पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४५०

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कामरूप ४५१ - पाक्रमण किया। उस समय उनमें वैसा सैन्य न था। पासामको बुरखीको देखते शुलध्वनके पुत्र इंसीसे वह एक एक कर विपनौके हाथ जा सगे। रघुदेवने राजा हो नगर संस्कार और इयग्रीव-माधव- अनेक सेनापति मरे थे। फिर बहु सैन्य भी क्षय हुवा। का मन्दिर निर्माण कराया। उनके पिताने प्रासामके कितनी ही बन्टूकों, तोपों और दूसरे इथियारोंकी महाम राजावाको युद्दमें परास्त कर अपने शासना. हानि हुयी थी। किन्तु वनदेवको सम्पूर्ण पराजित धीन रखा था। किन्तु रघुदेव वह कर न सके। होते न देख नपाएका सैन्य उसी दिन रातको विष्णु उन्होंने पासामके अहोमराजको मङ्गलदेवी नानी 'पुरकै जङ्गलमें भाग गया। उसके पीछे मवम्बर मासमें निज कन्चा दे निरापद राजत्व किया। आधुनिक चन्दनकोटमे नतन सैन्धने जा तीन तरफसे बलदेव पर दुरबीके मतमें १५१५ शकको रघुदेव रामा हुये थे। पाक्रमण किया था। उस समय बलदेव या प्रासाम रघुदेवने गदाधर तीर जो नगर बनाया, उसका चलित रानका सैन्य पहुंचा मथा। इसोसे विपक्ष भीषण नाम गिन्नामाड़ या गिलाविजय है। (यहां गिना आक्रमण बलदेवका अल्पसंख्यक सैन्य ठहर न सका। गेलहा या चियन इचका वन यथेष्ट था।) वह शीघ्र ही रण छोड़ भागा था। बलदेवने स्वयं । रघुदेवके पुत्र परीनित्-नारायणके जो मन्त्रा दरत की राह पकड़ी। प्रासामरानके जामाता बन्दी दिलीके बादशाहके पाससे कानूनगो हो कर पाये बन गये। इतावशिष्ट सैन्यदल श्रीघाट और पाण्डुकी थे, उनका नाम कवीन्द्र बडुवा था| रांगामाटोके भोर भागा। वहां प्रासामराज ससैन्य रसद वगैरह वर्तमान जमीन्दार उन्हीं कवीन्द्र बड़बाके वंशधर हैं। लिये उपस्थित थे। नवाम का मैन्य एक बार उन पर पटनामें परीक्षितको मृत्यु हुयो। उनका रान्य थाक्रमण करने गया । अक्षय पर्वत, श्रीघाट सुचनमानोंके हाथ पड़ते भी मानहानदोके पश्चिमसे और पाण्डुमें भीषण युद्ध हुवा। आसामराज परास्त स्वर्गकोषोंके पूर्व पर्यन्त उनके पुत्र विजितनारायणके "हो स्वराज्य लौट गये। कोचहाजो प्रदेश मुसलमानों के वह मुसलमानों के नोचे करद राजा अधिकारमें हो गया। पासामग्रान्तमें कलङ्ग नदी और बने थे। इसी प्रकार मानहानटोके पूर्व से दिकराई तक ब्रह्मपुत्रके मध्य काजली दुर्ग अधिकार कर मुसलमान परीक्षित्के माता वलितनारायण भो करद राजा हुये। क्षान्त हुये। उधर एक दल सैन्धने दरङ्ग ना बलदेवको विजनीक राजा विजितनारायण और दरङ्गके राजा भगाया था। बलदेवने अवशेषको आसाममें धुम वलितनारायण सन्तान हैं। सम्भवतः विजितनारा- 'शिङ्गी नामक स्थानमें श्राश्रय लिया। अन्तिम अवस्थाम यणने ही विजितनगर या विजनी स्यायन किया था। दो पुत्रोंके साथ उन्होंने वहीं स्वर्गनाम किया। इसी पहले वह मुसलमानांकी करमें अर्थ देते थे। फिर कर- युद्दमें कामरूप सम्पर्ण मुमलमानांके अधीन हो गया। स्वरूप हाथो देने का नियम हुवा। शेषको अंगरेजोंके उपरि-उता घटना पादशाह-नामसे दी गयी है। अधीन प्रर्थ देने का नियम पुन: बंध गया है। किन्तु बुरजी या मिटर मार्टिनक ग्रन्थमें बलदेवका मुसलमानोंके अधिकारसे कामरूप समस्त परि- नाम नहीं मिलता। परीचित् नारायणके चन्द्र. वर्तित हो गया। देशका आचार व्यवहार, भूमिका नारायण पुत्रको बात भी किसी ग्रन्थमें देख नही प्रबन्ध और राज्यप्रणाली वङ्गदेश की भांति दीखने लगी। पड़ती। धलितमारायण जिम भागके राजा हुये, कामता- नरनारायणके पोछे होनेवाले सव राजावीका पुरका राजवंश मिटनेसे वह स्थान उतने दिनों तक विषय कोचविहारकै इतिहासमें लिखा जावेगा। एक प्रकार अराजक बन गया था। शेषमें चण्डीवरादि कीचविहार देखी। मयांवोंने वह देश कितना ही सुशासित किया। • फारसी पादशाहनामाकै मतमै रामा चन्द्रनारायण परीचितक किन्तु वह बात मी अधिक दिन न चली। मुसलमान थे। राज्य नीत कर लूट मार करते थे । सुतरां उनके समय प्रधान रहा।