पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३४

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कामरूप ४३५ महादेवी अवस्थान करती हैं। फिर उक्त स्थलमें। कोलपीठ है। प्रथम क्षेत्रको कुमार क्षेत्र, हितोयको देवौके अनुग्रहसे पीठादि भी अवस्थित हैं। श्रतःपर नन्दन और तृतीयको शाखती क्षेत्र कहते हैं। प्रथम नवपीठका विषय कथित है। दिकरवासिनीमें अजय वन माता, हितोय सिद्धारण्य और तीय विपुलवन नामक प्रत्यक्ष पीठ और दिक्करके वायुकोणमें दुलर्भ कहलाता है। यह वन कोटि कोटि लिङ्गयुल और नीलपीठ है। इसी स्थान पर योनिमुद्रारूपिणी कोटि कोटि गणाधिष्ठित है। पूर्व सीमापर पञ्चतीर्थ, कामेश्वरी देवीका अवस्थान है। आदित्यशंकरको पश्चिम धनदा नदी, दक्षिण पत्रा और उत्तर कुरुवका अवस्थितिके स्थानका नाम महावि पारिजात और वन है। इसोके मध्यस्थल में श्रीपीठ अवस्थित है। पपर पीठका नाम कौपियपुर, अमरकण्टक, पारण्य, रत्नपीठका वर्तमान नाम कोचविहार है। आश्विन, गौतमारण्य और शिवनाथारण्य है।' सम्भवतः कामतेश्वरी देवी के यहां रहनेसे रत्नपीठ नाम सौमारके अंशविशेषका नाम सौमारपीठ है। पड़ा है। प्रासामको बुरखोके मतमें स्वर्णकोषो नदीसे यह आसामके उत्तर-पूर्व भागमें अवस्थित है। इसकी रूपिका नदी तक रत्नपीठ है। योगिनीतन्त्रम चतुःसीमा इस प्रकार निर्धारित है,- लिखा है, "परण्यं शिवनाघस्य गण पीठावधि प्रिये । "रणपोटे तु पडुम्त सोहिल्या चैव उत्तरे।" पूर्व सौरशिलारण्य परिमे स्वपदी रामा । प्रासामकी बुरजीके मतमें करतोया और स्वर्ण- दधिणे वधायपस्त हार मानसरः। कोषी नदीका मध्यवर्तीस्थान कामपीठ है। किन्तु एतन्मध्यगत पीठं मुखिसविनायकम् । योगिनीतन्त्रमें कामपीठका अपर नाम योगिनीपोठ सौमाराला महापौठं षट्कोपन्तु विमङ्गलम् । लिखा। योगिनीपोठका वर्तमान नाम कामाख्या सहनयोजनस्याम' इयवायच पचमम् ॥" ( योगिनीमन्च, २१) है प्रिये । इस शिवनाथके अरण्यको चतुःसीमाका है। कामगिरिके ऊपर अवस्थित होनेसे उक्त पीठका निर्देश श्रवण करो। इसके पूर्व सौरशिलारण्य, पथिम नाम कामपाठ पड़ा होगा। यथा,- “यौगिपीठं कामगिरी कामाखा तब देवता।" (नवचढ़ामणि, पौठमाला) खणदी, दक्षिण ब्रह्मयूप और उत्तर मानससरोवर है। कामाखा देखो। इसीके मध्यस्थल में भुक्तिमुक्तिप्रद पट्कोण और त्रि- कामाख्यासे कुछ दूर योगिनौतन्त्रोक्त उग्रपीठ और मडल सौमार नामक महापीठ है। इस पीठका परि- ब्रद्धापीठ है। यथा,- माण सहन योजन व्याम है। इसको पक्षम झ्यताम "ब्रममुखाय पोटं उग्रतारांधिदेवतम् । भी कहते हैं। सत् पीठं विविध प्रोत' गुम वान' महेश्वरि । आसामको दरलोके मतानुसार भैरवीर दिकराई मनोमवगुभावहो देवोशिखरमुनतम् । नदी तक सौमारपीठ है। सन्मडीयमिति यावं पोठं परमदुम्समम् । श्रीपीठको चतुःसीमा इस प्रकार है- सिद्धिकालो धापा देवता भुवनेश्वरी। "पारादी प्रथम पोठं दिसोय कोलपीठकम् । निवसे राव या काम्लो पारस्पषिमागिनी" छमार प्रथम दितीय नन्दमाद्यम् । (योगिमीतन्त्र, ११) वतीय भाववी माता' प्रथम वनम् । वुरलीमें स्वर्णपीठ नामक एक पीठका उल्लेख है। सिद्धारया दितीय तीर्थ विपुल वनम् ॥ किन्तु कालिकापुराण और योगिनीतन्त्रमें स्वर्णपीठका कोटिकोटियुतं लि कोटिकोटिंगयुतम्। नाम नहीं मिलता। कालिदासने अपने रघुवंशमें पञ्चती भवेत् पूर्वे' पथिम धनदानदी । इसीको "हमपीठ" लिखा है,- पनामा दत्तिये चैव सचरे कुरुवकावनम् । "समीशः कामरूपाणामयाब लविक्रमम् । एतन्मध्यगतं देवि थोपीठं नाम नामतः" भने मित्रकटनांगरणानुपरुरोध यः । ८३ (योगिनौतन्त्र, २१ पटक्ष) कामरूपेश्वरमस्य हेमपीठाधिदेवताम् । प्रथम पीठका नाम वाराही और द्वितीयका नाम रखपुष्पोपहारपशवामानाचं पादयोः। ८४ (रघुवंशध्य वर्ग) ।