पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३३

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- 1 ४३४ कामरूप पोछे हापर युगमें जालौन और कलियुगमें फलिपाप उत्तर कदलीवन है; उसोका मध्यवर्ती धनुषाकार विनाशक कामाख्य पर्वत देख पड़ा। हे महेश्वरि । पीठ पद्म तथा रक्तवर्ण है। यह पीठ त्रिकोणाकार है। प्रत्येक वर्ष में तुम्हारे पीठ, उपपीठ, तीन महाक्षेत्र और इसका देयं १०० योजन और विस्तार ८८ योजन है। तीन महारण्य विराजित हैं। फिर प्रत्येक पीठमें इस पीठस्थ में भी महादेषका क्षेत्र है। यह देव- महादेव, चतुर्भुज विष्णु, गङ्गा और पार्वतीका अधि. त्रय और माधवारण्य, महादेवारण्य एवं मर्गारण्य ठान है। प्रत्येक पीठ और प्रत्येक क्षेत्रमें एक एक अरण्यवय वर्तमान है। इम पेठके उत्तर प्रदचेव, पुण्यारख अवस्थित है। दक्षिण समुद्र, पूर्व उदयकूट और पश्चिम बोपर्वत है। 'कलिकाल में गृहसे दूरवर्ती स्थान मात्र पर तीर्थ इसौके मध्यवर्ती पीठका नाम पुण्यपीठ है। काम बुद्धि रहती है। किन्तु जहां भावनाको सिद्धि पाती, वही रूपके मध्यस्थन्चमें षट्कोण, नवव्यूह और त्रिमण्डनयुक्त भूमि तीर्थ मानी जाती है। प्रत्येक पीठ में धर्म और पवित्रतम एकवेदी है। फिर यहां दश पर्वत प्रव- आचार पृथक् पृथक् है। देशभेदके अनुसार कुन्नका स्थित हैं। मध्यपीठ नामक महापौठस्यममें कामेश्वर प्राचार भो पृथक होता है। इसलिये प्रत्येक पीठका महादेव और चम्पावती नदी हैं। कन्यायम नामक पूजन और मन्त्र स्वतन्त्र है। हे पार्वति ! मत्यंभूमिमें | महाक्षेत्रमें रुद्रदेवका पदय है। एकामक्षेत्रमें नागात- तोरपीठ, दाक्षिणात्य देशमें भद्रपीठ, पाचात्य देशमै शङ्कर हैं। मानसक्षेत्रमें विश्वेश्वर, नाटकारण्य और जालन्धर और पूर्व दिक्में पूर्वपीठ है। चम्यकारण्यका प्रवस्थान है। गौतमके दक्षिण भागमें 'ईशान और पूर्वभाग, कामरुप है। इसके वायु- पिच्छिला और महावी है। कोणमें जालन्धर, उत्तरमें कोल्वापुर, महेन्द्र के किञ्चित् प्राचीन कामरूप प्रदेशके समस्त उत्तरांशका नाम उत्तर ईशानदिको विहार और पूर्वमें श्रीहट्ट है। सौमार है। योगिनीतन्त्रमें इस प्रकार चतुःसीमा है देवेखरि। अतःपर उपपौठका विवरण श्रवण निर्दिष्ट है- करी। श्रोड्रपीठ ६८ योजन विस्तृत है। शकटाकार "पूर्व स्वपनदी यावत् करतोया च पश्मेि । पीठ चतुष्कोण, चार हारयुक्त और वायुविम्ब चिन्हित दक्षिरी मन्दशेलय उत्तरे विहगाचम्नः। है। सिन्धुभट्रक पीठमें दा कोटि तीर्थ हैं। फिर प्रस्तार व व्यासाध" योजनानाच परकम् । उता स्थानमें सीमेश्वरलिङ्ग अवस्थित है। पिरन अयुषवयच विमोसः पचौडव तथा दशा पष्टकोप सोमारं यन दिहरवासिनी। नामक क्षेत्र और एकाम्रक्षेत्रमें कामधेनु तथा चक्रेखर वस्मिन् वमति मा देवी ज्ञानात् ध्यानाद्वोऽपि वा । शिवका अवस्थान है। भास्कर नामक महाश्वमें तेऽपि देव्याः प्रसादेन स्थिति गच्छन्ति नान्यथा। मातङ्ग महादेव, पवित्र कुशस्थली, दन्तकवन और प्रयोदयौ नव पीठं मौमाराभ्यां तु कथ्यते । सुमन्तवन है। इस क्षेत्रके पूर्व शिवयूप, पखिम धेनु. वसत्य जयं प्रत्यच यव दिकरवासिनी । कारण्य, उत्तर गयाशिरः और दक्षिण चन्द्रभागा तथा दिक्करस्य च वायव्ये मौलपोठ मुटुर्लभम् ॥ प्रोडपीठ है। हे वरानने ! इसका देयं त योजन यव कामेश्वरी देवी योनिमुद्रास्वपित्री। पारिजातं महा यवादित्यस्तु गढारः। पौर विस्तार तीस योजन है। जहां योनिमुद्रारूपिणी कोषे यम्य पुरब तथा चामरकण्टकम । कामेश्वरी देवी, भूगोलपीठ, गोलोकेश्वर, धर्मपीठ, पारणामाथिनच व गीतमारण शिवम् ।" महापीठ, कामेश्वर शिव, प्रविमुक्त एवं इंसप्रपतन क्षेत्र, ब्रह्मयूप, खेतवट, कुरुक्षेत्र, मायाखना नदी, पवित्र 'सौमारकी चतुःसीमा, पूर्व स्वर्णनदी ( वर्तमान अयोध्यारण्य, धर्मारण्य, क्वचात्मक नामक महारख्य स्वर्णधी), पश्चिम करतोया, दक्षिण मन्दशेस और उत्तर विहगाचन है। तथा. पातालयङ्करका अवस्थान है और जिसके पूर्व 'प्रष्टकोण सौमार और दिकरवासिनीके सलमें गण्डकी नदी, पश्चिम विष्णुयूप, दनिय हषभलिङ्ग एवं