पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४८८

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कायस्थ ४८. सन्धि-विग्रह-लेखक, स्वयं राजाकी पात्रासे तात्र नहीं थे। बों कि उसके बाद आपके साथ क्या क्या पट्ट या कपासके कागज पर. राजथासनं शिखेंगे। परामर्श करेंगे यह भी लिखा है। (याभवत्का, एमपध्याय, १२वा योक) भारतवर्षके नामा स्थानोंसे ताम्रखणों पर लिखे हुए शक्रनीतिमें स्पष्ट लिखा हुवा है,- जितने शासन निकले हैं, उनके सन्धिविग्रहकारी "पुरोधा च प्रतिनिधिः प्रधानसचिवस्तथा ॥ ९ ॥ लेखक "सान्धिविग्रहिक" मामसे प्रसिह हुए मन्त्री च माविवाकर पणिक्य सुमन्त्रकः । पहिले शान्धिविग्रहिकका पद एकसान पमाल्यो इतएज्ये ता रामः प्रकवयो दमः ॥ २०॥ कायस्थोंको ही मिलता था। प्राचीन संस्कृत ग्रन्थीमें दच प्रोका पुरोधाद्या प्राणा सः एष से। माधिविग्रहिक, "सन्धिविग्रह-लेखक" (अपराकं । पमावेचविया योज्याखदमावे सथोरना: ॥ ४१८।। बोरमिबोदय पौर कैशववनयमी हा प.) "सन्धिविग्रहकायस्थ" 'मैव शूद्रास्सु सयौक्या गुणयन्तोऽपि पार्थिवः।" (श्य पध्याय) (जोमदेवका कथा-सरिक्षागर श) और "सन्धिविग्रहाधि. पुरोहित, प्रतिनिधि, प्रधान, सचिव, . मन्त्री, करणाधिनत (Ind. Ant. VI p.10 ) मामले प्राविवाक, पण्डित, सुमन्च, पमात्य और दूत ये दध प्रसिद्ध थे। व्यक्ति राजाको प्रकृति है। एक पुरोहित पादि दो पग्निपुराणमें लिखा है:- लोग ब्राह्मण होने चाहिये, ब्राह्मणके अभावमें क्षत्रिय "साधिषियक्षिक कार्य: पार गुणादि विधारदः।" (२९०३) और वियके पभावमें वैश्य भो नियुक्त हो सकेंगे। सान्धिविग्रहिक छह गुणोंमें विशारद होना शूद्र गुणवान् होने पर भी गजा · उक्त कार्योंके लिए चाहिये। वे षट्गुण कौन कौनसे है ? 'मनुसंहिताके नियुक्त न कर सकेंगे। उपरोक्ष.. सात-पाठ मनसे- सचिों में एक सान्धिविग्रहिक भी थे। शुक्रनीतिमें "सन्विध विया व याममासममेव च । इन्हीं साधिविग्रहिकका. "सचिव नामसे उख धीमा सवयच पड़ गुणाधिनयेळदा" किया गया है। यह सान्धिविग्रहिक सचिव शूद्र सन्धि, विग्रह यान, पासन इंधोभाव पौर संश्चय नहीं हो सकते-इस बातका भी शुक्रनीतिमें प्रष्ट इन छह गुणोंको चिन्ता, गम्भीरतापूर्वक करना प्रमाण मिलता है। हारीतस्मृतिसे यह साफ जाहिर चाहिये। मनुसंहितामें और भी है- होता है कि, सन्धि विग्रह पादि क्षत्रियोंका हौ "भोलान् भास्त्रविदः नरान् बन्धसचान कूलीङ्गतान् । सचिवान समचाटी वा प्रकृति परोधितान् । "रान्यस्थः पविययापि मना.धर्मेष पालयन् । से साहचिन्तयविन्य सामान्य सन्धिविग्रहम्।" (018, ५४१) कर्यादध्ययन समाग यनेयमान् यथाविधि । सुप्रतिष्ठित वेदादि धर्मशास्त्रों में पारदर्शी, और नीतिशास्त्रार्थ कुपलः सन्विवियइतत्ववित् । युद्धविद्या में निपुण और कुसौन-ऐसे सात पाठ मन्त्री, देववाणमय पिवकायपरसपा प्रत्येक रानाके पास रहने चाहिये। राजापोंको, "य यबम कायमधर्मपरिवर्जनम् । सन्धिविग्रह पादिकी सलाह उन्हीं बुधिमान् सचिाये उत्तम गतिभाषौति पवियोऽयमाचरन् ।।" लेनी चाहिये। (हारीतम ति श्य प.) इन प्रमाणोंसे जब यह सिद्ध हो गया कि, सन्धि- मिताचरामें विज्ञानखरने लिखा है,- विग्रह आदि कार्य क्षत्रियोंका ही था, तब स्मृतिमें "एव' मन्त्रिणः पूर्व कृत्वा नै साई राज्य सन्धिवियादिलपर्ण कार्य चिन्तयेत् । समय व्यस्त र अनन्तर तेषामभिप्राय शाखा सकलशास्त्रार्थ- कहे गये सन्धिविग्रहकारी कायस्थ वा सान्धिविग्रहिक, विचारकुमलेन वावश्येन पुरोहितेन सा कार्य विचित्य सनः स्वयं बुरा क्षत्रियके सिवा दूसरी जाति नहीं हो मकते। का चिन्तयेत् । ब्राझोंक धर्मप्रतिष्ठापक गुप्तवंशीय सम्राटोसे मिताचराके उपर्युक्त वचनसे यह मालूम रोता है ले कर गोब्राह्मण-मा बङ्गाके सेनवंशीय राजावों के कि, राजाके को संबी एसे है, वे सब प्राण , समय सक जितने राना हुए है, उनकी सभामि IV. 123 Vol.