजा हो अपने प्रधानों को वक्षमी नगर में (भावनगर इस देशंका उत्तरीय विभाग चपटा है। किन्तु दक्षिणमें से १८.मोन दूर ) रखा था। गुप्त साम्राज्य का पतन गोधासे गीर पर्वत बराबर गिरनार तक चला गया है। नसे वलभी राजाओंने अपना अधिकार कच्छ तक -भाड़र प्रधान नदी है । यह माण्डव पर्वतसे निकल बढ़ाया. और ४७० तथा ५२०. ई० को काठियावाड़में Vol. IV. 86 पड़े हैं।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४०
दिखावट