880 कायस्थ कायस्थ ही सान्धिविग्रहिकके पद पर नियुक्त रहे हैं। ... शुक्रनीतिमें और एक नगह लिखा! इस विषयमें एक पुरातत्वविद ब्राह्मणने लिखा है,- "भूयोऽधिकतमणाय म तिर्गयकलेखको। "It is a noticeable fact that the afaa हेमान अम्बु स्वपुरुषाः साधनाकानि ये दस ॥ faust or minister of war and peace and the एसयाकरण यस्त्रा मध्यस्य पार्थिवः। secretary, were always Kayasthas or men न्यायान्याय्य कृतमतिः सा समाचरसनिमः" (५५७-) of the writer-caste. This not only occurs राना, अध्यक्ष, सभ्य, स्मृति, गणक, लेखक, हेम, in the Kataka plates, but in grants or ins- अग्नि, जलं और सत्पुरुष-ये दस साधनाङ्ग हैं। criptions found in Ceylon and Central उपयुक्त प्रमाणसे यह स्पष्ट विदित हो जाता है India." ( Indian Antiquary, Vol. V. p. 57. ) कि, जो लेखक रानाकै नाघ्यण-मन्चौके पास बैठते थे, और नो रानाके प्रङ्ग गिने जाते थे, वे कदापि शूद्र संस्थतन अंग्रेज घिद्वानोंने सान्धिविग्रहिक शब्दका नहीं हो सकते। अस प्रकार पर्थ किया है,- "A great officer for making treaties and अङ्गिरः स्म तिमें कहा है- "शान गद्रसम्पर्क' ट्रेण च सहासनम् । declaring war. This officer or æ subor- भद्रावधानागमं कथित व उत्तमपि पावयेत्" । ४६ ॥ dinate, is deputed at the end of the grant, - इस स्म तिवचनके अनुसार जब शूद्रके साथ to give effect to it.” (Journal of the Asiatic बैठना भी वाहपके लिये निषिध तब हिन्दू-रान- Society of Bengal, 1875. pt. I. p. 5) सभामें ब्राह्मण-मन्दीके पास जो लेखक या कायस्थ
- Secretary for foreign affairs."ma Taw-
बैठी थे, वे अवश्य हो हिनाति होने चाहिये। ney's Kathasarit-Sagar. Vol. IV. p. 383.) अमरकोषमें भी लेखक शब्दका वर्ग चविय कायस्थ या लेखक। बतलाया गया है और शुक्रनीतिमें भी स्पष्ट सिखा यदि कोई कहे, जो कायस्थ साधिविहिक जैसे हुपा है,- ऊंचे पद पर नियुक्त थे, वे या उनके वंशधर क्षत्रिय "ग्रामपो ब्राधणो योन्य ; कायस्थो लेख कम्नयाः। गुस्कयाही तु वैग्यो हि प्रतिधारय पादनः ।।" (१।४२.) हो भी सकते हैं। परन्तु जो कायस्थ पटवारी अर्थात् हिन्दू राजाओं के समयमें ग्रामोंका भासन मुहरिर आदिका काम करते थे, वे तो कमलाकरद्वारा कई गये माहिष्या और वैदेहसे उत्पन्न हुए अधम ब्राह्मण करते थे, कायस्थ उनके सहकारी (लेखक, मुहरिर वा पटवारी) रहते थे, वैश्य कर वसूत्र शूद्र ही हैं। प्रकत शास्त्र में सामान्य पटवारी और करते थे और शूद्र नौकर (सेवक)का काम मुहरिराँके लिए कैसा स्थान था, हमें इस बातको करते थे। शुक्रनीतिक उक्त वचनसे साफ जाहिर है जांच करना जरूरी है। कि, लेखक-कायस्थ ब्राह्मण नहीं, वैश्य नहीं और शुक्रनीतिमें लिखा है- न शूद्र हैं। नब.शास्त्र में चार वर्णके सिवा पांचवां "साखौटून पाचिठे दस्त्रपाताधिः सदा ।। वर्ण हो नहीं माना गया, तब प्राध्याण, वैश्य और सशस्त्री दाहस' तु यथादिष्ट भूपमियाः । पक्षहस्त बसयुर्व मन्त्रिणो लेखका: सदा ।" (२२२६६-७) शूद्र वर्ण के सिवा क्षत्रियवर्ण ही बच रहता है, इस राजाको पाग्ने य-अस्त्रसे और जहां स्त्र गिरते लिए कायस्थ क्षत्रियवर्ण ही प्रमाणित होते हैं। कोई हैं-ऐसे स्थानसे सदा दूर ही रहना चाहिये। राजासे कोई कायस्थों के लिए पांचवें वर्षको कल्पना करता है। दश हाथको दूरी पर उनके प्रिय शस्त्रधारी, पांच परन्तु मनु हो अब पाचवा वर्ण नहीं है ऐसा कह हाथको दूरी पर मन्त्री और उनके पास एक बगल में गये हैं, तब पांचवें वर्णको कल्पना पगाध और सेखक रहेंगे। प्रशास्त्रीय है। दाक्षिणात्यमें नो जाति :अस्प श्य