पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३४८

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कातर-कात्यायन ३४८ 'किया था। शर्मवर्मा भी सुनते ही उसका परवर्ती सूत्र | काति (सं० स्त्री०) १ स्तव, सारीफ। (वि०) पढ़ने लगे। कार्तिकेयने इससे सन्तुष्ट हो शर्मवर्माको २ अभिलाषी, खाहिशमन्द। उता व्याकरणप्रणयन करनेके लिए आदेश दिया और कातिक (हिं.) कार्तिक देखो। 'कातंत्र' तथा 'कलाप' नाम निर्देश किया। कलाप देखो। कातिको (हिंस्त्री० ) कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा, कार्तिक विलोचनदासने 'कातंत्रपत्रिका' नामी एक टीका सुदी पूरनमासी, कतको। बार्तिको देखो। बनाई है। कातिब (अ.पु.) लिपिकार, लिखनेवाला। कातर (संयु०) क जलं पातरति, क-पा-त बच्। कातिल (अ० पु.) हन्ता, मार डालनेवाला। १ मत्स्यविशेष, एक मछली। यह मधुर,गुरु और काती (हिं. स्त्री०) १ कैंची, कतरनी। २चाकू, विदोषन्न होता है। राजनिघण्ट। छुरी। ३ छोटी तलवार। २ एक ऋषि । (त्रि०) ३ व्याकुल, घबराया हुवा। कातीय (सं० वि० ) कात्यायनस्य इदम्, कात्यायन-छ ४ मीत, डरा हुवा। ५ विवश, लाचार । ६ धवन, फकी वा लुक १ कात्यायन-सम्बन्धीय। (पु.) डावांडोल। २ कात्यायनके छात्र। कातर (हिं० पु.) १ जबड़ा। (स्त्री०) २ कोहका कात (पु.) के जलं प्रतति सातत्येन गच्छति, तख्ता। यह कोरड़की कमरमें लगता और चारी क-प्रत-उन्। कूप, कूवां। ओर चला करता है। कोलइ पैरनेवाला इसी पर बैठ काढण (स• लो०) कु कुमित शुद्र वाढण' को: कर बैल हांकता है। कादेशः। १रोपिषटण, एक खुशबूदार घास । कातरता (सं० स्त्री०) कातरस्य भावः, कातर-तल । कातोली (सं० स्त्री०) कोहलसुरा, एक शराब। यव, १ व्याकुलता, घबराहट। २ भोरता, डरपोकपन। माष आदिक पिष्टसे उस्थित मुरा 'कातीली' कातराचार (सपु०) नृत्यका एक हस्तक, नाचकी कहाती है। एक चाता कात्कत (सं०नि०) पपमानित, वेइज्जत किया हुवा। कातरायण (स• पु०) कातरस्य ऋषेरपत्वं पुमान्, कात्नेय (सं० वि० ) कत्तो रिदम्, कनिटकन् । कातर-फा । कातर ऋषिके पुत्रादि। कत्यादिभ्यों टका । पाभरा। कातोरति ( स्त्री) कातरस्य उति: ६-तत् । कवि-सम्बन्धीय, तीन छोटी चीजोंसे सम्बन्ध कातर व्यक्तिका वाक्य, डरपोककी बात । रखनेवाला। कातयं (सं० लो०) कातरस्य भावः, कातर स्थन । कात्यक्य. (सं• पु० ) कस्य-गवुल् स्वाथै पञ्। अग्नि- कतरता, डरयोकपन। विशेष। (निरुत ) कातल (सं.पु.) कातर एव रस्य लः। १ मत्य- कात्य (सं० पु.) कतस्य ऋषगौवायत्यम्, कत-य । विशेष, एक मछली।। २ एक ऋषि। कात्यायन ऋषि। काततायन (म. पु०) कातलस्य ऋषेरपत्य पुमान्, कात्यायन (० पु०) कतस्य गोत्रापत्यम, कत-धन: कासल-फक् । १ कातल ऋषिके पुत्रादि। २ मत्स्य फंक। १ पति प्राचीन ऋषिविशेष। यजुर्वेदीय विशेषका बच्चा। तेचिरीय पारण्यक (१२४ा२२), सांख्यायन आरण्यक काता (हिं. पु.) १ चाकू, कुरा। इससे बांस काटते (८१०), पाखलायन · श्रौतसूत्र (१२२१२१५), या छीनते हैं। २ सूत्र, डोरा। रामायण एवं पाणिनिको प्रष्टाध्यायी (INR)में कातावारी (६. स्त्री०) जहाजको एक काँडी। भी इनका नाम मिलता है। यह कात्यायन गोत्र- पसस्ती रहती और जहाजमें उड़ी धरनोंपर लगती प्रवर्तक समझ पड़ते हैं। स्वान्दका नागरखएड, १०८१६ देखो। हैं। इसी पर तख्ते जड़ते हैं। २ धर्मशास्त्रकारक एक मुनि। धर्मग्रन्यके पाठसे Vol. IV. यह 88