पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४००

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काफिरस्थान - जनित रकपात नहीं होता। मुससमानोंसे इनका निर्धारित नहीं होता, उतने दिन कोई पुरुष अपने घर सर्पनकुन सम्बन्ध है। एक दूसरेको देखते ही युज जाने नहीं पाता। दिवारानि मन्त्रणारटइमें रहना किड़ नाता है। अंगरेजों के साथ इनका कोई विवाद और वहीं पानभोजन भयनादि करना पड़ता है। नहीं। इनमें दासत्वप्रथा और दासव्यवसाय विद्य जिस स्थानमें पाक्रमण करना ठहराते, दिनके समय मान है। किन्तु समझ पड़ता है कि वह यीघ्र ही छुट सब वहीं पहुंच दो दो तीन तीन आदमी झाड़ियों में जायगा। यह प्रायः बहु विवाह नहीं करते। स्त्रीको विप जाते हैं। फिर जैसे ही निकटसे मुसलमान व्यभिचार दोषमें सामान्य दण्ड मिलता है, किन्तु पुरुष निकलते, वैसेही उनपर टूट मारने लगते हैं। प्रति को बहुतसा गोमेषादि जुर्माना देना पड़ता है। यह दिन सन्ध्याकाल स्त्र व कार्यका विवरण बता पामाद शवको सन्दूक बन्द कर रख छोड़ते हैं। एक मात्र प्रमीद करते हैं। मुसलमान भी ऐसे ही काफिरस्थानमें अदितीय देवता "इम्ब" (क्या इन्द्र) पूज्य हैं। इसका घुस बालक-बालिका चुरा लाते हैं। मन्दिर होता है। उक्त मन्दिरम पवित्र प्रस्तरमूर्ति यह चक्कोमें गेहं, यव प्रभृत्तिको पीस पाटेको स्थापित रहती है। पुरोहित पाकर पूजा करते हैं। रोटी बनाते हैं। रोटीको सोहकटाइ (तवे) पर यह धनुर्वाणधारी हैं। गोमेषादि ही इनका मूल्यवान् सेक खाया करते हैं। यह पालित पशुका भी वस्तु है। यही निसके पधिक रहता है, यही धनी 3. मांस खाते हैं। काफिर एक ही वारमै गला काट रता है। इनमें १८ लीग सरदार हैं। पशुहत्या करते हैं। यदि दो हाथ मारनेका प्रयोजन यह सोग परस्पर शपथ उठा बन्धुताके सूवमें प्रासा, तो वह मांस पवित्र समझ छोड़ दिया जाता बंध जाते हैं। किसी के साथ सूत्रको सन्धि टूटनेसे है। फिर काफिर वारिजातिके मध्य पारिया श्रेणीको पहले एक तीर मेजा जाता है। या बड़े पतिधि- वीला उसे दे देते हैं। भत हैं। यदि कोई प्रतिथि इनके धर पाता, तो स्वयं यह अंगूरसे शराब बनाते हैं। अंगूरके वर्षभेदसे ग्रहकर्ता उसकी परिचर्या उठाता है। फिर यदि कोई मद्यका वर्ण दो प्रकार होता है। बालक वर्ष में सकल दूसरा उस अतिथिको उठा अपने घर ले जाता, तो समय मद्य पीने नहीं पाते। मुगल-सम्राट बाबरने उभयके मध्य विषम विवाद देखनमें पाता है। यहां लिखा है कि काफिर अपने गले मद्यपूर्ण "कि" तक कि रक्तपात होने लगता है। स्त्रियोंके यथेच्छा. नामक चमड़ेको कुप्पी लटका रखते हैं। उन्होंने यह स्वमदमें कुछ वाधा नहीं, अवगुण्ठन नहीं। किन्तु उन भी कहा कि वह जलके बदले मद्यपान करते हैं। पुरुषों के साथ पानभोजन करने कम पाती है। प्रति इनका साहाय्य न मिचनेसे काफिरस्थानमें धुसने- ग्राममें खियों के प्रसवको खसव भवन रहते हैं। को कोई कैसे साहस कर सकता है। इनके आपसमें विवाद होनेके पीछे मिटते समय विवा काफिरखान देखने में अतिसुन्दर देश है। दियोंके मध्य एक पादमौ दूसरेका स्तन और दूसरा निविड़ वृक्षमालार्म प्रकृतिका रम्य उपवन समझ स्तन चूमनेवालेका मस्तक चुम्बन करता है। इसी पड़ता है। प्रान्त भागमें महावन है। काफिरखान प्रकार विवाद मिट जाता है। काफिर अपने सन्तानको प्रधानतः तीन उपत्यकामि विभक्त है। इन्हीं तीन विक्रय नहीं करते। किन्तु कष्टमें पड़नेसे प्रतिवासीके उपत्व कार्शी यहांको तीन प्रधान जातियों का नाम- सन्तानको चोरीसे. बेच लेते हैं। किसी किसीके शरण दुवा है-रामगन, बैंगन और वासमल। इनमें कथनानुसार यह व्यापार व्यवहारके मथ गण्य है। वैगन, सर्वापचा पराकान्त पौर उनकी उपत्यका भी इसीसे चिनासके सरदार-विक्रयार्थ. वालक-वालिकायो सर्वापेचा कृत् है। काफिर या सियाइपोश इनका पर कर लगा देते हैं। किसी मुसलमान.नाति पर युद्ध जातीय नाम नहीं। पावर्ती मुसलमान इन्हें इस यात्रा करते समय मितने दिन सक.पायोधन पायादि नामसे अभिहित करते हैं। मुसलमान धर्मपर Vol. IV. 101 - यह