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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४९४

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४६५ देशमें कायमोंको उच्च पदाधिकार मिले थे।... श्वौं | यत्रोप्नोतके नष्ट होने का कारण क्या है? वकीय- यताब्दीमे से कर १३वौं शताब्दी तक गौड़देशके 'कासवाचवमें सिखा- नामा स्थानों में ये ही कायस राज्य कर गये हैइसके "मडीयाध्यामिक शाम वापस्था विपमाना। सिवा भारतके अत्यान्य देशों में भी.गौड कायम हिन्दू -! - 'सव्यलय अन्नस व मायवीच तथा पुन:- सतोकाले गते चापि भागवाहोचिसोऽमवम् । रानसभाषामजचे ऊंचे पदों पर नियुक्त थे; और भागमोगाविधानिन पूताः कायस्थसम्भवाः । "मन्वाग्रणी" "असमयावसारसुमति" "विवाशिः सम्मात विप्रमकाय विमावास्तवामपन् । वन्दित" "साहित्याम्बुधिवन्धु" इत्यादि इत्यादि साविकास समाजवास्तम्बाप्यामपि पारगा" पाण्डित्यसूचक विशेषणसे विभूषित किये जाते थे। यहाँतक कि, बंगाल के घोष, दत्त, माग, भादित्य श्रादि वास्तवमें बोड़ पासराज़के शासनकाल में यहांके उपाधिधारी कायस्थ .. १. वौं और ११ वौं राजवलम कायस्थ वैदिकाचार,छोड़ कर बौह तान्त्रिक शताब्दीमें, कलिङ्ग पौर- दक्षिण कोथतके सोमवंशीय हुए थे। वैदिकाचारके त्यागके साथ साथ उन्होंने रानामांकी समाजांमें "शक","महासान्धिविहिक', वैदिक यज्ञोपवीत संस्कार भी छोड़ दिया था। वे "महाचपटखिक" जैसे ऊंचे रचे पदोके अधिकारी कैसे सान्तिक थे या तन्त्रशास्त्र में कैसे व्यत्यत्र थे, थे। यदि इनका संस्कार दिनांके सदृश न होता, तो उसका यथेष्ठ प्रमाण मौजूद है। वङ्गीय साहित्य- 'धर्मनिष्ठ हिन्दू राजाओंको सभाओं में इनका स्थान परिषदसे महामहोपाध्याय पं० एरप्रसाद शास्त्रो कदापि इतना ऊंचा नहीं जा सकता था। विकसिमके महोदयने “इजार वर्ष पुराने वनभाषाके बौर गाम अधिपति महाशिव ययातिरानकी ताम्रलिपिके और दोहे" प्रकाशित किये हैं। शास्त्री महाशयके सहारकने उस ताम्रलिपिके लेखनेवाले सान्धिवियधिक लिखे हुए उस अन्यके अन्त में जो "बीतान्त्रिक योरुद्रदत्सके विषयमें ऐसा लिखा है:- अन्यकारसूची प्रकाशित हुई है, उससे जाना जाता है " It is also to be noted that Rudra Datta कि, पालराजापोंके समयमें कायस्थोंने सैकड़ों तान्त्रिक who was Bengali Kåyastha calls himself a प्रन्योंकी रचना की थी। इन अन्यकारों में बहुतसे Rånaka, which indicates a Kshatriya origin." उपाध्याय और महोपाध्याय उपाधिके धारक (Journal of Behar & Orissa Research थे। उपर्युव सूचीसे यहभी जाना गया है कि, Society, 1917, March, p. 2) उनमें पद्वारष्ठ ग्रन्थकार महोपाध्याय .पाधिके या पहिले. ही कहा जा चुका है कि, गौड़ धारी थे। इनमेसे गयाधर, जिनवर घोष, तथागत- कायस्थोंके सिवा श्रीवास्तष, शकसेन, सूर्यध्वन, माथुर रचित पौर कमतरचित-ये चार कायस्थ इत्यादि विभिन्न श्रेणियोंके कायस्थ भित्र भित्र महोपाध्याय उपाधिसे विभूषित थे। इनके पौर समयमें युतप्रदेश प्रादि भारतके नाना स्थानोंसे जाकर पन्यान्य बहुतसे कायस्थपरिकतों के बनाये हुए सैकड़ों गौड़देशमें रहने लगे थे। उनमें घोषवंशक सूर्यध्धन, ताधिक् ग्रन्यों का पता लगता है। केवल बौद्ध बसुवंशके श्रीषास्तव, मित्रवंशके माथुर, पौर दत्तव शके तान्त्रिक कायस्थाचायौँको बात नहीं, बल्कि उस शकसेन, तथा सिंह, नाग, नाथ, दास पादि श्रीकरण समय गौड़के हिन्दू समाजमें भी बहुतसे प्रसिद्ध श्रेषीके कायल हैं। ये सब चित्रगुप्तके वश कायस्थ प्रसिद्ध पण्डित मौजद थे। इनमें राढ़ाधिप गुण- पवियर और दिनोंकी भांति माने जाते है। रबाभरण न्यायकन्दलीके कर्ता श्रीधरके पात्रयदाता वसीय कायस्का साथिवीम्यागका कारण । पाण्डुदास, गौड़के राजा रामपासके मन्त्री "तत्वबोध अपर,कदुए चित्रगुप्त वंश कायस्थ जब मूर्ति बोधिदेव और उनके पुत्र “प्रधानवाचस्पति', दिनांकी भांति माने जाते थे; तब वहीय कायस्योंकि कामरूपक; राजा वैयदेव, गौड़ाधिप मदनपालके