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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/४९८

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कायस्थ 822 सबसे पहले यमपुर, १३ यम राजख करते थे। देशमें पाये थे। अतएव वङ्गीय कायस्थसमाजका- हिवाचार लक्ष्य कर गत १३२१ सालके १८ उन १३ सोगोंमें शेष यमका नाम चित्र रहा। उस समय किसी स्थानमें इसी एक नामके सीन व्यक्ति थे। पाषाढको संस्कृत कालेजके अध्यक्ष महामहोपाध्याय डा.सतीशचन्द्र विद्याभूषण सभापतित्वमें सकल पध्या उनमें एक राजा, एक ब्राह्मण और एक नापित था। पकांकी एक विचारसभा हुयी। इस समाम संस्कत राजाको काल पूरा होने पर ले जाने के लिये यमदूत कालेनके टोल-विमागमें बङ्गीय कायस्थ छात्रों के वेद पा पहुंचा। दूसने ममक्रममे राजाको छोड़ बाण और नापितको ले जा कर वहां उपस्थित कर दिया। पध्ययनका अधिकारसूचक सम्मतिपत्र प्रदत्त और वेदान्त पदानके लिये कायस्थ छाव गृहीत दुवे । यमयीघ्र ही यह भ्रम समझ सके थे। विधा भी यह चदेशीय दूसरे जो सकच प्रधान प्रधान अध्यापक हैं, संवाद सुन कर बहुत ही दुःखित हुये। ब्रह्मा इस उन्होंने इदानीन्तनकाच धनदेशीय कायस्थोंके पवियत्व लिये चिन्तित हो ध्यानस्थ हो गये, जिसमें वैसा फिर पार उपनयन सम्बन्धमें व्यवस्था दी है। वणदेशीय न हो सके। उस समय भी यौन सम्बन्धसे जीवको कायस्थ-समासे प्रकाथित व्यवस्थापनमें उन सफल उत्पत्ति होती न थी। देवताके दुग्धरी जीव बनते अध्यापकों के नाम मुद्रित हुवे हैं। केवल व्यवस्थापक रहे। ब्रह्माके ध्यानस्थ होनेसे सहस्र वत्सर ध्यानमें पण्डित ही नहीं, परमहंसकल्प साधु महामा भी इस वोत गये। पीछे ब्रह्माने देखा कि उनके निकट एक स्थानकी कायस्थ जातिका क्षत्रियवर्ण मानते हैं। कहनेसे श्यामवर्ण पुरुष उपस्थित था। उसके हाथमें मसि- क्या-काश्मोरके उत्तरप्रान्तवासी श्रीश्रीनारद बाबा पान पौर लेखनी थी। ब्रह्माने कहा--तुम हमारी बासानन्द स्वामी महाराज वनको कायस्यजातिको कायासे उत्पन्न और उसी कायामें स्थित हो। इस लिये पानान कर उसका क्षत्रियवर्णव और उपवीत ग्रहणको तुम्हारा नाम 'कायस्य है। इसके पीछे भी ब्रह्मा बोच आवश्यकता घोषणा कर गये हैं। १५ वर्ष हुवे उन्होंने उठे-'तुम गुप्तभावसे हमारे शरीरमें रहे हो। इस स्वयं दचिपरादीय कुसीन कायस्थ वृह श्रीयुक्त विहारी. लिये हमने तुम्हारा नाम चित्रगुप्त रखा है।' चित्रगुप्त साल वसु महाशयको उपवीत दान कर बक कोटनगर ना कर देवी चण्डिकाको पूजा करने लगे। 'कायस्थोंको सम्मानित किया है। कुछ दिन हुवे चण्डीने सन्तुष्ट ही उन्हें तीन वर दिये थे-१ तुम वारेन्ट्र कायख अध्यापक हेमचन्द्र सरकार महाशय दूसरेके उपकारको तत्पर रहोगे, २ तुम अपने और बङ्गज कायस्य हेमचन्द्र घोषराय पुरोके शहर कार्यमें दृढ़चेता होये और ३ तुम बहुत दिन जीवोगे। मठके प्रधान पाचार्यके निकटसे उपवीत संस्कार पाया उल वर प्रदान कर देवी पन्तहित हुयीं। फिर था। स्वामी विवेकानन्द कायस्थ थे। वह अपनी ब्रह्माने चित्रगुप्तको यमपुरीका भार सौंपा और यौन आतिको विशद पत्रियको भांति प्रचार कर गये हैं। सृष्टि प्रारम्भ करनेको पादेश दिया था। सूर्य, विष्णु, सुतरां सामालिक बङ्गीय चित्रगुप्तवंशीय कायस्थ देवी भगवती, शिव तथा गणेश उनके उपास और नि:सन्देश द्विजवर्ण है, यह कहना होवृथा है। ब्रह्मा इष्टदेव हुवे। देवताओं ने जब सुना-प्रव युवपदय। मानसी सृष्टि न होगी, सब धर्मधर्मा ऋषिने अपनी पञ्चावके परिमप्रान्तमे विहारके पूर्व प्रान्त पर्यन्त कन्या इरावतीके साथ चित्रगुप्तका विवाह कर देना सर्वत्र कायस्थ रहते हैं। वह सभी अपनेको चित्रगुप्तका चाहा। सूर्य के पुत्र मनुने मी पपनी सुन्दरी कन्या वशधर बताते और अपनी उत्पत्तिकै सम्बन्धमें भविष्य मुदक्षिणाके साथ चित्रगुप्तका विवाह करनेको प्राग्रह पुराण तथा पद्मपुराणके उपाख्यान सुनाते हैं। इसकी प्रकाश किया था। ब्रयाने दोनों की प्रार्थना -मान छोड़ उनके उत्पत्ति सम्बन्ध पर सुखप्रदेशमें निन ली। इसी प्रकार चित्रगुप्तने दो कन्यायों का पाणि- सिखित प्रवाद भी प्रचलित है:- रहण किया। इरावतीके गर्भसे चित्रगुप्तके ८ पुत्र