पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/३९९

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- goo काफिर-कफिरस्थान कारिडोनिया और फिमौके पापुयां मरमांसभुक् है। भाषाका विन्दुमात्र मी सादृश्य नहीं। हां, महतक फिनीहोपके पापुथा पफरीकाके इटेण्टौकी भांति साय उसको यथेष्ठ धनिष्ठता पाती है। इष्ठी कारक चूड़ाकार केश वांधते हैं, सानोको भांति करोटी आधुनिक ऐतिहासिक अरवी या अफगानों की भांति (खोपड़ी) प्रशस्त होती है। नवगिनिके पापुया उन्हें विलकुल स्वतन्त्र जाति नहीं मानते। वह भारतीय धार्मिकता, गुरुननधि और प्रातिधेयताके लिये जातिके ही अन्तर्गत है। केवल देशभेदसे शाफिर विख्यात हैं। प्रायः सकल मलेमि काफिर स्त्रियों के स्वतन्त्र हो गये हैं। मध्य व्यभिचारदोष देख नहीं पड़ता। १८८३ ई के पूर्व वहांका जो विवरण मिशा, काफिरस्थान भारतवर्षको उत्तरपश्चिम सीमा और उससे समझ पड़ा कि उस देशमें कतार, गम्बौर, देख- हिन्दूकुश पर्वतके मध्यका एक प्रदेश। उसको पश्चिम हुलज, अरनस, इशरम, अमौसीज, पण्डिन, बैंगन सौमा अफगानस्तानको अनीमाङ्ग नदी है। पूर्वसौमा | प्रभृति जनपद विद्यमान हैं। १८८३ ई०को मिष्टर कुनार नदी हो सकती है। उस स्थानके अधिवासो! डबल्यू म नेयार नामक अंगरेज ही सम्भवत: सर्वप्रथम काफिर या सियाहपोश कहलाते हैं। १८८३ ई०से उस प्रदेशमें जा सके थे। उन्होंने वहांको लोक संस्था पहिले कोई अंगरेज उस प्रदेशमें प्रवेश न कर सका अनुमानसै ६ लाख स्थिर को। प्रति ग्राममें १००से था। सुतरां उसके पहले उसका जो विवरण सुनते, ६०० तक लोग रहते हैं। उसपर प्रवत पक्षमें आस्था कैसे चा सकते हैं। प्राचीन उनके दैनिक पाचार व्यवहार और प्राति अंगरन ऐतिहासिकोंने उस स्थानके सम्बन्धमें जो : प्रतिके सम्बन्धमें नानारूप विभिन्न मत मिलते हैं। कुछ लिखा, उसका अधिकांश पार्श्ववर्ती सुसचमानोंसे किसी किसीके कथनानुसार सिपाहपोश देखनमें संग्रह किया था। किन्तु अब सुनते समझते कि वनिष्ठं, दृढ़गठित एवं साइसौ रहते भी स्वभाव, मुसलमान उस प्रदेशमें सहज ही घुस नहीं सकते या सम्पूर्ण विपरीत अर्थात् अवस, विलासी तथा सर्वदा । घुसना पसन्द नहीं करते। कारण काफिरों से उनकी मद्यपायी होते हैं। अफगानस्तानमें अनेक पकड़े चिर शत्रुता है। कोई काफिर यदि अपने जीवन में काफिर वसते हैं। उनका शरीर दृढ़ समझ पड़ता है। किसी उपायसे एक भी मुसलमानको मार नहीं उनमें युरोपीय गठनके लोग ही अधिक हैं। अशाचों सकता, तो वह खजाति, स्वश्रेणी पौर स्ववंशमें और विडालाचोंको भी काई कमी नहीं। उन्हें पासन अपदार्थ एवंडेय रहता है.। सुतरां इधर उधर मुस बांधकर बैठना कठिन उगता है। काफिर कुरसी समानीसे उस प्रदेश या.उस जातिका विवरण. ठीक पर ही सविधासे बैठ सकते हैं। उनकी स्त्रियां रूपवती ठीक से मिला होगा। और बुद्धिमती होती हैं। वर्ण रसोबच खेत है। वहां सियाहपोश नामक एक जाति रहती है। अनेक कथनानुसार अतिरिक्ष मद्यपान करनेसे वा कोई. कोई सियापीय जातिक सम्बन्धमें कहता रक्तवर्ण, हो गये हैं। यदि उनसे पूछा जाय उन्हें कि वह-पारस्थको गवर जातिको भांति. प्राचार-व्यव कैसा पानाहार अच्छा लगता है, तोवर मौन कर हार-विशिष्ट किसी परबी जातिसे उत्पन है। कोई उसे उठेग-प्रतिदिन एक मटका शराब चाहिये। एक पसेकसन्दरके ग्रीक सैन्धकी औरसोत्पत्र बताते हैं। फिर मटके में प्राय: पंद्रह और शराब पाती है। मनयारका विवरब पढ़नेसे समझते.कि काफिर- बिसीके अनुमानमें मुसलमानों का मत फैससे पहले भारतवर्षसे जी सोग पर्वतादिमें सनेलो. समतन खानके लोग सुपुरष साहसी.पौर अषित्रीयो । उनको खियां बागका काम करती है। हत्बमीतम प्रदेशसे निकाले गये, सियाइयोय उनकी एक बाबहुत पर राते हैं। प्रायः प्रति सम्या ब- ... काफिरोंकी भाषा साय परबी, फारसा.या तुर्की. गौतादिमें बीततो है। उनमें पानासह वा पवित्रा .) .