8७२ कामाख्या 1 कामदा कामिनी कामा कान्ता कामाइदायिनी। इसी प्रकार पवित्र नीलकूट पर्वतस्थ कुनिकापीठ, करमानाशिनी ययात् कामाखडा तेम चोचाते।" देवी महखगेने महादेवके साथ अवस्थान किया। (कालिकापुराण) सनकर योनिमण्डल ही गिर कर प्रस्तर बन गया था। भगवान ने कहा-महादेवी कामाख्या अभिलाष वही कामाख्यादेवीके नामसे विख्यात हुवा। मनुष्य पूर या करने के लिये हमारे साथ नौलकूट गयी थौं। उता शिक्षाके स्पर्शसे देवत्व पाते और देव ब्रह्मलोक जाते इसीसे कामाख्या नाम प्राप्त हुआ। वह कामदा, है। उक्त स्थानका माहात्मा प्रति अद्भुत है। उसमें कामिनी, कामा, काम्ला, कामानदायिनी और कामाङ्ग चौह डाल देने सो समय भन्मो जाता है। नाशिनी होनसे कामाख्या कायौ हैं। उक्त योनिमण्डल २१ अनलि दोध और १ वितस्ति २ पीठस्थान विशेष । कामाख्यादेवी ही इस ( बालित ) वित है। फिर वह सिन्दूर और स्थामकी अधिष्ठात्री-देवता हैं। कालिका पुराणमें इस कुटुमादिसे लेपित है। देवी महामाया वहां प्रत्यय पोरस्थानके सम्बन्ध पर लिखा है,-"दक्षक यमें पञ्चकामिनीमूर्तिसे अवस्थान करती हैं। पञ्चमूर्तिके सतीने प्राण छोड़ा था। महादेव उनका मृतदेह नाम-कामाख्या, त्रिपुरा, कामेश्वरी, सारदा और स्कन्ध पर रख बहुत दिन परन्त इतस्ततः घूमते रहे। महीसाहा है। देवीकी चारो ओर प्रष्ट योगिनी क्रमशः उस देहसे स्थान स्थान पर अवयव विशेष गिरा रहती है। उनके नाम-गुप्तकामा, श्रीकामा, विन्य- था। उससे न सकल स्थानों पर एक एक पवित्र वासिनी, कटोखरी, घनस्था, पाट्दुर्गा, दीर्घवरो और पीठ बन गया। परिशेषको कुनिका नामक पौठ प्रकटा है। अपरापर तीर्थ भी वहां जलरूपसे पव- स्थानमें देवीका योनिमण्डल गिरा। उस समय खिस हैं। विष्णु उसके तीर कमल नामसे पषस्थान महामाया योगनिद्रा भी महादेवमें लीन थीं। उन्होंने करते हैं। देवीके अनमें लक्ष्मी ललिता नाममे पौर फिर प्रति उच्च पर्वतका रूप धारण कर पातालमें सरस्वती मातङ्गी नामसे अवस्थित हैं। देवीके प्रिय- प्रवेश किया। यह व्यापार देख ब्रह्मान पर्वतरूपसे पुत्र गणदेव पर्वतके पूर्वभागमें हारदेव पर सिह नामसे उन्हें पकड़ा था। विष्णु भी पृथिवी आक्रमण रहते हैं। कल्पहन और कल्पलता तिन्तिड़ी तथा कर उनके निकट उपस्थित हुये। छत पर्वतवय शत प्रपराजिता रूपसे वहां पवस्थित हैं। धाराममूर्ति शत योजन उबत थे, किन्तु देवीके पाक्रमणसे अधो हरि पाण्डनाथ नामसे परिचित हो रहे हैं। उन्होंने गत हो एक कोस परिमित उच्च रह गये। उनमें जहां मधु और कैटभासुरको मार गिराया, वहां निकट पूर्व दिकका पर्वत ब्रह्मशैल है। उसे खेत कहते हैं। हो ब्रह्माने ब्रह्मकुण्ड बनाया है। उक्त बमकुडके वह सर्वापेक्षा अधिक उच्च है। पश्चिम दिकका निकट गया और वाराणसीक्षेत्र योनिमहलतुस्य पर्वत वारा नामक विष्णुशैल है। फिर उमयके कुण्डरूपसे अवस्थित है। उसके पास इन्द्र एवं मध्यदेशस्थित त्रिकोण उदूखलावति शैलका नाम नील अन्यान्य देवने महादेवको सन्तुष्टि के लिये अमृतपूर्ण है। वही महादेवका रूपान्तर है। एतमिन ईशान अमृतकुण्ड स्थापित किया था। उसके निकट काम- दिकके दौप्तिशाली पर्वतरूपी कूर्म का नाम 'मणि श्वर नामक महापुण्यतीर्थ कामकुण्ड है। मिकण्ड कर्ण' है। वायुकोणस्थित पर्वत 'मणिपर्वत' कहलाता और कामकुण्डक मध्यभागमें केदार नामक क्षेत्र है। है। 8 पर्वत श्रीकृष्णका अति प्रियस्थान है। वह देय में १४ व्याम बैठता है। उसे शयान भी. कोणस्थ पर्वतका नाम 'गन्धमादन' है। वह कहते हैं। गुप्तकुडके मध्यदेश में कामेखर पर्वतसे महादेवका प्रियस्थान है। ब्रह्माशक्ति-शिलाका पूर्व संलग्न शैलपुत्रीका नाम 'कामाख्या' है। कामेखर भागस्थित पर्वतं भी महादेवका रुपान्तर है। उसे और कामाख्याके मध्यदेशमें कालरानि हैं। पोठ- स्थानमें दोधैखरी, सीमामागमें प्रचडिका पौर 'भस्माचल कहते हैं।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४७१
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