पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४९१

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४६२ कायस्थ दिया कि, जब तक चन्द्र और सूर्य रहेंगे, तब तक तुम्हार वंशीय और तुम सुख भोग करते रहोगे। उपर्युक्त प्रमाणोंसे यह स्पष्ट विदित होता है कि, चित्रगुप्तके बंधीय और चन्द्रसेनके वंशीय कायस्थ क्षत्रिय हैं। चित्रगुप्तकाशा चित्रगुतको सत्यत्तिकै विषयमें सबसे पहिले जो पुराणके वचन उहत किये गये हैं, उन वचनोंके साथ चित्रगुप्तके वंशका ऐसा परिचय मिलता है;- "चिवगुवान्वये जाताः शृण मान् कथयामि थे। गौडाख्या माधु राय व भटनागरसेनका: । पशिष्ठान श्रीवास्तव्या शकरीनास्तथ व च। कुशलाः सशास्त्रेषु सम्बष्ठाद्या नराधिप । पुवान् वै स्थापयामास चित्रगुप्ती महीतले। धर्माधर्मविषकशः पिवगुभो महामतिः। भूयस्तान् दोषयामास सर्वसाधममुत्तमम् । पूजन देवतानाच पितृणां यशसाधनम् ॥ वर्णानां ब्रामणानां च सर्वदातिथिसेवनम् । प्रनाभ्य: करमादाय धर्माधर्मविलोचनम् । कर्तव्य हि प्रयवे न पुवाः खर्गस्य काम्यया ॥" अहत्याकामधेनुसे उहत भविष्यपुराणमें भी लिखा है:- "चिवगुप्तेभ सा कन्या चाष्टी पुवामनीमनत् । पारुमचारथिवाखयी मतिमान् रिमस्तिथा। चिनवारुयारुनच वष्टमोऽतौन्द्रियस्तथा । हितीया देवकोष दधिया या विवाहिता। तस्याः पुवाश चत्वारस्ते या नामानि । मानवधा विभानुय विश्भानुश मौर्यवान् । पुवा हादश विख्यामा विचरती महोती। मधु रायर्या गलथारु माथु रात्वमिती गवः। सुचारु गौङदेशे तु तैन गौडीऽमवन्न । मानद गतथिवी मनागरिक अधः । श्रीवासमगर भानुमतमाच्छीवादासजकः ।। अधामाराध्य हिमवान् तेमावष्ठ रवि च नः । समार्यों मविमान् गत्वा सखसेनवमागतः । शूरसेन विमान व तेन सूर्यध्वनः अतः।" कायस्थोंके "कुलग्रन्व"में, वहांक समाजमें प्रचसित "पातालखण्ड के कथनमें और चित्रगुप्तको पूजापति, गौड़, माथुर, भटनागर, सैनिक या शकसेन, अम्बष्ठ, श्रीवास्तव, अष्टान, करण, सूर्यध्वज, वाल्मीक, कुलश्रेष्ठ और निगम-ऐसे बारह भेद चित्रगुप्तन कायस्थों के पाये जाते हैं। पनों बारह श्रेणियोंके कायस्थोंसे रक्कोस प्रकारके कायस्थ हुए - ऐसा उस "पातालखण्ड में लिखा है। उनके भेद इस प्रकार किये गये हैं:- १ सूर्यध्वन, २ चन्द्रहास, ३ शूरिचन्द्राई, ४ चन्द्र- देह, ५ रविदास, ६ रविरत्न, ७ रविधीर, ८ रविपूनक, गम्भीर, १० प्रभु, ११ वल्लभ, १२ उदारहास रवि, १३ मधुमान्. १४ भड, १५ सुभट्ट, १५ योगौड़, १७ राजधाना, १८ अनिन्द, १८ सम्भ,म, २. विश्वास, पौर २१ पञ्चतत्वज्ञ। इन इकोस ऋषियों में भी हर एकके बीस बीस भेद हैं। पविमालके कायस्थों के कुल ग्रन्यकी भांति बङ्गालके उत्तरसदीय कायस्योंके कुलग्रन्थ भी लिखा है :- "चिवगुप्तः क्रियोपेस: सर्व शास्त्रेषु पून्य ११५० सैनीपुवाष्टका: पृष्या सर्व सम्पत्तिम' युवाः । गोदाखो माथ रश्चैव सक्सेन: भटनागर अम्बष्ठय श्रीवास्तव्यः कपिक उच्चत।" कुसाचार्य पचाननने अपनी "कुलकारिका मे ऐसा लिखा है:- "वेदोचराष्टशसान्दै भाकै कुम्भस्थमाकरे। वाकाः मौकालीमयंष क्या मोहय एव च। कामविश्वामिवीच पसगोवक्रमेय वे। प्रमादिवरसिपश्च सोमघोषय सुधौरः पुरुषोत्तमदासय देवदची महामतिः । सुधौरामगणश्च मिनकुल सुदर्भमः । अयोध्या निवासी सिको घोषश्चैव तथा पुनः । निवासी दासः कोलाधादाढमागवः । मायापुरीनिवासिनी दमिवों तथा गती।" "नम्मदायातीर पुरी कर्यालोति मनोहरम् । मचर्यमय मौर' विश्वकर्मा निर्मितम् ।। तथा श्रीवर्ष सनौकममवत् वत्पुरोवरः। ततस्तेन पुरौं दवा मरात्रपुर' ययी। समजो बसमवासिहासाश्च नरवार। नई'मनाः क्रम व नामादिशामर' गताः।। युकप्रदेशक रायाभूपालपुवश्व रामागीपालनका वस्त्राभनोऽनादिवरसिंह खयानो महाबली ।