कास्वविक-कांम्व ४९ 229 ई०१५ .1 "किस्मका करायल। दहीको चांछ और खटाईसे मूग पर स्वीकृत हो पारसिक वहां बहुत दिन रहे थे। वगैरहका जो करायल बनाया जाता, बही 'कावलिक' फिर वह वहांसे उपकूलमें वाणिज्य करने नगे। क्रमसे कहलाता है। यह विशेष रुचिकारक होता है। पारसिक चारो पोर फैल काम्बे पहुंच गये। काम्ब "दधिमनिम्न सिइन्नुयूषः काम्बलिका मसः।" (सुयुत) स्थान उन्हें बहुत अच्छा लगा था। सुतरां वह दनके काम्बविक (सं• पु०) कम्वुः शङ्ख भूषणत्वेन शिल्पमस्य, दल वहां ना कर उपस्थित हुये। उनको संख्या क्रमसे कम्बठक। शडकार, कौड़ीके बने जेवर बेचनेवाचा । बढ़ने लगी। शेषको वहांके प्रधिवासियोंकी अपेक्षा काम्बुका (सं० स्त्री० ) कुत्सितं अम्बु यस्याः, कु-अम्ब संख्या पधिक होने से उन्हीं का कत्व पारम्भ हुवा। कप-टाप कोः कादेशः। अश्वगन्धा, असगन्ध । कुछ कात पोछे हिन्दुवोंने उन्हें युद्धमें परास्त कर देशसे काम्बे-१ गुजरातके पश्चिमभागका एक देशी राज्य । निकाल दिया। युद्धमें पनेक पारसी मरे थे। यह प्रक्षा• २२' एवं २२.४१७० और देथा. ई० को काम्बे ब्राह्मणों के अधिकारमें पड़ा। उसी ७२.२० तथा ७३.५ पू के मध्य अवस्थित है। इसके समयसे क्रमिक उनति होने लगी। १२८७ ई.को पूर्व बड़ोदा राज्यका बड़साद एवं पितन्नाद प्रदेश, मुसलमानोंने काखे पधिकार किया। उस समय कावे दक्षिण काबे उपसागर और पथिम साबरमती नदीके भारतका एक समृद्धिशाली नगर समझा जाता था। 'भागे ही अहमदाबादकी सीमा है। काम्बेकी सीमाके मुसलमानोंके शासनमें काम्बे गुजरातके अन्तर्गत दुवा। मध्य अंगरेज और बड़ोदावाले गाइको वाडके अधिक्कत वें शताब्दमें काम्बेकी अधिक उबति देख कई ग्राम हैं। इस प्रदेशको पूर्वदिक् मही और पश्चिम पड़ी। ई०१६ यताब्दसे उक्त प्रदेश वापिन्यका “दिक साबरमती नदी बहती है। दोनों नदीयामें प्रधान स्थान. माना जाने लगा। महाराष्ट्रोंके राज्य ज्वारभाटा पानसे पानी कुछ खारा रहता है। बढ़ाते समय मुसलमानोंने प्राणपषसे अपने अधिकार काम्बे की जमीन भी लोनी है। नतन कूप खोदनेसे बचाये थे। बेसिनको सन्धिके पीछे काम्ब अंगरेजोंके अल्प दिन में ही पानी खारा हो जाता है। उसनलको हाथ लगा। आज कल अंगरेजोंके अधीन एक नवाद -सावधानसे व्यवहार करना पड़ता, नहीं सो नासूर शासन करते हैं। उनकी पंगरेजोंसे राज्य करनेके निकलता है। काम्बे की भूमि समतल है। बीच सिये सनद मिली है। प्रबन्धानुसार राज्यका भार बीच में भाम, इसनी, नीम, वट प्रमृति चोंको श्रेणी उन्होंकी वंशावलीमें रहेगा। वा अंगरेज गवरन- देख पड़ती है। भूमिका परिमाण ३५० वर्गमीन मेण्टको कर देते हैं। है। देशमैं गुजराती और हिन्दी भाषा चलती है। काम्बेमें कोई ३० विद्यालय हैं। पफीम, गेहं, हिन्दोमें इसे खम्भात् कहते हैं। कारण स्तम्भतीर्थ चावल, रूई, तम्बाकू और नीच खूब उपजता है। नामक महादेवका एक स्थान है। उसोसे खम्भात् नीतगाय, जंगली सूवर और हिरन बहुत हैं। नाम बना हैं। काम्बे उपसागरमें वर्षा ऋतुके सिवा अन्य समय भलो लोगोंके कथनानुसार ई० वें शताब्दके शेषमागमें भांति मल नहीं रहता। कान्ये उपसागर देखी। बाणिज्यमें 'पारस्य देशसे पारसिक लोग कुछ जहाजोंपर जाते अधिक सुविधा इसी कारण नहीं रहती। मही और । तूफानसे उनमें कई जहाज डूब गये। कुछ साबरमती उक्त उपसागरमें ही गिरती हैं। किन्तु जहाल अति कष्टसे सानिम प्रदेश पहुंचे थे। साजिम उनका प्रवाह बराबर एक राइसे नहीं चलता। उसीमे प्रदेश सूरतसे ३५ कोस दक्षिण है। पारसिकोंने वहां नदोके मुख में बड़े बड़े जहाजोंके जानेमें भड़ान उतरनेको राजासे अनुमति मांगी। राजाने कहा-यदि पड़ती है। फिर भो बाणिज्य बुरा नहीं । सतरंजी, वह गुजराती भाषामें बात करना सीख लेते और गोमांस गलोचा, नमक, नील और खोदनेका पत्थर तैयार न खाते, तो उतरने की अनुमति.पा जाते। इस बात होता है। काम्बे में कोई पच्छो राज नहीं। बैलगाड़ी,
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