काफिर ३३५. टोमिक पुस्तकपाठसे समझ पड़ता कि उन्हें उनका पूर्व भारतीय होपावनी में प्रधानतः चार जातिका विवरण प्रात था। उनके "परिया खेरसनेसास" वास है-(१) विमलय जाति, (२) मलय सप- "यावाइस इङ्गिउलि" और "घिपोपिस इकथिपो. दोषवासी खकार काफिर या समाजाति, (३) अनि में सुमात्रा, यवदीप एवं नव गिनीकी पपूया फिलिपाइन होपकी मुद्राकार काफिर जाति और (8) जातिका विवरण भरा है। उसे रामायणोक्त नवगिनीको इत्काय काफिर या पयूया जाति। राक्षस जाति अनुमान करते हैं। एतद्धिव नवगिनी और मलयदीपक मध्यवर्ती कई प्राचीनकाल भारतवर्षके दाक्षिणात्यमें वाणिज्य डीपोंमें उनकी मध्यवर्ती एक जातिके लोग देख पड़ते करनेको मिसरीय वणिकों के साथ पफरीकाकै पूर्वा-हैं। उन्हें मलयको काफिर नाति कह सकते हैं। पलवाले शेग भरत और अफरीका उभय स्थानीसे सिलिविस और लम्बस वोपके पूर्व जो सकल होपरे, यहां भाते थे। पाचात्य ऐतिहासीक मतमें वैसा उनके अधिवासी साधारणत: अष्ट्रेलियावासियोंकी व्यवसायवाणिज्य प्राय: तीन हजार वर्ष रहा। उस भांति होते है। पार्थक्य देख अनेक लोग पनु- समय यही नहीं कि B सकट देयोंके लोग केवल मान करते हैं कि एशियाके दक्षिणांथके साथ पूर्व पण ले पोतारोहण द्वारा इस देश में भावे और क्रय भारतीय होपपुलके पश्चिमभागय होप पति प्राचीन विनय कर वन्दरसे चले जाते थे, किन्तु अनेक कालमें संलग्न थे पौर कालक्रममें प्राकृतिक परि- वधिकरूपसे इस देशमें रहने भी उगते थे। उक्त वर्तनसे विछिन ही गये। सकल स्थायौ वणिक सिंहस्थ में "मुसरजाति और दाक्षि अफरोकामें जितने काफिर रहते हैं, अनुमानतः णात्य "मोपना" वा "सबाई नामसे ख्यात हुए। उनकी संख्या दो करोड़से अधिक नहीं। इस पूरी किसी किसौके कथनानुसार दाक्षिणात्यमें पार्योंका संख्या में काफिरियावासी काफिर और इटेण्ट भी अधिकार विस्तृत होने यहिले हो काफिर रहने लगे रख लिये गये हैं। थे। उस मत समर्थनके लिये बताते हैं, लोहितसागरके पूर्वकूल, पारस्योपसागरके तौर "दाक्षिणात्यके पधिवासियोंसे पायनातिका पौर मलय उपद्दीपर्म काफिरों की संख्या अधिकसे जितना पार्थक्य प्राजकर देख पड़ता है, उतना अधिस ५० लाख होगी। किन्तु बडोपसागरके भारतमें किसी दूसरे स्थानपर नहीं मिलता। फिर आदामान दोपसे पूर्व दिक्की होपावली में जिन जिन दाक्षिणात्यकी सकल भाषा संस्कृतसे सम्म ण भिन्न जातीय लोगों को साधारणतः काफिर कहते हैं, उनके है। दाक्षिणा अधिवासियोंमें कितनी होका मध्यमें न्यनकल्पमे ११ प्राकतिगत यो-विभाग हैं। आकतिगत सौसादृश्य अधिकांश देशनियोकी भांति, उन १२ श्रेणीगत पार्थक्यों को देख भात होता है- कितनी होका समितीय ईरानियों को भांति, कितनों उनमें कितने ही साढ़े तीन हाथ या चार हाय तक होका अशियोंकी भांति और कितनी होका और कितने ही साढ़े चार हाथ तक लम्बे निकचते हैं। मलय पपूयोंकी भांति है। फिर निन्नवेशके लोगोमें अधिकांशको आकति अफरीकावासियां मिलती है। •यह पमुमान कैवज डागोंक पाकविरत सोसाय पर निर्मर नही कर- उक्त लोगांके मतानुसार विन्ध्य एवं घाटपर्वतक पूर्व | वा। सनावा, वौरनिषौ, यव, वालि पादि दोषको परस्पर मध्यवर्ती मान्तवर्ती असभ्यजातिको भाकति पधिकतर उत्तर प्रणालो और एशिवाके प्रधान भूखएको मध्यवर्ती प्रपामो कहीं मौ भारतीय आर्यजातिको आकतिसे मौसादृष्य रखती १५० । २००भावसे पक्षिक गमोर नहीं। किन्तु सिलिविस दीपके पूर्वी भकी है। किन्तु घाटपर्वतके पश्चिमाञ्चलवासी मलय दोषको प्रगानी और समुदाय अनेक स्वयमें ४०० बायको अपेक्षा भी गौर है। एतद्भिन एगियाके दचियांश उत्पन्न फल मूलाचादि पारध जन्तु और जाकून जातिकी भांति बोते हैं। बाकून जातियों के प्राचीन मंसावशेषादिवसाय इन सबल बोपोंके कसम विपयोंका साथ अफरीकावासियों का अधिक भादृश्य है। सम्परादेव
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९४
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