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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४७

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हृष्टपूर्वान्द ७ ६१ ११ से १३ " ... ... . ३५ कारावायन-कातन्त्र चत्वारः अभव्यान्त नपाः कारावायना दिया। भान्याः प्रथतमामन्तायत्वारिमन पच च । वसुदेव तेषां पर्यायकाचे तु नपोऽन्य हि भविषति । भूमिमिव कारावायन मनोज व्य सशर्मा प्रसाधनम नारायण ५३ से ४१ मसापुराणमें भी लिखा है- सुशर्मा ४१ से ३१ "चमात्यो वसुदेवन्त प्रसधा शवनी भूषः ॥ ३॥ (R. Sewells Dynaties of Southern India, p.7). देवभूमिमखोत्सादा गौरव भविता: सपः । सुथर्माको मार उनझे किसी अन्धुजातीय मृत्यने भविष्यति समा राजा:नव कारावायनी नृपः ॥ ३२ राज्य लिया था। भमिमिव मुततस्य चतुर्दश भविष्यति । कारावीपुत्र (सं० पु.) करावस्व प्रयत्वं नारायः सतक्षस्थ मविता सादगे तु.२३ पुमान् काराव्यः स्त्रियां डीप यलोप: कारावी; काराव्या सुशर्मा तन मृतथापि भविष्यति दर्शन। इत्ये ते गाभत्यान्त मनाः कारावायना भूपाः । ३४ पुत्रः ६-तत्। कराववंशीय एक पि । चत्वारिंगत्पर व भोपानीमा वसुन्धराम्। काराशेय (संत्रि०) कारावस्य इदम्, काराव-छ। रते प्रयत सामन्तर भाषिया धार्मिक्षाय थे। करावव'गीयोसे सम्बन्ध रखनेवाला। येवा पर्यायकाचे नुभूमिरान्धान गमिष्यति ।" काराव्य (सं० पु.) करावस्य प्रययं पुमान्, कराव- (मास्यपुरा २८९०) या । १ करावपुवा २ करावगीय। sक्त ब्रह्माण्ड और मन्मपुराणके वचनानुसार ३ कराव सम्बन्धीय। समझते कि वसुदेव प्रथम शुगराज देवभूमि के काराव्यायन (सं० पु०) काराव्य फक् । अमात्य थे। पौछ उन्होंने अपने प्रभुको मार राज्य यविधीय : पा. सिया। उनके वशीय राजा 'शङ्गमय' नामसे भी करावशीय। मसित हुये। प्राण्ड, मन्मय और विष्णुपुराणक / कात् (सं• अव्यः ) कुमित प्रतति अनेन, कु-मत मतसे कारावायन राजावाका गजवकाल सब मिला किय कोः का-देशः । तिरस्कार, फटकार। "यन्मदेवईमान गुरुः सदसि कानुनतः । (मायक्त (108) कर ४५ वर्ष था। इसमें वसुदेवने, वसुदेवके मुन्न कान (हिं. पु.) १ अस्त्रविशेष, एक कैंची। इससे भूमिमित वा भूतिमिलने १४, भूमिमिवके पुत्र भेड़ोंके वाल कतरे जाते हैं। २ सुरगका काटा। नारायणने १२ और नारायणके पुत्र सुशर्माने १० वर्ष मात्र राज्यशासन किया। किन्तु बीमागतका कातना (हिं. क्रि०) कार्याससे सूत्र प्रस्तुत करना, कईसे सूत बनाना। कातनेका यंत्र रहंटा कहाता है। देखते कारावशीय राजाका राज्य ३४५ वयं चला कातंत्र (सं० को०) कु ईषत् तंत्र पस्य, कोः कादेशः। था। यधा- कलाप व्याकरण । शर्मवर्मा इसके साचनकर्ता थे। "r'ला देवभूति करावीऽमात्यस्तु शामिनम् । वृहत् कथासारमें इस व्याकरपके सालन सम्बन्धपर सहरियते राज्य वसुदेवी महानि:16 लिखा है, एक समय कार्तिकेयने शमवर्मा प्रति तसा प्रवस्तु ममिवस्तस्य नारायणः मतः । अनुप्रद कर दर्शन दिया। कुमारको कपासे गर्मवर्माके बारावायना मे भभि चत्वारियध पक्ष । मुखमें सरस्वतीका पार्विभाव हो गया। फिर कार्ति- यतानिवापि मोचान्ति वर्षायाम कलीयुगे केयने छहो मुखये 'सिहोवर्णसमामाया' सूत्र उच्चारण (भागवत, १३०१०) पायास्य पुगविदोंने कारावायन राजावोंका + उस पथ मन्यका नाम प्राण्डपुरापने मकसै सिक' था। शासनकाल इस प्रक्षार स्थिर किया है,- किन्नु मस्यपुरायो थिए, विषपुरायमै 'शि और भारतम प सिक्षा। भागवत पौर विषपुरापके मनसे 'देवमति' नाम था। 1