पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४१८ कामतापुर है। इसको "वाघहार" कहते हैं। इस तोरणके नगरके मध्य प्रधान स्थान दुर्ग और राजप्रासाद शिखरदेशमें एक व्याघ्रमूर्ति थी। नगरके उत्तरांशमें है। यह प्रायः नगरके मध्यस्थलमै पवखित है। धरला नदीके प्राचीन स्थानके सुखसे पश्चिम प्राय: एक इसको चारो ओर ६० फोट विस्तृत एक खाई है। मोल दूर "होकोहार' नामक तोरण है। कामरूप दुर्ग पूर्वपश्चिम १८६० फीट और उत्तर-दक्षिण १८८० जिले में कई असभ्य लोगोंके नाम सुन पड़ते हैं। उनमें फोट विस्तृत है। खाईके बाहर दुर्ग का सुरक्षा और होको भी एक असभ्य जाति होगी। इसीसे होको खाईके भीतर इष्टक-पाचीर है। उत्तर और दक्षिण नामक किसी पसभ्य जातिके नामानुसार सम्भवत: दिक् खाईके तोरसे यह प्राचीर लगा है। फिर पूर्व- तोरणका नाम भी रक्खा गया है। यह सकल तोरण पश्चिम प्राचीरको बगलमें-चौड़ा ढाल पोता है। इष्टकनिर्मित थे। इनके निकट नानाविध रक्षणोप दुर्गक. सुरचोंके बाहर दक्षिणपूर्व कोषमें कई क्षुद्र योगी उपाय थे। आज भी उन सबका भग्नावशेष पुष्करिणी और एक वृहत् तड़ाग है। पर तीनां पड़ा है। होकोहारके वहिर्देशमें राहके वामपाल पोर दुर्ग के मध्यविस्तारमें प्रायः २०० गज भूमि और थिङ्गीमारीके पूर्व एक क्षुद्र दुर्ग है। यह प्रायः मट्टीके मुरचेसे वेष्टित है। यह वेष्टितस्थान तीन एक वर्गमोल जमीन पर बना है। इस दुर्गको “पात्रका भागों में विभक्त है। सम्भवतः यह स्थान रानान्त:पुर गढ़" कहते हैं। कारण इसमें पात्र अर्थात् प्रधान मन्त्री रहा। इसके बाहर कई क्षुद्र पुष्करिणी हैं। किन्तु रहते थे। इसकी गठनप्रणाली और व्यवस्थादि नगर निकटमें अट्टालिकाका कोई चिह नहीं मिलता। टुगको मांति अधिक उत्क्वाष्ट नहीं। फिर भी यह | दुर्ग के अभ्यन्तरमै इष्टक-पाचौरके मध्य उत्तरांशपर इस प्रकार निर्मित हुवा है, कि नगर दुर्गसे ही इसकी वृहत् स्तूप है। यह ३० फीट उच्च है। इसका रक्षाका कार्य अनायास चल सकता है। इस दुर्ग से शिखरदेश ३६० फोट विस्तृत और चतुष्कोथाकार है। कुछ उत्तर ऐक क्षेत्रके मध्य राजाका सानागार था। इस स्तूपके दक्षिण-पश्चिम कोणमें एक छुट अथच गभीर इसको चारो ओर पाजकल तम्बाकूको खेती होती है। पुष्करिणी है। इसीसे स्तूपका यह अंथ पाज भी नहीं क्षेत्रके एक स्थानको भान भी "शीतलवास" कहते हैं। विगड़ा। इसको चारी पोर इष्टकको ठहो यो। किन्तु किन्तु यहां किसी प्रकारको अट्टालिकाका चिह्न नहीं । अाजकल पुष्करिणीके तौरको छोड़ दूसरी किसी तरफ यहां गमलेकी भांति पत्थरका एक पात्र विद्यमान है। नहीं है। इसके निकट दूसरी भी कई क्षुद्र पुष्करिणी वह ग्रानाइट पत्थर खोदकर बनाया गया है। इसका । इनको देखते ही जान पड़ता है कि दुर्गको किनारा ६ इंच मोटा है। मुखका विस्तार साढे ६॥ रक्षा करनेको पुष्करिणी खोदी गयीं थीं। फिर उसी फोट और गभीरता साढ़े तीन फीट है। इसके मृत्तिकाको राशिसे यह स्तूप निर्मित दुवा । इस सूपका अभ्यन्तरमें पत्थरकी एक शिड्डी जैसी बनी है सम्भवतः अभ्यन्तर इष्टकगठित नहीं, केवच वालू और मिट्टीसे उसीके सहारे इसमें उतरते थे। पत्थरके बाहर इस भरा है। इस स्तूपके जपर उत्तर एवं दक्षिणभागमें प्रकार चढ़ने का कोई उपाय नहीं। इसीसे अनुमान ईटोंसे बंधे १० फीट चौड़े दो कूप हैं। दोनों कूषों का होता है कि पत्थर भूमिमें गड़ा था। फिर इसका तलदेश तक बंधा है। स्तूपके अपर पूर्व-पश्चिम दो स्थान किनारा सानभूमिके मध्यभागी समपृष्ठ हैं। देखने से सहजमें ही समझ सकते है कि पहले वहां स्नानागारका क्षेत्र देखनसे स्पष्ट समझाते है कि नाना अट्टालिका यो। पूर्वको तरफ इसी टेरपर वेदीको गार और शीतसवास दोनों एक सुन्दर शयाशीतल भांति क्षुद्र चतुष्कोणाकार एक स्थान है। अनेकोंके मनोरम उधामके मध्य थे। कालक्रमसे उद्यानके पनुमानमें यहां कामतखरीका प्राचीन मन्दिर था। वृक्षादि विनष्ट हो गये हैं। प्रधबा अधिकार्यके लिये सकल हयादि काट भूभाग बनाया गया है। दूसरा.भो भग्नावशेष है। सोगोंके जायमानुसार वहां यह अनुमानं बहुत कुछ सत्य है। इस वेदोके पबिम-