. कमलासनस्थ-कमलेक्षण 82 इसी प्रकार मेरुदण्डको सीधा कर बैठनका नाम मुन्छ विधि, विस्थलीसेतु, दानकमलाकर, दायविभाग, धर्म- पद्मासन है। बद्द पद्मासनमें पदोंके घढ़ानेका नियम तत्व, नारायलवस्तिप्रयोग, 'निर्णयसिन्धु, नीतिकमला- तो ऐसा ही रहता है। किन्तु वाम इस्तको पीठ कर, पशुवन्ध, पशलाजसदानविधि, पिटमलितरङ्गिणो. पोछे घुमा वाम पदका और दक्षिण इस्तको पीठके पूर्तकमलाकर, प्रतिष्ठाविधि, प्रवरदर्पण, प्रायश्चित्त- 'पीछे घुमा दक्षिण पदका प्रष्ट पकड़ते हैं। फिर रत्न, वह चाहिक, मलिरन, भाषाषाद, मन्त्रकमलाकर, चिबुक वक्षःस्थलयर जमा और नासाके पग्रभागपर रजतदानप्रयोग, रथदानविधि, रामकल्पद्रुम, राम- दृष्टि लगा सौधे बैठा जाता है। यह पद्मासन अति कौतुकमहाकाव्य, पक्षहोमविधि, लिङ्गा प्रतिष्ठाविधि, उत्तम रहता और घण्टे आध धण्टे अभ्यस्त होनेपर विघ्नेशदानविधि, विवादताण्डव, विश्खचक्रदानविधि, साधकके सब रोग हरता है व्यवहार, व्रतकमलाकर, व्रताक, शतचण्डीसहस्रचण्डी- कमलासनस्य ( स० पु०) कमल विष्णोर्नाभिकमन्न प्रयोग, शतमान-दानविधि, शान्तिरख वा शान्तिरत्ना- तद्रूपे आसने तिष्ठति, कमल-पासन-स्था का विष्णुके कर, शास्त्रदीपिकालोक, शास्त्रमाला, शिवप्रतिष्ठा, नाभिकमलपर रहनेवाले ब्रह्मा। शूद्रधर्मतत्व, बाइनिर्णय, वाहसार, श्रावणीप्रयोग, कमलाहट्ट (स.पु.) काश्मोरका एक बानार। खेताखदानविधि, घोड्यसंस्कार, संस्कारपति, समय- काश्मीरको रानी कमलावतीने इसे लगाया था। कमलाकर, सरस्वतीदानविधि, सर्वशास्त्रार्थनिर्णय, (रामवरविधी २००) सहस्रचण्डयादिप्रयोगपति, सुवर्णपृथिवीदानविधि, कमताहास (सं० पु०) पनका खुलना या मुंदना, स्थानीपाकप्रयोग, हिरण्यगर्भ दानविधि और कमला. कंवलके फूलने या बंद होने की हालत । करमष्टीय । नृसिंहने सत्वर्थसागर, पुरुषोत्तमने कमलाकर-सस्क तके एक प्राचीन ग्रन्यकार। द्रव्यशुषिदीपिका और वास्तवणने ऋम्वेददेवतांकम- नृसिंहके पुत्र, कृष्णके पौत्र और दिवाकरके प्रपौत्र नामक अन्यमें इनका वचन उहत किया है। रहे। इन्होंने अपूर्व भावनोपत्ति, जातकतिलक, ज्योत्- कमलाकरमिषु-संस्कृत के एक प्राचीन विद्वान् । वासब- पत्तिविचार, त्रिशती, मनोरमाग्रइलाधवटीका, भेषा दत्ता, सुबन्धुने इनका उमेख किया है। गणना, सिद्धान्ततत्वविवेक (यह १५.३ ई को बना. | कमलिमी (सं. स्त्री०) कमलानि सन्ति पत्र, कमल- रसमें लिखा गया) और सूर्यसिद्धान्तटीका सौर इनि। पुषरादिभ्यो देखें । पारा १ पसिनी, कंवल- वासना अन्य लिखा है। का पेड़। यह शीतल, गुरु, मधुर, लवप, रुक्ष, पित्त, कमलाकर देव-आनन्दविलास नामक प्रत्यके रचयिता। पसक तथा कफन और वात एवं विष्टम्भकर होती कमन्नाकर भट्ट-एक प्राचीन संस्कृत ग्रन्वकार । है। कमसिनोका छद शोत, तुवर, मधुर, तित १६१६ ईको इन्होंने निर्णयसिन्धु' बनाया था। पाकमें प्रति कटु, लव, ग्राहक, वातछत् और कफ इनके लिखे ग्रन्य यह है-अग्निनिर्णय, प्राचारदीप एवं पित्तनाशक है। (वैद्यकनिधष्ट, २ पद्माकर वा प्राचारदीपिका, भावनायनशाखा बाधप्रयोग, कंवोंका खजाना। जिस सरोवर वा इदमें बहुतसे आङ्गिकविधि, उत्तरपाद,. ऐन्द्रीमहाशान्ति-सहित कमल रहते, उसे ही कमलिनी कहते हैं। ३ गता। राजाभिषेकप्रयोग, कर्मविपाकरत, कल्पलताहीन "कुसुघवी कमलिनी कान्तिः कसिलदायिनी।" (सामोखब २०३०) प्रयोग, काव्यप्रकाश-व्याख्या, क्रियापाद, गयालय, कमनी (पु.) बंधा। गीतगोविन्दभाष्यरनमाला, गोत्रप्रवर निर्णय वा गोव- कमली (हिं. स्त्री०) छोटा कम्बल, कम। प्रवरदर्पण, ग्रहयन, चण्डीविधानपति, जलाशयोत्- | कमलेक्षण (स• वि.) कमलमिव ईक्षण यस्य, सर्गविधि, जीर्णोद्धारविधि, तन्त्रवार्तिकटीका, तिल- बहुप्री० पद्म चंच, कंवलको तरह खूबसूरत पाखें गर्भदानप्रयोग, तोध्यावा, तुलापति, विपनदान-1 रखनेवाला। Vol. IV. 13 यह -
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