- ४५० कामरूप उनका सौहार्द स्थापित हुवा। फिर उन्होंने भूषणेके | दुर्ग पर आक्रमण किया। फिर ठीक उसी समय जमान जमीन्दारकी भांति अासाम और कामरूपादेयके खान्दछिणकूलके चन्द्रनारायणको ध्वंम कर समन्य अनेक प्रधान व्यक्तियों के साथ बन्धुता बढ़ाई। ना मिले। इसीसे वलदेव नूतन और वर्धित सैन्य का शेख अला-उद-दीनके पीछे होनेवाले सब नवार्थाने वेग सह न सके। वह समैन्य दुर्ग छोड़ भागे थे। उन्हें दरबार में जानेके लिये कई बार श्रादेश किया था। टुर्ग अधिकार कर नवाबंका सैन्य चन्दनकोटको चना किन्तु न तो वह कभी उपस्थित हुये न नियमित पेश गया। राहमें बड़नगरके नमोन्दार उत्तमनारायणशा कंश ही भेजी। नवाब इसनाम खानने देखा कि पत्रवाहक एक पत्र ले कर पहुंचा। उसमें जिग्ना मुकुन्दरायका दरबार में पहुंचना कभी सम्भव न था। था,-"वलदेवने वृहद सेन्यदन के साथ बड़नगर पर इसलिये उन्होंने उनके पुत्र शत्रु जित्को बुला भेजा। आक्रमण किया है। किन्तु उत्तमनारायण उन्हें शत्र जित् गये। उन्होंने दरबारमें यथारीति नवाबकी वाधा न पहुंचा सकने केकारण नवाबके मैचमें वश्यता दिखलाई थी। उस समय नवाब हाजीके मिलनेको आगासे खुण्टाघाट गये हैं। मुहम्मद विरुद्धमें सैन्य भेज रहे थे। उन्होंने शव जित्को भी जमान् खान्ने कुछ सैन्य ले उसी ममय वनदेवके विरुद्ध उसी सैन्चके साथ भेज दिया । किन्तु शत्रु मित् वड़नगरको यात्रा की। राहमें उत्तमनारायण मिन्न भासामराज एवं राजा बलदेवसे बन्धुता मान चुपके गये। नवावके सैन्यका अवशिष्ट अंश चन्दनकोट चुपके गूढ़ संवाद और दूसरे जमीदारों को उनसे पहुंचा था। नवाब जमान् खान्ने पोमारी नदी पार मिलने के लिये उत्साह देने लगे। अन्तमें नवाचको हो बलदेव के एक क्षुद्र दुर्ग पर अधिकार किया । फिर सेनाने धुबड़ी पहुंचतेही शव जित्को वांध लिया वह अग्रसर होने लगे। वनदेवने देखा कि जमान और नहांगोरनगर भेज दिया। वहां विचार होने पर खान् प्रायः जा पहुंचे थे। उसी समय उन्होंने बड़नगर शव नित्को प्राणदण्ड मिला था। छोड़ क्षत्री नामक स्थानको गमन किया। वहां अबद-उस् सलामके विनष्ट होने पर कोचों और बलदेव पर्वतके किनारे किनारे कई एक दुर्ग बना कर प्रासामियाँको सेना १२००० पदाति तथा वहुसंख्यक बैठ गये। जमान् खान्ने मो इसांसे लौट विष्णुपुर के कासा नौका लेवनाश नदीको राह ब्रह्मपुत्रके तौर जंगन में स्कन्धावार स्थापन किया था। फिर उन्होंने योगोघोपा (योगोगुहा) नामक पर्वत पर पहुंच गयो । वर्षा अतीत होनपर बन्नदेव पर आक्रमण करना ठहरा उक्त पर्वतके नीचे हो ब्रह्मपुत्रका बनाश सङ्गम है। लिया। उसी समय बन्त देवने विष्णुपुरसे डेढ़ कोम प्रासामी वहां एक सुदृढ़ दुर्ग बना नवाबके सैन्यको दूर कालापानी नदोंके तौरपर रहनेवाले विपक्षियों का प्रतीक्षा करने लगे। फिर उक्त दुर्गके बिलकुन्न सामने रषिदल छिन्न भिन्न कर डाला । पाण्डु और अोवाटसे ब्रह्मपुत्रके दूसरे तटपर भी होरापुर नामक स्थानमें उसो ममय उनका भी नूतनं, सैन्य भा पहुंचा था। वैसाही एक और दूसरा दुर्ग बना था । योगीगुहाके उन्होंने बोचबीचमें रातको आक्रमण मार नवाव मेन्य दुर्गमें ३००० और होरापुरके दुर्गमे अवशिष्ट ८.०० को व्यतिथ्यस्त कर दिया। वर्षा होत गयो । प्रामाम- सैन्य रहा। नवाबका सैन्च धुबड़ी छोड़ खानपुर नदोको राजके नामाता बलदेवसे ना मिले थे। उसके पीछे राह ब्रह्मपुत्र पार हुवा फिर वह जङ्गल काट और १६३७ई० को ३१ वों अगस्त को रातके समय बमदेवने मार्ग बना योगीगुहाको ओर बढ़ा था। नवाब विपक्षियोंके दो क्षुद्र दुर्ग प्रधिकार कर लिये । किन्तु सैन्यके प्रधान सेनापति और सेनानी के अधीन ३००० दूसरे दिन सबेरे जमान् खान्ने हठात् कितने ही पथरकलावाले सिपाही थे। क्रमशः गहमें दोनों दल सैन्यके साथ बलदेव पर आक्रमण मारा था। उनके सम्मखीन हुये। भासामी प्रथम प्राक्रमपसे ६ कोस कुछ सिपाही बनदेवमे सामने लड़ते रहे। फिर इटे थे। दूसरे दिन नवावके सैन्यने योगीगुहाके ! अवशिष्ट सैन्धके साथ उन्होंने वनदेवक रचित स्थानोंपर
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