सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कायस्थ है। उनसे अयोध्या, काशी, इसाहापाद, मिर्जापुर, अधिकार पर्यन्त पुरुषानुक्रममें इटावेशी कानूनगोई करते रहे। इटावक उक्त शकसेन कायस्थ वंशमें गोरखपुर, प्रकृति स्थानिमि ही लोग बहुत रहते हैं। ही प्रसिद्ध वीर राजा नवलरायने जन्म लिया था। वह भटनागर-अपनेको चित्रगुप्तके पुत्र चित्रका सन्तान बताते हैं। उनमें कोई कहता कि पूर्वकाल भट फरुखाबादवाले बङ्गम-मदाबके वजीर और प्रधान नदीक तौर रहनेसे ही उस नाम पड़ा है। फिर सेनापति रहे। उन्होंने अनेक स्थानमें युद्ध कर जो वीरत्व टिखाया, वह प्रशंसनीय कहाया है। इटावेके किसीके मतमें महमूद गजनवी, तैमूर और हुमायके पुत्र कामरानने दुर्ग अधिकार करनेके लिये भटनगरमें भाट अाज भी राजा नवसरायकी वीरगाथा गाया प्राणपणसे युद्ध किया था। ससी इतिहास प्रसिद्ध करते हैं। अष्ठिान-अपना परिचय चित्रगुप्तपुत्र विश्व- भटनगरमें जी लोग रहे, वह भटनागर नामसे विख्यात हुवे। उनमें दो श्रेणी हैं-भटनागर कदीम या पुराने भानुके नामसे दिया करते हैं। अहिठाम नाम कैसे और गौड़कायस्थी में मिल ननिवाले भटनागरी। बना है? उसके सम्बन्धमें एक गल्प सुनते हैं- यसेन-'सखिसेना से ही अपने नामको उत्पत्ति वाराणसी में बनार नामक एक विख्यात राजा रहे। उन्हें बताते हैं। उनके पूर्वपुरुषोंने वीरत्व दिखा श्रीनगरके उक्त श्रेणीक पूर्वपुरुषोंने अष्टप्रकार मुक्ताका उपहार श्रीवास्तव्य राजावोंसे उक्त उपाधि पाया था। प्रवात दिया था। उससे अष्टान (पहिठान) नाम चल पड़ा। प्रस्तावसे जिन्होंने शक राजावोंके सेनाविभागमें तिल उनमें पूर्वी और पश्चिमी दो भेदं हैं। पूर्वी जौनपुर दिखाया, उन्हींका वंश 'शकसन' कहाया। प्राचीन तथा उसके निकटवर्ती स्थान और पधिमी लखनऊ शिलाम्मिपि शक्सेननातीय कायस्थ ठक्कर नाम एवं उसके पासपास वास करते हैं। उभय श्रेणियों में लिखा है। पान-भोजन प्रचलित नहीं। यकसेनों में भी सुरे' और 'दूसरे दो कुन्न हैं। प्रवादा अन्वष्ठ-अपनेको चित्रगुप्तके पुत्र हिमवानका. नुसार उक्त थेगोंके सोमदत्त नामक कोई व्यक्ति कुपके वंशधर बताते हैं। प्रवाद है उनके पूर्व पुरुष कोषाध्यक्ष थे। शकसैन कहते कि उन्हीं कुशने प्रीत हो गिरनार पर्वत पर जा कर रहे और वहां पम्बादेवोकी सोमदत्तको खर अर्थात् सत् सम्बोधन किया था। पूजा करने पर 'पम्बष्ठ' नामसे परिचित हुवे। स्कन्द. उनके वंशधर इसीसे 'खरे' कहे जाते हैं। दूसरा गल्प पुराणीय साट्रिखण्ड और विष्णुपुराणसे समझ भी है-अकबरके पिता हुमायूं जब ईरान भाग गये, पड़ता कि भारतके पश्चिमांश, अम्बष्ठ नामक एक तब उनके साथ कितने ही शकसेन मी रहे। ईरानमें जनपद रहा। बहुत सम्भव है कि उसी स्थानके उन्होंने १६ वर्ष व्यतीत किये। लौटने पर भारत अधिवासी कायस्थ पम्बह नामसे ख्यात हुये। ग्रीक वर्षके शकसैन उनके साथ भोजन करनेको सम्मत न (यनामो ) ऐतिहासिक पारियानने उनका नाम हुवे। इसी प्रकार ईरानसे प्रत्यागत शकसेन और अम्बष्ठो ( Ambastae) लिखा है। अम्बष्ट बहुतमे, उनके वंशधर दूसरे' अर्थात् हेय समझे गये। बङ्गालमें भी जा कर रहने लगे हैं। सत प्रदेशक शकचेन अपनेको चित्रगुप्त-पुत्र मतिमान्का वंशधर अम्बष्ट कायस्थोंका आचार-व्यवहार माहमणों से बताते हैं। उनका प्रषिक वास इटावा जिले में है। मिलता है। कन्नौज राना जयचन्द्र के मरने पर शकसेन समर सिंहके अधीन इटावेमें जा कर बसे थे। उनके पादिः Home's Memorandum on the Castes of Eta, पुरुष पुष्करदास और निर्मलदासने समरसिंहक p. 87. निकर जागीरमें कई गांव और चौधरी पदको लाभ Journ. As. Soc. Bengal, Vol. XI-VIII, pt. L. किया। उनके वंशधर समरसिंहके समयसे अंगरेजी p. 50-66. नवनायका विस्तृत विवरण द्रष्टव्य है। Vol. IV, 126 +