। ३४२ काठियावाड़ प्रभुत्ल चलानेवाले मेरोको नीचा देखाया। गुप्तसेना बनानेके लिये उन्होंने प्राक्षा दी थो। उस कारखानिको पति भट्टारक वल्लभी राजवंशक प्रतिष्ठाता थे। श्य पोतंगोजोंने किले में बदल डाला । १५३७ ०को उन्होंने ध्रुवसेनके समय (६३२-४० ई.) चीन-परिव्राजक छजसे वहादुरकै प्राण लिये थे। आज भी डिजके द्वीप हिउएन चिङ्गः वसभी ( व-ल पो ) और सौराष्ट्र और दुर्गम पोतंगोनो का अधिकार है। १५७२ ई०को (सु-ल-च) आये । वह लिखते हैं,-"वहांके अधि अकबरके विजय करने पोछे दिल्लीसे राजप्रतिनिधि वासी सामान्य हैं। वह लिखना पढ़ना नहीं जानते, श्रा काठियावाड़ शासन करते थे। फिर उनके स्थान किन्तु समुद्र निकट रहनेसे उन्हें लाभ है। वह व्यव पर महाराष्ट्र आये। महाराष्ट्र १७०५ ई० को गुजरात साय और विनिमयमें बने रहते हैं। उनकी संख्या पईचे और १७३० ई. तक पूर्ण रूपसे राजा बन अधिक है। वह धनी है। बौद्ध परिव्राजकों के अनेक बैठे। फिर ५० वर्ष तक काठियावाड़में छोटो छोटी विहार विद्यमान हैं। सड़ाइयां होते रहौं। १८ वें शताब्दके अन्तिम भागमें विदित नहीं वल्लभौका पतन कैसे हुवा । सम्भवतः बड़ोदा गायकवाड़ अपने और अपने प्रभु पेगवाके सिन्धुसे मुसलमानोंने आकर इसे दबाया था। फिर लिये कर एकत्र करनेको प्रति वर्ष सेना भेजते थे। राजधानी अनहिलवाड़ उठ गयो (७४६-१२९८ ई०)। पश्चिम और उत्तर गुजरात राजा उनके अधीन थे। उस समय अनेक सामन्त राजा बने । काठियावाड़ के १८०३ ई०को निबल राजावों ने बड़ोदाके रसोडण्डसे पश्चिम जेठवासोका वक्ष बहुत बढ़ा था। १९८४ ई० को प्रार्थना की कि वह उनको रक्षा करते। राजा मुसलमानोंने अनहिलवाड़ लूटपाट १२९८ई० को अपने अपना राज्य ईष्ट इण्डिया कम्पनीका देनेपर राजी थे । राज्य में जोड़ा। अनहिलवाड़को राजावोंने झालावों को १८०७ ई० को सन्धिके अनुसार काठियावाड़ के राजा उत्तर काठियावाड़में बसाया था। गुहेल ( भब पूर्व कर देते हैं। अंगरेज सरकार करका रुपया वसून काठियावाड़में रहनेवाले) १३ वे शताब्दको उत्तरसे करती और बड़ोदाको भरती १८१८ ई० मुसलमानों के सामने हटते आये और अपने लिये सतारा-पादेशके अनुसार काठियावाड़में अंगरेजो को नये स्थान अनहिलवाड़के पतनी जीत पाये । कच्छकी पेशवाका बल मिला था। पत्थर काटकर बनी हुई राह पश्चिमसे जाडेजावों और काठियो का श्रागमन बोडौंको गुफा और मन्दिर जूनागढ़में विद्यमान हैं। हुवा था । १०२६ ई० को महमूद गजनवी हारा शतरंजा पर्वत और गिरनार पर जैनों के मन्दिर दक्षिण काठियावाड़में सामनाथकी लूट खसोट और खड़े है। घुमलीमें किसने की प्राचीन स्थानों का ११९४ ई० को पनहिलवाड़ का विजय काठियावाड़के वसावशेष देखते हैं। मुसलमानी पाक्रमणोंको प्रस्तावना था । १३२४ ई० को काठियावाड़के बहुतसे आदमी बम्बई और जाफर खान् ने सोमनाथका मन्दिर तोड़ा। वह गुज अहमदनगरमें रहते हैं। समुद्र तटके सुसलमान से गतके प्रथम मुसखमान राजा थे। उन्होंने १३८६ दक्षिण अफरीका तथा नेटाल जाते हैं। लोगों १५३५ ई. तक प्रभुताके साथ राज्य किया।१५७२ हिन्दुवोंको संख्या अधिक है। भूमि दो प्रकारको है- ई० को अकबरने गुजरात जीता था। काठियावाड़ के लाल और काली। लालमें उपज कम होती है। सरदार अहमदनगरके राजावो के नीचे रहै। उन्होंने | काली और उपजाऊ भूमिको 'कामपाल' कहते हैं। -भाड़र नदीको बगलमें महुवा और लिलियाक व्यवसाय बढ़ा मांगरोल, वरावाल, डिज, गोधे और .पास बहुत उत्तम स्थान है। यहां उत्तम फल और कम्खे बन्दरको उन्नति की। शाक होता है। गको उपज अधिक है। चोरवाड़का कोई १५०० ई. को समुद्र तट पर पोतंगीजों का भय बढ़ा था। हुमायके वेटे बाबरसे हार बहादुर पान प्रसिद्ध है। झालावाड़के उत्तरीय और पूर्वीय डिझमें जा छिपे। फिर पोतंगीजों को एक कारखाना प्रान्तमें कई बहुत उपजती है। हालारमें ज्वार, ।
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