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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३८३

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३८४ हैं। वारन हेष्टिङ्गसके कासिमबानारमें ईष्टइण्डिया कम्पनीके अधीन कर्म करते शीराज-उद-दोलान वहांके अंगरेजोंको पकड़ वध करनेका प्रदेश निकाला था। उसीघोर संकटके समय इन्होंने वारेनहेष्टिमसको अपनी कान्तपक्षी -कान्तलोह कान्तनगरका यह पवित्र देवमन्दिर देखनेसे . समझ पड़ता है, कि अंगरेजों के पानसे पहले बालके दीन शिल्पयों ने स्थापत्य और शिल्प विद्याम कितना उन्नतिलाभ किया था। यह नवरत्न मन्दिर है। मन्दिरको चूनाके विष्णुचक्रसे पाददेश पर्यन्त सुगठित दुकानमें निरापद स्थान पर बैठा मरनेसे बचाया। मुचित्रित और कारकार्य-सुशोभित है। इस मन्दिरमें फिर हेटिङ्गस गवरनर जनरल होकर पाये। किन्तु विलकुल पत्थरका लगाव नहीं, भित्तिसे चूड़ा पर्यन्त वह कान्त बाबूका महा उपकार भूले नथे। प्रथमत:: समस्त इष्टक-निर्मित है । मन्दिरके गानम इष्टक खोद उन्होंने इन्हें अपना दीवान बनाया। कुछ दिन पीछे बहुसंख्यक देवदेवी मूर्ति-गठित हैं। देवदेवीको मूर्ति | कान्त बाबूने कम्पनीसे गाजीपुर और आजम गढ़ निलेके देखनेसे यह भी समझ सकते हैं कि प्रायः दो सौ वर्ष अन्तर्गत (दूहा विहार) परगना जागौर पाया। इनके. पूर्व बङ्गाल देशमै रीति, पचति और वस्त्रादि कैसे पुत्र लोकनाथ को भी राजा बहादुरका उपाधि मिचा प्रचलित थे। हम कह सकते हैं कि ऐसा इष्टकनिर्मित था। ११९५ई० के पौषमासमें कान्तबाबूका मृत्यु हुवा। एवं इष्टकखीदित कारकार्यविशिष्ट मन्दिर दूसरा यह हेष्टिङ्गसका दाहना हाथ थे। कान्तबावूके द्वारा कहीं नहीं है। ही उनका सब काम चलता था। प्रयोजन होनेसे यह कान्तनगरसे थोड़ी दूर सनका नामक स्थान है। उनको रुपये उधार लाकर देते थे। हेष्टिङ्गसके साथ प्रवादानुसार विख्यात वणिक् चांदसौदागरने वहां हो साथ कान्तवावू रहते थे। एक बार देटिङ्गसने मट्टीका एक किला बनवाया था। इनके लिये काशीको राजमाताको भी डांटा डपटा था। सं०० ) कान्तस्य कार्तिकेयस्य पक्षी, (बान्तवाकै परिव सम्बधर्म Bereridge's The Trial of Nanda kumar, p. 294-45, 967-401. देखो। ६-तत, यहा कान्तः मनोहर: पक्षी ऽस्यास्ति, कान्त- यक्ष इनि। मयूर, मोर। कान्तलक (सं० पु.) कान्त लक्यते पाखाद्यते, कान्त- कान्तपाषाण (सं० पु०) चुम्बक नामक प्रस्तर, सङ्ग लक घनर्थे कः। १ नन्दोक्ष, एक पेड़। २ तुक्ष, मिकनातीस। यह शीत, लेखन (खुजली पैदा तुनका पेड़। करनेवाला) और विषदोष, मेद, पाण्डु, क्षय, कण्डु, कान्तलोह (सं० क्लो०) कान्त चौह श्रेष्ठत्वात् माह तथा मूळनाशक है। (वैदा निघण्ट) इसके कमनीयं लोहम्। १ अयस्कान्त, ईस्मात । २ सौह शोधनका विधि यह है-कान्तपाषाणको पीस महिषी- विशेष, एक लोहा । कान्तलोह उसोको कहते, जिसके दुग्ध तथा गव्य रातमें पकाते हैं। पका कर यह सवण पात्र में जल रख कर तैलविन्दु डालनेसे तेल इतस्ततः 'चार और शोभाञ्जनमें डाला जाता है। फिर दोला. न चले, जिसके स्पर्शसे हिङ्ग, खीय गन्ध परित्याग यन्त्र में महिषीक्षीरादिसे दो बार पकाते हैं। अन्तको करे, नीमका काथ भी जिसमें मधुर आवाद है, जिसमें अम्मरससे रौद्रमें एक दिन भावना दी जाती है। दुग्ध पकानसे वालुकाराशिको भांति जमे और जिसके (रसेन्द्रसारसंग्रह) पात्रमें चना भिगानेसे कष्णवर्ण देख पड़े। इस लोहसे वैद्यशास्त्रोक्त अनेक भौषध प्रस्तुत होते हैं। औषध कान्तपुष्प (संपु०) कान्तानि मनोरमाणि पुष्पाण्यस्य, वहुनी। कोविदारवक्ष, लाल कचनार । . प्रयोग करने के लिये जारण मारण प्रकृति कई कार्य प्राक्यक हैं। लौशब्द देखो। कान्तबाबू-कासिमबाजार राज परिवारक प्रतिष्ठाता। इसके निरुत्यीकरणसम्बन्ध पर रमेन्द्रसारसंग्रहमें इनका प्रकृत नाम कृष्णकान्त नन्दी था। जातिके यह ऐसा उपदेश लिखा है,-"शव पारद.१ भाग, गन्धक तेली थे। प्रथम कान्तबाबू सामान्य मोदीका व्यवसाय २ भाग, और उभयक समपरिमाण खौपचूर्ण एकक करते थे। इसीसे अनेक लोग इन्हें 'कान्तमादी करते कान्तपक्षी