पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४४५

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४४६ कामरूप कमनप्रियासे विवाह हुवा। विवाहके स्थानको आज भी या १५६६ ई० को भगवती कामाख्या देवीका मन्दिर "रामरायका कोठी" कहते हैं। ग्वालपाड़ा जिलेके तोड़ने गया था। कोचविहारमें उस समय महारान चना परगने में उक्त स्थान विद्यमान है। वहां मेला भी नरनारायण राजा थे । कालापहाड़ के पराक्रमसे सन्त्रस्त लगता है। कमलनारायण नामक किसी दूसरे हो उन्होंने सन्धि को। कालापहाड़ भगवतीका कुमारने भो भाटान और आसामके मध्य ब्रह्मपुत्रके मन्दिर तोड़ और पीठस्थानवर्ती सुन्दर सुन्दर अन्यान्य उत्तर किनारे एक बांध बांधा था। उस बांधका नाम प्रतिमूर्ति बिगाड़ स्वदेशको नौट गया। महारानने "गोसाई कमलको प्रालि" है। लखीमपुर और अपने माताके साथ भगवतीके मन्दिरादिका पुनः जलपाईगुड़ीके मध्य अनेक स्थलोंमें उसके चिह्न प्रान संस्कार किया। कमसे कम बारह वर्षमें उस भी वर्तमान हैं। उस समय सजन वा सुजन नीर्ण संस्कारका कार्य सुसम्पन्न हुवा था। कामाख्या ग्राममें पण्डित रामखान भूया नामक एक राजा थे। मन्दिरको वर्तमान (चलन्ता) मूर्ति (जो साधारणतः उन्होंने चुपके चुपके विद्रोहको पाग सुलगायो। सरकायी जाती है) महाराज नरनारायणको बनायो किन्तु पन्तको भय देख उन्हें भागना पड़ा। है। वर्तमान मन्दिरके मध्यभागमें ही महाराज आसामको बुरजी और पन्यान्य इतिहासके मता. नरनारायण और उनके माता शुक्लध्वजको प्रस्तर नुसार विश्खसिंहके बड़े पुत्र नरनारायण और खोदित सुन्दर दो प्रतिमूर्तियां प्रद्या पिं वर्तमान हैं। छोटे शलध्वज वा चिलाराय थे। किन्तु राम महाराज नरनारायण और शुक्लध्वन महामायाके सरस्वती पण्डित-प्रपीत ग्रन्थमें लिखा है,- परम भक्त थे। भगवती भी उन पर यथेष्ट अनुग्रह विखसिंहके शयीसिंह नामक एक पुत्र थे। शशी रखती थौं। महाराज कोचविहारसे विन्न ब्राण ले सिंह पल्प वयसमें लोकान्तर प्राप्त हुये। उनकी जाकर भगवतीको पूजा आदि निर्वाह करते थे। कन्याक गर्भसे (ठीक नहीं किसके औरससे) पपुत्रक केन्टुकलाई नामक कामाख्याके एक पुनारी ब्राधण, विश्वसिंह रानाके परम सुन्दर रूपवान् एक दौहित्रका महाराज नरनारायण और शुक्लध्वजके सम्बन्ध पर जन्म हुवा। पण्डितांने उसका नाम नारायण रख कामरूपमें अद्यापि निम्रलिखित जनप्रवाद प्रचलित दिया। है-सन्ध्याको केन्दुकलाईके भारति करते समय उक्त नारायण और उनके भ्राता शक्लध्वज (चिसा भगवती मुग्ध हो घण्टा वायके ताल ताल पर नृत्य राय) का नाम कामरूपमें सविशेष प्रसिद्ध है। करती थों। महाराज नरनारायणने यह सुन महाराज नरनारायण अधिक बलशाली थे। उन्होंने केन्टुकलाईसे भगवतीको चैतन्य मूर्ति देखनेका उपाय विदेशियों के हाथसे सम्पूर्ण रूप उदार कर कामरूपको पूछा। उन्होंने कहा कि घण्टा बजते समय सन्ध्याको बहुत उति को। महाराज नरनारायणका दूसरा किसी रन्ध्रसे देखने पर उन्हें भगवती को चैतन्य मूर्तिका नाम मलदेव वा मलनारायण था। उनके समय दर्शन होगा! महाराजने उक्त परामर्शके अनुसार पुरुषोत्तम विद्यावागीधने संस्कृत रत्नमाला व्याकरण एक दिन जाकर भगवतीको देखा था। दैवात् बनाया। वह प्राजकल आसाममें प्रचलित है। भगवतीको यह बात मालूम हो गयो। उन्होंने केन्दु- हिन्दूधर्म विद्वेषो विख्यात कालापहाड़ • १५६४ कचाईका शिर काट महाराज नरनारायणको शाप दिया,-'भविष्यत्में तुम और तुम्हारे वंशका कोई • "श्रीमल्लदेवस्य गुर्ण कसिन्धीमहीमहेन्द्रस्य यथा निर्देशम् । भी इमारा-दर्शन- कर न सकेगा। -मन्दिरको ओर यबात प्रयोगोचमरवमाला वितन्यते श्रीपुरुषोत्तमन।" रखमाला) देखनेसे शिरश्छेद होगा।' उक्त शापके भयसे आज पाधुनिक बुरशीक मसमें १४९. शकको रखमाला बनी थी। भी कोचविहार, बिजनी, दरा इत्यादि शिववंशी + कामरूप पचलमें कालापाहारको "पोरासुठार" "पोराकार, राजपरिवार कामाख्याके मन्दिरको भोर प्राय जाते भोर "कालामृठाम" भी कहते है।