पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४३८

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कामरूप ४३९ 1 शिला लक्ष्मी नामसे अभिहित होती है। इससे | लिङ्गसे दक्षिण चतुष्कोण शिवमूर्तिका नाम दक्षिण- अनतिदूर दक्षिणदिौ ८ धनुपरिमित कोमक्षेत्र है। मानस है। कामनाथसे ७ धनु दूर पश्चिम पोर इसी स्थान पर अवस्थके मूलमें विष्णुको पाषाण मूर्ति | दीर्धेश्वरी देवी है । कामेश्वरदेवको उत्तर ओर १२ हस्त विराजित है। ब्रह्मकुण्डके निकट श्रीकुण्ड नामक दूरवर्ती स्थानमें कामसरोवर है। कम्बलदेवको दक्षिण २ धनुपरिमित सरोवर है। उसकी पूर्व पोर २२ भोर ८ धनु दूरवर्ती स्थानमें कोटीश्वरी देवी हैं। 'धनु दूरवर्ती स्थानमें कनखल नामक तीर्थ है। उसके लोकचक्षु देवीसे २ धनु दूरवर्ती स्थानमें तीन धारा है। दक्षिणदिकभागमें मनोहर पर्वतके ऊपर ४ धनु हममें मध्य धारा सरखतौ, दक्षिण धारा वरुणा और परिमित चम्पकेश्वरको मूर्ति विराजित है। इस उत्तर धारा यमुना कहाती है। विधाराके सङ्गमस्थल मूर्तिको पूर्व पोर ८ धनुपरिमित पुष्करती है। पर आकाशगङ्गा हैं। उनको उत्तर ओर प्रतिदूर पुष्करको नैऋत ओर किञ्चित् वामभाग, २८ धन शुक्लवर्ण वासुदेवको मूर्ति है। कामेश्वरके पश्चाद्भागमें परिमित वदरिकाश्चमतीर्थ है। यहां विभाण्डक सिद्धेश्वरको मूर्ति है। उनके निकटवर्ती स्थानमें नामक शिवलिङ्ग पधिष्ठित है। पुष्करके पूर्वभागमें छायारुद्र हैं। विध्याचलके निकटवर्ती स्थानमें कुमार नामक सरोवर है। यहां स्थाणु नामक विन्ध्येश्वरी शिन्ता है। उसको पूर्व-उत्तर भोर १०० महादेव हैं। उक्त चम्पकेश्वरके नामानुसार २ धनु दूर आकाशगङ्गाका चिह्न मिलता है। इसके धनुपरिमित स्थानमें एक वन है। वह चम्पकवनके दक्षिणभागमें सुरदीर्घिका शिला है। यह शिक्षा मामसे प्रसिद्द है। नीलकूट की पूर्व और दुर्गाकूपसे । ललिताकान्ता कहाती है। इस स्थानमें नन्दि- ३ धनु दूर घाम्रातकेश्वर नामक महादेव हैं। रूपी अश्वत्थ और उसके मूलदेशमें कूक्तिति श्रामातकेखरको दक्षिण भोर ८ धनु दूरवती स्थानमें | चिला है। इससे अनतिदूर व्यासतीर्थ और व्यांसेश्वर- कृष्णवर्ण गजाकार गणदेवको मूर्ति है। उसको पूर्व देवका अवस्थान है। व्यासतीर्थसे २० धनु दूर पूर्व पोर १ धनु दूर विधिक्रमको मूर्ति विराजती है। और इस्तिरूपिणी देवीमूर्ति है। इसौकी पूर्व ओर इस मूर्तिसे १ धनु दूरवती स्थानमें ४० इस्तपरिमित प्रतिदूर हस्त परिमित भुवनेखरको मूर्ति है। सौभाग्य सरोवर है। यह कामाख्या देवीका क्रीड़ा उसके वायुकोण पर अगस्त्याश्रममें गङ्गाधरको मूर्ति सरोवर कहाता है। इसोको ईशान पोर लोहित्य | है। गङ्गाधरको अनसिदूरस्थ उज्ज्वल खेतशिलाका सरोवर, पग्निकुण्ड धौर यामलसरोवर है। सौभाग्य नाम जल्पोश है। उसको पश्चिम और सदाशिव-मूर्ति सरोवरसे ५ इस्त दूरवर्ती ने त दिकमें गङ्गासरः है। है। सदाशिव निकटवर्ती स्थानमें हो, गोविन्द इसके उपरिभागमें अगस्यकुण्ड है। इस कुण्डको | पर्वतस्थित गोविन्दकी मूर्ति है। उसको पूर्व ओर पूर्व और कृष्णशिलाको पश्चिम पोर वराहतीर्थ है। धनु परिमित रक्तवर्ण शिलाका नाम शरणयी है। इसके अग्निकोणमें कम्बन नामक शिवको मूर्ति | उच्च शिवाचलमें प्रकटा नाम्नी महादेवी हैं। विध्या- अधिष्ठित है। अनन्तकुण्डको पश्चिम ओर असिचनको उत्तर पार धनु दूरवर्ती स्थानमें महालक्ष्मो मदी है। उससे पचिम वरुणा नदी वही है। हैं। श्रीपर्वतमें बौकुण्ड नामक तीर्थ है। गोतमाश्रममें 'यह साल स्थान श्रेष्ठ तीर्थ गिने जाते हैं। यहाँ वृषभध्वज नामझ शिवको मूर्ति और इंसतीर्थ सरोवर यथाविधान पूजादि कार्य करनेसे अनन्त पुण्य है। पाण्डुकूटसे निकलनेवाली धाराका नाम. नर्मदा होता है। (योगिमीतन्त्र, राह पटल) नदी है। शिव और विष्णुमूर्तिके मध्यवर्ती स्थानसे 'मानमतीर्थ नामी महानदीको उत्तर ओर २ धनु जो धारा आती, वह महानदी कहाती है। - नितम्ब दूरवर्ती स्थानमें प्रेतशिला है। वासुदेवसे १८ धनु और धन उभयको मध्यवर्ती धारा मङ्गला नामसे दूर पश्चिम ओर पञ्चकोण उत्तरतीर्थ है। कोटि- विख्यात है। विखंत्री पर्वतके सीमादेश निःसृत