पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४९४ घायस्य चेदिराजके शिलालेखमें एक रत्नसिंहके पुत्रोंका १४यौं शताब्दी तक हिन्दू राजाओंके सबी, सेनापनि, परिचय "निःशेषागमनबोधविमवः" ऐसा मिलता है। कराधिकारी, प्रतिनिधि, राजपखित पादि ऊँचे पदों मध्यप्रदेशके खलरि ग्रामसे मिले हुए, राजा हरिबह पर नियुक्त थे-इसका वर्णन शिक्षालिपि तथा ताम्र- देवके १४१० संवतके शिलालेखमें यों लिखा है- लिपियों में पाया जाता है। पहले शास्त्रीय प्रमाोंसे "श्रीवास्तव्यान्वयनेपा प्रगतिरमलाचरा। यह बता चुके है कि, गौड़देशमें रहनेवाले कायस्थ लिखिता रामदासन पडिसाधीवरेण चा" गौड़-कायस्थ कहलाते हैं। संवत् ११६१ के शिला- अजयगड़ दुर्गमें राजा भोजवओके समयको लेखसे मिला दुवा माथुर कायखों के पञ्च राजकीय पद (६. बारावीं शताब्दीके नागगक्षरों में लिखी और विहहत्ताका परिचय (Indian Antiquary, vol. हुई) दो बड़ी बड़ी शिला-लिपियां हैं, इन्हीं शिला XV.p. 201), १८१८ संवत्को मड़वाको शिलाविपिमें लिपियोंसे श्रीवास्तव वंशका विस्तृत परिचय मिला मिला हुवा भड्यामके वैदिक धर्मनिष्ठ सकसेन है। इनमें सब ही 'ठक्कर' उपाधिधारी थे। कोई कायस्थ महीधर ( उक्त शिलालेखके अनुवादकने हों सर्वाधिकारी था, कोई दुर्गाधिप था, कोई कोषाध्यक्ष महोघरका anointed sacrificer या पति- था, और कोई प्रधानमन्त्रीके पद पर नियुक्त था। याधिक कह कर परिचय दिया है),(Cunningham's श्रावस्तीसे मिले हुए १२७६ मंवत्के शिलालेखसे Arch. Sur. Reports, vol. III p. 59), The मालूम होता है कि, श्रीवास्तव वंश कर्कोटनागका चक्रवर्ती यशोधमाकं मालवीय संवत् ५८८ में सिमित रक्षा किया दुपा वंश है ( Indian Antiquary, vol. मन्दयोरसे पाये गये शिलालेखसे 'राजखानीय तथा XVII. p. 62 ) 1 महापरिहत नैगम वा निगम कायस्थ वंश ( Fleet's काश्मीरके श्रीनगरमें श्रीवास्तवाँका प्रादिस्थान Corpus Inscriptionum Indicaram, vol. IL P. है-ऐसा भी इतिहास पाया जाता है। राज. 152), ग्वालियरसे मिक्षा हुई ११५. संवत्को. गजा तरङ्गियोसे यह मालूम होता है कि, वहांके सब महीपाल देवकी शिक्षामिदिमें महकायस या मट- अधिकारी में कायस्सोंका हाथ था। इसके सिवा नागर बंधीय वायस्थ सूरि सोष पौर "शाब्दिक कौटवंशीय कायस्थ रामापनि काश्मीरमें २५० वर्षसे भदन्त" सूर्यध्वज धौभद्रका नाम-ये सब विशेष ज्यादा राज्य किया-इसका खासा प्रमाण मिलता उल्लेखयोग्य है। है। इसी के राजा जयादित्यके साथ गौड़के राजा (Cordier-Catalogue du fonds Tibetan जयन्सने (कुलग्रन्यमें जिनका पादिशूर नामसे deb Bibliotheque Nationale, p. 67.) सख) प्रपनो सड़की कल्याणदेवी व्याही थी। ई. पहिली शताब्दी सेकर चौथी शताब्ले तब ही से गौड़ोंका श्रीवास्तवाले वैवाहिक सम्बन्ध तक भारतके शासनका शवसेन वंशीय विय, चना जाता है। इन ही जयादित्यने पाणिनीय | गुप्त वंशीय सम्राटोका पाधिपत्य नष्ट हो जानेके बाद व्याकरणको काशिकाहत्ति बनाई थी। इसमें उनके क्षत्रिय-कायस्थके नामसे प्रसिद्ध ए-बटुभटके वेदपाठ करनेका भी पता लगता है। उस समय वे "देववंश" नामक संस्कृत-ग्रन्बी इस बातका पता ही वेदपाठ करनेके अधिकारी होते थे, जिनके लगा है। श्रीकरण कायखोंमें, "माधर-पति' संस्कारादि दिनोंके सदृश थे। ऐसी अवस्थामें और "महोतरनाकर" बनानेवाले मादेवक पिता सोदलका नाम प्रसिक है। ये देवगिरि-यादव- जयादित्यके संस्कारादि हिनोंकी भांति थे-इसमें सन्देश नीं। श्रीवास्तव कायस्थोंके सिवा माथुर, राजके महासन्धिविपक्षिक थे। इनका सत्युकै बाद भटनागर, शकमेन, निगम, गौड़ प्रादि विभित्र इनके पद पर, प्रदितीय मानविशारद, "चतुर्वर्ग- श्रेणियोंके कायस्थ भी, ई.४ घी शताब्दीसे लेकर चिन्तामणि"के प्रणेता हिमाद्रि नियुक्त गए। गौड़