पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४७२

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कामाख्या-कामाग्निसन्दीपन ४७३ कामाख्याप्रस्तरके प्रान्तदेशमें कुष्माण्डी नाम्नी योगिनी धिक ३०० कुमारी सर्वदा कामाख्या में रहती हैं। रहती हैं। दक्षिण पीठमें कामेश्वरके अघोर नासक अनेक समय वह यात्रियोंको दक्षिणाके लिये व्यति- शिखरकी परमार्थी, भैरव नामसे अभिहित करते हैं। व्यस्त कर डालती हैं। सन्ही भैरवके निकट चामुण्डा भैरवीका अवस्थान है । कामाख्याके भीतर न्यूनाधिक ५२ तीर्थ स्थान कामेश्वर और भैरवके मध्यवर्ती स्थानमें सुरापगा देवी पद्यापि वर्तमान हैं। किन्तु दुःख है कि उनमें अनेक हैं। सद्योजात नामक शिखरदेशमें पानातकैखर हैं। दुर्गम अरण्यसे समाहत हैं। उक्त समस्त तीर्थोके मध्य उसी स्थानमें योगरूपिणी दुर्गा नाम्नी नायिका हैं। भगवती भुवनेश्वरी और दश महाविद्याका पीठस्थान फिर उक्त स्थानका पपक्क पत्रविशिष्ट लतावेष्टित ही समधिक प्रसिद्ध है। पानातक वृक्ष ही कल्पलतावेष्टित कल्पक्ष है। कामाख्याके पूनादि निर्वाहको पहोमराजाशेने उसी पानातक वृक्षके निकट स्वयं गङ्गा सिद्धगङ्गा अनेक भृत्य (पायक ) पौर निष्कर भूमिका दान नामसे अवस्थित हैं। उनके समीप पानातकक्षित्र किया है। पायक कार्य विशेष पर भगवतीको नामक पुष्करक्षेत्र है। ईशान दिन तत्पुरुष नामक सेवामें लगे रहते हैं। फिर अंगरेज गवरनमेण्टने शिखरके उपरिभागमें भुवनेश्वर देवका पीठ है। भी पूर्व नियमसे भगवतीको पूजाके लिये प्रवन्ध बांध उसके निकट कामधेनु नामसे सुरभिको शिलामूर्ति दिया है। प्रायः सकल देवालयों में पायक निष्कर है। मध्यदेशमें कोटिलिङ्ग नामक महाभैरवको भूमि पाते हैं, जो कामाख्या, केदार और माधवमें मूर्ति है। वह पांच मूर्ति द्वारा पांच भागमें विभक्त सर्वापचा अधिक है। है। ब्रह्मपर्वतके जय देशमें भुवनेखरीके नाम पर कामाग्नि (सं० पु.) कामः अग्निरिव, उपमितसमा० । महागौरीको शिलामूर्ति है। जहां या पर्वतरूपसे १ कामरूप अग्नि, खाहिशको श्राग। २ कामरिपुका पर्वतरूपी महादेवके साथ मिलित हुये, वहां अप- गजिता नामको कल्पलता पवस्थित है। कामधेनुके | कामाग्निसन्दीपन (सं० लो० ) कामाग्नीनां सन्दीपनम्, निकट पग्निकोणमें योनिरूपा कामाख्याका पीठ है। ६.तत् । कामोद्दीपक रसविशेष, ताकतको एक दवा । उसी स्थान पर विन्ध्यवासिनी नामसे चण्डघण्टा, वन यह एक प्रकार मोदक है। पारा २ तोला, गन्धक वासिनी नामसे स्कन्दमाता और कात्यायनी २ तोला, प्रधर ताला, यवक्षार, सर्जिक्षार, चित्रक, पाददुर्गा योगिनीका अवस्थान है। उक्त सकन्न योगिनी पञ्चलवण, शटी, यमानी, वनयमानी, कीटमारी तथा नोलशैलकी नैऋत दिक् अवस्थित हैं। पश्चिम हार तालीयपन एकत्र ४ तोला, जीरा, तेजपत्र, दारचीनी, पर हनमान्पोठमें पाषाणरूपी नन्दीका अवस्थान है। बड़ी इलायची, छोटी इलायची, लवङ्ग एवं जातीफल (कालिकापुराण ( १०) एकतर तोला, वृहदार, शुण्ठी, मरिच तथा पिप्पली देवीगीतामें भी कामाख्या-पीठस्थान सर्वोत्कृष्ट एकत्र ८ तोला, धन्याक, यष्ठीमधु, एवं कशेरु कत्त माना और लिखा गया है- दो-दो तोला, शतावरी, भूमिकुष्माण्ड, गजपिप्पली, देवी कामाख्या प्रतिमास इस स्थानमें रजखला बला, हस्तिकर्ण पलाश, गोक्षुरवीज, वीजपवयुक्त होती हैं। (योगिमौसन्न, २६ पटई और कामरुप शब्द द्रष्टम्य है।) इन्द्रयव बराबर-बराबर और सबके समान चीनी, धो कामाख्याको कुमारी-पूना भगवतीपूजाका विशेष तथा शहद छोड़ इस प्रौषधका पाक करते हैं। पाक पता है। कामाख्यामें अनेक ब्राह्मण-कुमारीका पूना उतरने पर २ ताला कपूर डाल देते हैं। मोदक देखो। प्रहण एक व्यवसाय खरूप है। पूना हो या न हो, 'यह औषध वृष्यसे भी वृष्य है। इसे सेवन करनेसे मनुष्य कामाख्यादर्शनके लिये पहुंचते ही कुमारी यांत्रीको सहस्र प्रमदाको रिझा और बलसे प्रमत्त नागाधिपको धेर कर पकड़ेंगी और दक्षिणा मांगने लगेंगी। न्यूना | हरा सकता है। (मपकारवावली।): Vol. IV. 119 । यन्त्रणा