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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४१९

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पड़ गये। ४२० कामतापुर ..अनुभव करनेका मैदान ना देखा कि उसका गोरक्षक उनका मांस पका मन्त्रीको खिलाया था। मन्बीके

एक पेड़के नीचे बड़ा सोता है और एक सर्प फणा फैला खा चुकने पर रानाने उन्हें पुत्रमुण्ड देखाया और

उसके मुखको धूप रोक रहा है। ब्राहाण सर्प देख कर समस्त विवरण बताया। मन्त्रौ नधु पाप पर गुरु- डरा और द्रुतपद भागने लगा। उसी समय सर्प दण्ड देख पतित राजसंसर्ग परित्याग पूर्वक गडाके मनुष्य प्राते देख सरक गया। ब्राह्मणने पास मानच्छलसे कामरूप छोड़ चल दिये। फिर उन्होंने जा कर देखा कि उसके पदतलमें अष्टदल पद्म, त्रिशूल, गङ्गास्नान कर प्रतिशोध लेनेको गौड़ेश्वर हुसेन थाह अर्धरेखा प्रभृति राजलक्षण है। यह देख माधण उसे नवाबसे साहाय्य मांगा था। नवाबने राज्यको अवस्था जगा कर घर ले गया और किसी प्रकारका नोचकर्म समझ बूझ कर बहु सैन्य सह कामरूपकी यात्रा की। करनेकी निषेध किया। अवशेषको एक दिन ब्रामणने घोर युद्ध होते भी कामतेश्वर पराजित न हुये। इससे उससे बुलाकर प्रतिज्ञा करा सी-किसी दिन राजा नवाब नगर घेर बैठ गये। अवरोध १२ वर्ष पर्यन्त होने पर वह उनको मन्त्री बनायेगा। कालक्रमसे रहा। मुसलमानोंने इस दौर्वकालके मध्य नगरके कामरूपराज धर्मपालके तदानीन्तन वंशधर दुर्बल | बाइर्भागमें अनेक कीर्ति विनष्ट कर अपने रहने योग्य फिर वही गोपालक उनको मार स्वयं अवान्तिका और पुष्करिणी तक बनवा लीं। अवशेषमें नीलध्धन नामसे राजा हुवा और अपने राज्यका उन्होंने कौशल अवलम्बन किया था। राजाको यह "ब्राह्मणराज्य" नाम रख प्रतिपालक ब्राह्मणको मन्त्री सम्वाद भेजा गया-मुसलमान अवरोध छोड़ चले बनाया। दूसरे प्रवादके पनुसार किसी आपके जायंगे, किन्तु जानेसे पहले मुसलमानांको रमणी घर एक दासी थी। उमौके गर्भसे एक पुत्रसन्तान रानीसे साक्षात् करना चाहती हैं। नीताम्बर प्रस्ताव हुवा। ब्राह्मणने उसे गोरक्षा नियुक्त किया। काल पर सम्मत हुये। किन्तु मुसलमानोंने दोलामें स्त्रियों को क्रमसे उक्त रूपसे वही गोरक्षक नीलध्वज हुवा। फिर न भेज सशस्त्र योहा रवाना किये। उन्होंने भीतर कोई कहता है कि गोरक्षक असुर (असभ्य जातीय)| पहुंच नगर अधिकार किया और राजाको बांध लिया। था। अन्ततः राजा नीलध्वनने मिथिलासे ब्राह्मण किसीके कथनानुसार वन्दी राजा गौड़को प्रेरित हुये और कायस्थ ले जाकर कामरूपमें बसाये थे। फिर पौर किसीके कथनानुसार वह मार डाले गये। फिर "कामतापुर" * नामसे उन्होंने एक नगर भी बसाया। कोई कहता है कि राजा प्राण वचा भागे थे। पन्ततः नीलध्वनने इस नगर में राजधानी स्थापन कर नगर मुसलमानोंने अधिकार किया। १४२० .शकको "कामतेवर" उपाधि प्रहणपूर्वक अपनेको "सच्छद्र | कामतापुरमें मुसलमानोंकी जयपताका छड़ी थी। प्राज. नामसे प्रचारित किया था। वही नगर भग्नस्तुप मात्र में परिणत है, जिसने ४००सौ नौलध्वजके पीछे उनके पुत्र चकध्वज और वर्ष पूर्व एककाल मुसलमानोका बादश वार्षिक अवरोध चक्रध्वनके पीछे उनके पुत्र नीलाम्बर राजा हुये। पमायाम सह लिया। कालको विचित्र महिमा है। नौताम्बरने ही घोडाघाटके गढ़ और अनेक कौतिकी "गुरुजनकथाचरित्र" नामक घासामके अन्य स्थापन किया। एकबार नीलाम्बरराजक मन्त्रिपुत्र लिखा है, कामतापुर में दुर्लभनारायण नामक एक राजरानी पर पासक्त हुये। रामाने उन्हें मार और राजा थे। उनके साथ गौड़ेखर धर्मनारायणका एक भीषण युग वा। दुर्लभनारायणको ही कोई काम- नौलध्वजने सम्भवतः १२५.६. शहाब्दकी कामतापुर पत्तन किया क्यके राजा धर्मपालका और कोई जितारिका था। किन्तु किसी किसीके अनुमानमें बोमनापुर नामक एक पद नपर वसीय बताते हैं। अन्ततः युद्ध में अनेक लोग मारे पहलेसे हो रहा नौलवज उसी नगरका विक्षार बढ़ा पीर दुर्गादि बना गये। फिर दोनों राजावाने रातको खा देश इसरेः कैपल रामधानी वाले गये । १२२०३० शकम भी इस मगरका नामोल "मिलता। . दिन सवता-सापन-पूर्वक सन्धि कर सी।