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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४१६

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कामतापुर प्रवन नदी थी। कामतापुरके बीच इस समय भी एक पावरण था। नगरकी खाईका विस्तार इस समय क्षुद्र नदी प्रवाहित है। इसको सिङ्गोमारी" * भी २५० फीट है। किन्तु अब ठीक अनुमान कर (पृङ्गीमारी वा सिंहमारी) कहते हैं। इस क्षुद्र नदीने नहीं सकते-गभीरता कितनी थी। कारण खाई बहुत प्राचीन नगर दो मागोम बांट दिया है। पूर्व खडसे मर पायो है। वाहरका पुश्ठा देखनेसे मालूम होता पश्चिम खण्ड छोटा है। जहां शिडीमारी नगरमें उसी है कि गभीरता भी बहुत सामान्य न होगी। नगरमें या महा नगरसे निकली है, वहीं वहीं अधिकांश स्थान तीन तोरण वर्तमान हैं। फिर शिङ्गीमारीके पश्चिम स्रोतके प्रवाहसे विनष्ट हो गया है। पूर्व एक तोरण रहनेका अनुमान लगाते हैं। सम्भवतः नगर बहुत कुछ आयताकार है। परिधि प्रायः इस तोरपके पास ही मुसलमानोंका डेरा था। ऐसा १८ मौन होगा। उसके मध्य पूर्वको ही ५ मोल भनुमान करने का कारण यह है कि यहां भी वैसी धरलाका पुराना कोट उत्तर-पश्चिमसे दक्षिणपूर्व ही रक्षोपयोगी व्यवस्था देख पड़ती है, जैसी अन्यान्य कोणके अमिमुख पड़ता है। नगर पपर तीनों दिक तोरोंड़ोंके निकट खाई और मुरचौमें मिलती हैं। मलकिट तथा मृगमय वृहत् प्राकारसे परिवेष्टित है। एतद्भिव यहां एक तोरण रहनेका दूसरा प्रमाण भी है। खाई दो हैं-एक नगरको चारो ओर, और दूसरी इस स्थानसे एक पुरातन प्रशस्त राइ वरावर उत्तरको नगरके अभ्यन्तरमें दुगके चारो ओर । ऐसा जान पड़ता और नगरके मध्य कोषागार नामक प्रान्तिकारी भग्ना. है कि-दुर्गको खाईको मिट्टी खोद दुर्गके मुरचे धनाये वशेष तक चली गयी है। फिर वहां यह कुछ टेढ़ी पड़ गये हैं। फिर नगरको खाईको मिट्टी निकाल खार्डके दक्षिणमुख घोड़ाघाट पहुंची है। इस राह पर दूसरे बाहर ढालू पुश्ता बांधा है। यह पुश्ता और दुर्गका मुर्चा भी साधारण कार्यो के चिन्ह देख पड़ते हैं। यह राह भाजकक्ष अधिकांश स्थानों में टूट गया है। मगरको नगरके वहिर्देशमें सौदल दोघीके तौरसे घोड़ावाटको खाई और दुर्गका सुरचा ही उक्त कारणसे प्रति हहत् पोर गयी है। नगरसे दीघोतक राइ प्रायः ३मील और विस्त न था। नगरको खाईके आगे ही इसकी है। इसके भी उभय पार्श्व पर कई अहानिकावोंका तीनां और नगर रक्षार्थ मुरचे हैं। पूर्वको धरला भग्नावशेष है। इस देशके लोगों के कथनानुसार नगरसे नदीकी और कोई मुरचा नहीं। दुर्गको खाईका सौदल दोघी तक पथिपावस्थ भग्न अट्टालिकायें विस्तार आजकल कहीं कम कहीं ज्यादा है। इसके मुगलोंने बनवायी थी। किन्तु यह उनका भ्रम. किनारे पर पानकरन खेती बारी होने लगी है। इससे मालम होता है। इसके मध्य एक इटास्तुपके जपर क्षेत्रमें बलसंग्रहके लिये दुगंको खाई काट कर नाना दो ओर दूसरे इष्टकस्तूप पर चार ग्रानाध्ठ पत्थरके स्थानो में मैदानसे मिला दी गयी है। दुर्गके मुर चोंका सम्पूर्ण एवं सौष्ठवशून्य स्तम्भ हैं। हिन्दूराजावांके तलभाग प्रायः १३० फीट विस्त त और २० । ३० समय यहां बहुत प्रालिकार्य थीं। चबरोधके समय फीट ऊंचा होगा। किन्तु देखते ही इसके अधिक उच्च मुसनमानाने उन प्रालिकार्वोपर अधिकार कर वास रहनको प्रतीति होती है। कालक्रमसे शिखरदेशको किया था। फिर उनको दुर्दधा मी सुसन्तमामौके मृत्तिका छूट मूलदेशमें पा लगनेसे तलदेशको हायसे हुई जिस स्थानमें एक तोरण रहनेका विस्तृति कुछ बढ़ गयी है। किन्तु इसके समझानेका - अनुमान किया जाता है, उस स्थान पोर शिशीमारी कोई उपाय नहीं-पहले पायतन कितना बड़ा 'नदीके दो मौन पश्चिम एक भग्नप्रायः तोरण मिला था? मुरचे नीचेसे अपर तक मिट्टोके बने हैं। है। प्रस्तर-निर्मिम स्वम्भादि रहनेसे इम तोरणका भली भांति समझ पड़ता है कि बाहरी ओर रटकका नाम "शिलाहार है। यह सकल स्तम्भप्रस्तर सौष्ठव- • पातसे सोग मनी मस्स्यसे इसका नाम मनोमारी क्वा। फिर शून्य हैं। और किसी प्रकार कार कार्यविषिष्ट दूसरोंके कथनानुसार सिशब्दस सिंहमारी बना। नहीं। पिसाहारवे दो मोल पत्रिम दूमरा भी तोरण Vol. IV. 105