पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३९

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कामरूप धाराको सरस्वती कहते हैं। मतङ्ग पर्वतको धारा भी है। उसको पश्चिम दिक् विष्णुका मन्दिर है। मणि- नर्मदा नामसे पुकारी जाती है। कामकुण्डको . कूटको उत्तर दिक, वलभा नदी है। मणिकूटको धाराका नाम कामगङ्गा है। कामाख्याको धारा पूर्वदिक पनतिदूर विष्णुका पुष्करतीर्थ है। गङ्गा कहाती है। नीलकुण्डको धाराको उर्वशी कहते 'यथाविधान इन तीर्थों में नान, दान, पूजा, हैं। व्यासकुण्डको धारा सुभद्रा नामसे अभिहित है। प्रदक्षिण पादि कार्य करनेसे अक्षय पुण्य लाभ शक्रशैलकी धाराका नाम चन्द्रभागा है। सोमकुण्डको होता है।' धारा उर्वशी नामसे प्रसिद्ध है। यमशैलको धाराको (योगिमीतन्न २१-८ पटख) वैतरणी और भण्डौथको धाराकी गोदावरी कहते हैं। कालिकापुराण और योगिनीतन्त्रक पाठसे काम- धर्मारण्य के मध्य रामद नामक तीर्थ है। उससे ३० रूपके प्राचीन भूतान्तका बहुत परिचय मिलता है। धनु दूर उत्तर ओर कोटिलिङ्ग है। इसी लिङ्गके कालिकापुराणके मतानुसार कामरूपमें निम- सम्मख भागमें ब्रह्मायोनि है। लिखित पर्वत विद्यमान हैं,-. 'वराह और कामके मध्यवर्ती स्थानमें अपुनर्भव १ चन्द्रगिरि, २ सुरस, ३ नौल, ४ कृति- क्षेत्र तथा अपुनर्भव नामक ८ धनुपरिमित सरोवर है। वासा, ५ मुतीक्ष्ण, ६ विधाट, ७ शुभाचल, ८ धवन, उसके उत्तर.तौर भद्रकाश पर्वत है इसी पर्वतम ८ गन्धमादन, १० गोप्रान्त, ११ मणिकूट, १२ मदन, पौत्रवित्ता और शोणच्युति शिला है। उसके ५ धनु १३ दर्पण, १४ रोहण, १५ पग्निमान्, १६ कंसकर, दूरवर्ती स्थानमें भववीथी नामक क्षेत्र है। अपुनर्भवको १७ वायुकूट, १८ दुर्गाल, १८ चन्द्रकूट, २० आनन्द पूर्व ओर धनु दुर ७ धनु विस्तृत वाराणसीकुण्ड है। वा भस्माचल, २१ मत्सप्रध्वज, २२ काम, २३ सुकान्सक,. उसको पूर्व दिक् ५ धनु दोघं मार्कण्डेय इद है। २४ रचकूट, २५ पाण्डुनाथ, २६ चित्रवह, २० जन- हुदके उत्तर तोर मार्कण्डेश्वर शिव हैं। गोकर्ण | गिरि, २८ कष्ट, २८ वराह, ३० पर्वाक्, ३१ कन्जड, अनतिदूर ब्रह्मसरः नामक कुण्ड है। उसको पश्चिम ३२ दुर्जयगिरि, ३३ चोभक, ३४ सन्ध्याचल, ३५ भग- दिक शैलरूपी वराहदेव हैं। गोकर्णको ईशान दिक् वान्, ३६ शृङ्गाट, ३७ नाटक, ३८ हेम, ३८ भद्रकाश, ३धनु दूरवर्ती स्थान पर मदन पर्वत है। वहां ४० नन्दन। इनको छोड़ योगिनीतन्त्रमें निम्नलिखितः केदार नामक महादेवको मूर्ति विराजित है। पर्वत भी कहे हैं,-४१ मन्दशैन, ४२ विहगाचल, ४३,. केदारको पश्चिम दिक ब्रह्मवटवश है। केदारको स्पर्शचल, ४४ ब्रह्मायूप, ४५ विन्ध्याचल, ४६ मानशैल, उत्तर दिक ३ धनु दूरवर्ती पौष्यक नगर में कमलाक्ष ४७ शिवयूप, ४८ इन्द्रशैल, ४८ श्रीशैल, ५० मतक,५१. महादेव हैं। ब्रह्मवट नामक कल्पवृक्षसे ३ धनु दूर हास्याचल, ५२ कोतपर्वत, ५३हस्तिकणं,५४ विकणंक, दक्षिणदिक को छत्रकोर पर्वत है। इसीके मध्य ५५ अमांचल, ५६ ह्युमन्त, ५७ कनक, ५८ नौस- .देशमें मन्दार नामक उन्नत गिरि है। छवकीरको लोहित, ५० गन्धर्व, ६० पिशाच, ६१ पादित्य, . पूर्व और मधुरिपुनामक विष्णुको मूर्ति है। इसी ६२ भन्नातक, ६३ धनद, ६४ महीध्र, ६५ जनक, 44 पर्वतको उत्तर दिक २० धन दूर कपिलाश्रम है। नल, ६७ मण्डल, ६८ यम, ६८ गोविन्द, ७० विखत्री, वहां कपिलखा देवता हैं। कपिलाश्रमकी पूर्व ७१ भण्डीश, ७२ छत्रक, ७३ परिपात्र, ७४ पूर्णशैत इत्यादि। दिक ११ धनु दूर पिशाचमोचन तीर्थ है। यहां कालभैरव देवता हैं। व्यानेश्वरदेवको ईशान दिक, वालिकापुराणमें नदियोका नाम मिलता है,- १० धनुदूर कत्तिवासेखर हैं। मदन पर्वतको ईशान दिक. ३ धनु दूर वाणेश्वर, सप्तपातालभेदक और १ सुवर्ण मानस, २ जटोद्धवा, ३ विस्रोता, ४ सिता वाहत लिङ्ग हैं। वाणेश्वर के वायुकोणमें गरु लिङ्ग प्रभा, ५ नवतोया, ६ योगदा, ७ महानदी, ८ वा कामरूपकी निनलिखित