पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शराव। - कान्तिक-कान्दाहार क्रान्तिक (सं• को०) कान्त्या कान्ति पाख्यया कार्यात् । कातिवक्ष (सं० पु. ) महासजवध, लोबानका पेड़। श्राद्धयते, कान्ति-के-क । कान्तलौड़, एक लोहा। कांतिहर (सं० वि०) कांति हरति नाशयति, कांति- कान्तिकर (सं० लो०) कान्तिं करोति, बान्तिम-ख। हु-ख । कांतिनाशक, रौनक घटानेवाला। कान्तिवर्धक, खूबसूरती बढ़ानेवाला । कांतीनगरी (सं० स्त्रो०) कान्तिपुर देखो। कान्तिद (सं० लो०) कान्ति यति नाथयति कान्ति- कांतोत्याड़ा (सं० स्त्री० ) छन्दोविशेष। इसमें बारह दा-क । १ पित्त, सफर, जर्द-भाव। त, घो। (नि.) बारह माताके चार चरण होते हैं। कांति ददाति, कांति-दा-क। २ शोभावर्धक, खूब- कांतोली (सं० स्त्री० ) कुष्माण्डको सुरा, कुम्हड़े की सूरती बढ़ानेवाला। कांतिदा (सं०स्त्री०) कांतिद-टाप् । सोमराजी, बकुची। कान्यक (सं० वि०) वणु नदसमीपस्थ कन्यात् जातः, कांतिदायक (सं०क्लो०) कांतिं ददाति, कानि-दा-खुल। कन्या-वुक । वर्षानुन् । या ४।२।१३। वर्गु नद समीपस्थ -१ कालीयक, चन्दनक्ष। (त्रि.) २ शोभादायक, कन्यानात, वर्णनदौके पासको एक जगहका। रौनकबखध। कांधक्य : ( सं०. पु० ) कन्यकस्य ऋपः गोवापत्यम, कान्तिनगरी (सं० स्त्री० ) काञ्चीनगरी, काजीवरम् । कन्यक-यञ्। कन्यक ऋषिके वंशीय। कान्तिपुर (सं० लो०) १ नेपालकै अन्तर्गत एक नगर । कान्यक्यायन (सं० १०) कन्धकस्य ऋषेः गोवापत्यम् आजकल नेपालको राजधानी काठमांडू है। पहले कन्थक-य-फा । कन्धक ऋषिके वंशीय। उसोको कान्तिपुर सहते थे। नेपालके राजाओंको कान्थिक (सं० त्रि०) कन्यायां जातः, कन्या-ठक । वंशावली देखनेसे मालूम होता है कि, राजा कन्यायाठक ४॥ २।१२। कन्याजात, कथरी में पैदा हुवा। लक्ष्मीनरसिंह मलने नेपानी-संवत् १५ (१५८५ / कान्द . ( सं० वि० ) कन्दस्य इदम्, कन्द-प्रण। ई०)को गोरक्षनाथको पूनाके, लिये एक वृहत् १ कन्द-सम्बन्धीय, इलेके मुतालिक । २ कन्दजात, काष्ठमण्डप बनाया था। सदनन्तर कान्तिपुरका डलेसे पैदा । (लो) ३ पक्काबविशेष, एक मिठाई। नाम काठमांडू पड़ गया। स्कन्दपुराणके कुमारिका- कान्दप . ( सं० पु. ) कन्दपस्य अपत्यं पुमान, खण्डमें लिखा है, कि कान्तिपुरमें नव नप ग्राम थे। कन्दप-अन् । १ कन्दपके पुत्र, पनिरुद्ध। (नि.) २ ग्वालियर राज्यका एक नगर। उसका वर्तमान २ कन्दप-सम्बन्धीय। नाम काटवार है। पश्चिन् नदी के तौर वह पवस्थित कान्दपिक (सं० लो०) मन्दाय कन्दपवये प्रयो- । प्रभासखण्डके मतसे वहां जनप्रिय नामक.देव जनमस्य, कन्दप ढक । वाजीकरण, ताकत बढ़ाने- विराजते हैं। वाली चीज़। : कान्तिभृत् (सं.वि. ) कान्तिं विभति, कान्ति भू. कान्दव (सं० को०) कन्दो संखतं भच्यम्, कन्दु-प्रण । विप। १ कान्तिविशिष्ट, रौनकदार । (पु.)२चन्द्र, पिष्टकादि भोज्य वस्तु, राटी पूरीको तरह कड़ाहो या तवे पर भूनी या.सेको हुई खानेको चीज़ । चांदा कान्तिमतीकाचीपुरके चोल राजा सोमेश्वरको कन्या कोंदविक (सं० वि०) कांदवं पखं अस्य, कांदव-ठक् । और पांघराज उग्रयांद्यको पट्टमहिषी। . कांतिमत्ता. (सं. स्त्री०) कांतिमतो भावः कांतिमत्- सदस्ख पचाम् । पा १ १. पिष्टकविक्रेता, पूरी मिठाई बेचनेवाला। (पु.) २ बाई, कंदोई। तल्टाप् । कांतिविशिष्टता.. रौनकदारी। कांदाविष (म को• ) कांदविष छांदलात् दोघ। कांतिमान् (सं. पु०.) कांति: प्रशस्येन प्रस्त्यस्य, विषभेद, किसी तरहका जहर। कांति-मतप ।।१ चन्द्र, चांद । २कामदेव । (वि) कान्दाहार. (कंधार), अफगानस्तानका एक प्रदेय । ३ कांतियुख, रौनकदार। एटर प्रति पाचात्य परिहतोंक मतये, सभार .