- काफिर हमके मध्य में प्रपेचात कई विख्यात श्रेणियोंकी वास नृत्यके ताल ताल पर मामारुप भाभी किया करते हैं। पान्दामान दोपके मीनकपी काफिर-मालूम मां, विला-भान्दामात दीपके पूर्व मतय उप- पड़ता है कि मनुष्य श्रेणीमें उनको अपेक्षा असभ्य जाति । होपके अन्तर्गत केदा, पेराक, पाहा और विज्ञानु दूसरी कम मिलेगी। धनके वासस्थानको स्थिरता नहीं, प्रदेशमें जो काफिर रहते हैं, उन्हें मचयके लोग "ममा परिधेय वस्त्रादि नहीं और उन्हें यह भी ज्ञान नहीं तथा "बिला करते हैं। उनका व कृष्ण, केय मण- जीविकाके लिये किस प्रकार कार्य करना पड़ेगा। सदृश और गठनादि अफरीकावासियोंकी भांति खर्वा- मौनकपी लोगोंके साथ मिलना तो चाइते हैं, किन्तु कार होता है। पूर्णवयस्क पुरुषको उच्चता तीन जायसे पनिटप्रिय होते हैं। नरमास नहीं खाते भी वह अधिक नहीं बैठती। उनके भी निर्दिष्ट वासस्थान और शूकरमांस, मत्य प्रभृति भक्षण करते हैं। मौनकपी वषिकार्यका अभाव है। उनमें अधिकांश धूम धूम कर जङ्गली फल एवं मूल तोड़कर और झील तथा वनका उत्पन्नादि संग्रह करते हैं और उसे ही मचय- पुष्करिणौसे मत्स्य पकड़कर खा जाते हैं। वह धनुर्वाण जातीयोंके निकट व्यवहार्य द्रव्यादि बदलते हैं। वह ले वन वन और पुष्करिणी पुष्करिणी घूमते फिरते शिकार मारते और शिकारमें पाये पशु-पक्षी वा उसका हैं। बाँसको खपाचसे मछली पकड़नेका कांटा वह लोग । चर्म पालकादि विनिमय कर खाद्यादि लाते हैं। बना लेते हैं। वह वस्त्र नहीं रखते और न रहने में क्रियान नदीको उपनदी इमानके तौरवर्ती स्थानमें कोई लना नहीं करते। मौनकयो क्षुद्रकाय होते हैं। "मेमां बुकित्" नामक येणोके काफिर रहते हैं। उनका मस्तक छोटा पौर तालु चपटा रहता है। वह वह पूर्णवयसमें सवा तीन हाथ होते हैं। उनका अपना सर्वाङ्गकांचसे खरोंच खरांचकर शरीरको शोभा मस्तक क्षुद्र, मस्तकका सम्मुखभाग कुछ कोणाकार सम्पादन करते हैं। बामन्त तथा कण्ठमूलसे मणि बच्च, और पवादभाम वतुंलाकार तथा मध्यांपकी वन्ध एवं कटिदेश पर्यन्त अङ्गको चारो ओर गोलाकार अपेक्षा प्रशस्त होता है। मलयजातीोसे सेमा खरीचके दागोंसे मीनकपी प्रति विश्री और भयानक बुकितीका मुखमण्डन साधारणतः अप्रशस्त, धदेश लगते हैं। किन्तु वह उसीको अपनी प्रधान शोभा उन, नयनकोटर प्रति गम्भीर, नासिका नोची और समझते हैं। किसी विषय पर सन्तोष प्रकट करते समय छोटी एवं नासिकाका अग्रभाग सूक्ष्म तथा उठा हुआ मोनकपी दक्षिण इस्तमें तालुंके निम्न भागपर धीरे धीरे होता है। पांखका परदा पीला, पक्ष्म धन-दीर्घ-कुचित, दन्ताधात कर बाम स्कन्धेपर एक थप्पड़ लगाते हैं। हनुदेश एवं मुखविवर प्रशस्त और होठ मोटा तथा सईस घोड़ेका बदन मलते वक जैसे उपक देते हैं, वैसे छोटा रहता है। भू तथा नासिकाके अग्रभाग पौर ही शब्द निकाल वह चुम्मा लेते हैं। परस्पर कथोप हिदको उच्चता समान होती है। उनका उदर बात कथन करते समय मौनकपी ऐसा गड़बड़ उच्चारण करते रहते भी शरीर अपेक्षाकृत धीव सगता है। यह हैं, मानो चं चं कर ही मनोभाव प्रकाश करते हों। वानरको भांति उदरको घटा बढ़ा सकते हैं। गावका किन्तु वास्तवमें यह बात ठीक नहीं। उड़ियों की भांति धर्म साधारणतः कोमल और चिक्य होता है। उनकी उच्चारण प्रणाली प्रति द्रुत और अस्पष्ट होती है। निशानुको सीमाङ्ग नामक श्रेयी केदादियों की भांति- उनको नाचना बहुत पच्छा लगता है। नाचते समय कुछ तरलवर्ण है। वह लोग सेमा बुकितोंकी भांति- यह दोनों हात मस्तकको भोर उठा सङ्गीतके तास मसूण घोर कष्णवर्ण नहीं होते। उनके बाल जनसे ताल पर कूदते फांदते हैं। फिर नृत्यमें कभी मीनकपी}. नहीं मिलते, टेदे टेढ़े और घटोत्कची भांति कंधे मस्तक घुमाते और कभी समस्त मरोर सम्मुखकी ओर रहते हैं। माड़वारियोंकी भांति खूब धनी मोटो.मूह भुका चाते हैं। इस प्रकार मौनकपी सङ्गीत और । रहती है। मस्तकको बनावट मखयों या काफिरोंकोः
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९५
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