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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३६०

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कात्यायन पार पराकमें वर्गकामका अधिकार है। उल्न मात्र बड़हके पीछे महावत कर्तवा है। नवरात्र में विकद्र, भेदका कथन है। पत्रिचतुर्वोर, जामदग्ना, वशिष्ट ज्योतिः, गौः, और आयुः नामक महाव्रतका विधान संसर्प और विश्वामित्र नामक चार चार दिनसाध्य है। उसका प्रकारान्तर है। उसका 'विधानादि यनका विधान है। उनके मध्य जामदग्ना यौ है। चार दपरानका विधि है। प्रतिष्ठाकामनाकारी पुष्टिकाम वाशिका अधिकार है। उसमें विशति दीक्षा वाक्तिका विककुप नामक प्रथम दशराव है। अभि- एवन चार यज्ञमें पुरोडाविशिष्ट उपसद्का चारकारीका कौसुरुविन्द नामक द्वितीव दशरात्र है। विधान कथित है। ३य कण्डि कामें उसके विधानका पूर्दधरान नामक ढतीय दशरात्र है। पशुकाम प्रकारादि है। ४थ कण्डिकाम पञ्चदिन साध्य तीन वालिका छन्दोइ नामक चतुर्थ दशरात्र है। उसका बहीनका विधान है। उनके मध्य प्रथम महीनका विधानादिःहै। पौण्डरीक नामक एकादशयन एवं नाम देवपश्चाह है। द्वितीयका नाम पञ्चशारदीय ससका विधानादि कथित है। है। इन उभय पहीनके विधानादिका कथन है। २४श अध्यायमें ७ कण्डिका हैं। उसको श्म टतीय पक्षाहका व्रतवत् नाम कथन है। इस विविध कण्डिकामें हादशरावसे एक दिन बढ़ा चत्वारिंशत् पच्चाह यजम ज्योतिर्गौ, महावत और गौरायु नामक रात्र पर्यन्त यन्नविधि है। उसमें जिस क्रमसे जो तीन एकाइ यजका विधि है। सर्व जित्की भांति दिन उपदिष्ट है, वह दिन इसी प्रकार समझना इसमें दीक्षानियम और उसका विधानादि मिर्दिष्ट पड़ते हैं। भावापिकसमूहका अन्यक्रम पौर है। म कण्डिकामें छह दिन साध्य नौन अहीनका औपदेशिक समूहका उपदेशनम लिया जाता है। विधि है। तीन महीनके ऋतुषड़ह, पृष्ट्यावलख उपदिष्ट दिन व्य सिरिता पन्यदिन समूहका पावाप- और त्रिकद्गुक तीन नाम कहे हैं। इस विविध कम कथन है। यथा-यज्ञ पपूर्ण होनेसे दशरान 'यज्ञमें स्तोमविधानादि है। सप्ताहसाध्य भावाप रहता है। यह पहले नहीं, पौछ होता है। महीनका विधान है। उनके मध्य चारका उत्तम छह पाष्टिक पाह और चार छन्दोम पह मिलाकर महाव्रत है। इन चारके मध्य हतीयमें पशकामका दशराब पाता है। अथवा पृष्टय षड़ह, तीन छन्दोम अधिकार है। पञ्चम बहीनका नाम इन्द्रसप्ताह पौर अविवाक्यक समुदायका नाम दशराब है। यह । पञ्चम सप्ताहमें द्वितीय एकाहसे दशराव समुदाय दिनके अन्तमें मानना पड़ेगा। भारम्भकर छह एकाह एवं सुत्या समुदायका विधान दशरावके पीछे एका विषयमें प्रकृतिविहित है। इस सप्ताह समुदायके प्रत्येक सप्ताहमें ज्योतिः, समुदायसे महावत होता है। यज्ञ संख्यापूरपके गौः, पायुः, अभिनित् और सर्वजित् छह महाव्रतकी लिये दशरात्र पौछे एकांह वातीत महाव्रत पड़ता कर्तवाता है। धूसी प्रकार समुदाय दिनसाध्य यनमें है। महाव्रत वातीत अन्य कार्यसमूह पावापके पीछे महाव्रतका विधान है। उत्तम सर्वस्तोमका विधान पौर दशरात्रके पहले करते हैं। जहां षड़ह वातीत है। उसके शेष दिनको ज्योतिः, यनसंख्यापूरण नहीं होता, वहां षड़ पूरणके लिये अभिनित, विश्वजित् और सर्वजित् महानतविशिष्ट अभिप्लवका वावहार चलता है। अभिन्न वसे पहले सर्वस्तीम अतिराव है। पञ्चाइ समुदाय भो पञ्चाह वातीत संख्यापूरण न सप्ताह है। उसका विधानादि है। उत्तम सप्तम पड़नेसे अनुष्ठित होता है। वाह वातीत संख्या-- सप्ताहमें बृहद्रथन्तर सामयुक्त पुष्टिका विधान है। इस पूरण न होनेसे वाह विषयमें ज्योतिः, गौः और समुदायको पुष्टिस्तीम संभा है। इसी प्रकार सप्त- उता तीनोंको त्रिकट्ठका कहते सप्ताह पहीनका विधान कहा है। उसके पीछे हैं। चतुरद वातीत यनसंख्या पूरण न होनेसे चतुरह उसका विधानादि है। अष्टमुत्य पहीनमें पाटिंक | विषयमै ज्योतिः प्रभृति तीन और महावतका अनुष्ठान Vol. IV. 91 सात गौ मायुः जनक सप्तराव नामक षष्ठ प्राघुःका विधान है