पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४९२

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कायस्थ ४२ धार्मिकः सम्यवादी जितेन्द्रिय सदामयः । महाधनुरो-बीर: कुखवेष्ट: कुलाधिपः॥ - रामकार्यपरित्राता सव'बार्यविभारदः।" "चित्रगुप्मान्वये जावो विमान, उपकर्षकः । सस्याम्मनः सूर्यध्वजो घोष'शमीपतिः। सूर्यदेवप्रसादन सूर्यायो नगर वसेत्। वयनक्रमेव मानादिमान्तर गताः ।। चन्द्रहासगिरी चित् चन्द्रहासगिरीश्वरः। मध्यदेशे वयोध्यायां चन्द्रातस्र्यपदोहवः । नईपना बीसौमघोषः नौकर्षस्य कलानुगः ॥" इस विषयमें कुलानन्दने अपने उत्तररादीय 'कायत्रकारिका' नामके बङ्गमा कुखग्रन्थमें जो कुछ लिखा है, उसका अक्षरशः पनुवाद नीचे दिया जाता है:- "विधिने किया एक जन, कम्मे चिखने के लिए। चित्रगुप्त नाम उसका, gपा फिर वह इस लिए। कायस्थकी उत्पत्ति, दुई यमके समान । पापपुण्य लिखनेके, हेतु एपा फिर विधाम, सादफिर हुए, उनके तीन जो लड़के। चिलसेन चित्ररथ, नाम विचित्र उनके। चित्रसेम स्वर्गम गया विचित्र पातासमें । चित्ररथ मत्य में पाया, सेनी जो कहाता। यमुना विभा करमें हरिषके पम्सरमें। सुखसे निवस मेनि-पनीके मन्दिरमें । यमुनाकै गर्भसे हुए पैदा बहुत जन । जो मौड़, माथुर, मह, सकसेन श्रीकरण । श्रीवास्तव, पहिष्ठान पम्बष्ट निगम । मुनिको पूजन सभामें गोत्रका सिखन ॥ तपोबससे श्रेष्ठ बसी श्रीकरण गल्थ । इसमें अनेक गोत्र मोमते बहुमान्य ।

गौड़ (देश) के महाराज श्रादित्यशूर नाम । गङ्गाके समीप वास सिंहेश्वर ग्राम, पादरसे बुहासे उन्हें, विप्र पञ्चजन। साथ उनके पक्षमोव पाये श्रीकरण भ्रू वामन्दमित्रको “बाजकायस्थकारिका में भी ऐसाोलिसा:- Vol. IV. 124 "चिवदेवसुताबाटो समासन वै मामयाः । बेमान्तु वल्पयामास वामपो जातवम च । एकव बाधा भावि गोवि गोवदेवता। तेषां मध्ये प्रवरस एकाशितमः पतः। सूर्यचनो चन्द्रहासचन्द्राई चन्द्रदेशकः। रविदासी रविरवो रविधीरय बौड़कः। इति चाष्टमका खास इलानां पतयोऽभवन् । घोषः स ध्वजावासचन्द्रहासाबसस्तथा । रविरवात् गुहद चन्द्रर्दशा, मिमयः । चन्द्रार्धात करणी जातः रविदासाच्च दत्तकः। मृत्यु अयस्त गोडाच कथ्यते अन्यकारवः । दासकी नागनाथौ च करवाच समुनवाः । मव्युधय-सुतोनातः देवसेनस पालितः। सिहजैव तथा खयाताः एते परतिकारकाः। मम्य धय-कुलोरबी नित्यानन्दो पेश्वरः। तस्थापि वंश स'बासाः सप्लायोतिः प्रकीर्तिताः । कुलाचारप्रमेदन दिसप्तत्यचलाभवन्॥" इसके अतिरिक्त बंगालके दक्षिणरादीय कुलप्रन्यमें भी वसु वंशको श्रीवास्तव और दत्त वंशको शकसेन कुचोद्भव कहा है। अतएव उपरोक्ष कुलप्रन्योंके पमाणोंसे यह निश्चय किया जाता है कि उत्तरराढ़ीय, दक्षिणराढीय और पनज-क्या कुलीन पौर क्या मौलिक सब ही-कायस्थ चिवगुप्तके वंशधर हैं; भारतके भिन्न भिन्न देशोंको भिन्न भिन्न श्रेणाके कायस्थों के "दायाद" हैं। अब यह देखना चाहिये कि sत मिन मित्र श्रेचोके कायलोंका पूर्व परिचय कैसा और क्या है। प्राचीन शिलालेख और साम्रलिफियाम, श्रीवास्तवोंको वास्तव्य-बंधका बताया है। मध्य- प्रदेशके महतार नामक एक स्थानमें चेदिराज जानन- देवकी एक प्रशस्ति मिली है। उसमें श्रीवास्तव रवसिंहका ऐसा परिचय दिया है:- "काश्यपीयाचयादीवनय सिद्धान्तवेदिना। विपचवादिसिन रवसिहन धौमता ॥२३ श्रीराघवाधिकमला धराभिषेक- लब्धोदयातसथाखमोरुन। वास्तम्यवपकमलाकाभानुमेय मामसुते रचिता बचिया प्रशस्ति।" मैं