कान्तता-कान्तनगर ३८३ कान्तता (सं० स्त्री०) कान्तस्य भावः कान्त-तल टाए । विराटराज्य का दुर्ग रहा। वह उक्त दुर्गमें वास भी १ सौन्दर्य, खूबसूरती। २ स्वामित्व, खाविन्दी। करवे थे। पाण्डव अज्ञातवासके समय यहां पाये थे। कान्तत्व (संली.) कान्तस्य भावः, कान्त-त्व । कान्तनगरको चारो ओर पड़े हुए विस्तीर्ण भूभाग- १ मनोहारिता, खूबसूरती। २ खामित्व, खाविन्दौ । का नाम उत्तर-गोग्टह है। प्रवादानुसार कान्तनगरको शान्तनगर-बङ्गाल प्रदेशके दीनानपुर जिलेका एक धापा नदीके पूर्वतौर और कचाई नदीके उभय गण्डग्राम (कसबा)। यह बीरगन थाने में लगता है। तीर विराटरानका गोधन चरता था। उक्त गोचारण. दौनाजपुर शहरसे कान्तनगर ६ कोस दूर है। भूमि किसी समय अत्युच्च प्राकारसे वेष्टित थी। आज- दुर्गादिके वंसावशेषसे स्पष्ट समझ पड़ता कल वृक्ष लतादिसे उता सकच स्थान ढक गया कि उक्त स्थान किसी समय विशेष समृद्धिशाली था। है, इसीसे उस प्राचीन -प्राकारका चिह पर्यन्त पा ‘अनेक लोगों के विश्वासानुसार स्तुपाकार ध्वंसावशेष नहीं सकते। कान्त मन्दिर - कान्तनगरका कान्त-मन्दिर अति प्रसिद्ध है। इस मन्दिरके निर्माणार्थ -लाखों रुपये खर्च किये। ऐसा सुन्दर और विचित्र सन्दिर वङ्गन्देशमें दूसरा नही। यह मन्दिर बङ्गाच देशके स्वपति और शिल्यो लोगोंका राजा प्राणनाथ दिलसे कान्त नामक विष्णुविग्रह गौरवप्रकायक चाये थे। उत कान्तविग्रह प्रतिष्ठा करने के लिये ही • यहांक अधिवासी कहा करते है कि दीनाजपुरका पधिकांश स्थान सुप्रसिद्ध कान्तमन्दिर बना । १७०४ ई०को इस ही प्राचीन मत्वदेश है। किन्तु महामारतादि पढ़नेपर किसी क्रमसे उस -मन्दिरका निर्माण कार्य लगा और कोई १०२४०को अचवमें मत्स्यदेशका प्रवस्थान मिनि हो नहीं सकता। मतदेय वा -यह महत् कार्य सुसम्पन्न हुवा था। राजा प्राणनाथने । विराटराज्य युक्तप्रदेश है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३८२
दिखावट