। कायस्थ उनका पौरोहित्य, करते हैं। बादश वर्षके पूर्व ही मध्यभारत। मन्दाजमें कायस्थों का उपनयन सम्पन्न होता है। मध्यप्रदेशके पूर्वतन अधिवासी कायस्थ प्रपनेको पितामाता अथवा निकट पात्मीयके मरनेसे १२ दिन 'मासव कायस्थ और चित्रगुप्तके सन्तान बताते हैं। मात्र अशीच प्रहण करते हैं। मुसलमान नवाबोंके पागमनकास : मध्यप्रदेशके पाण्डा राजावों के समय मन्दानके कायख अधिकांश ब्राह्मणों ने देश छोड़ दिया था। उस सिंहलदीप गये और सिंहलराज पराक्रम वाहु समय मुसलमानों ने कायस्यों को फारसी भाषामें प्रभृसिसे उन्हें महासन्धिविग्रहिक पद मिले थे पारदर्शी, कार्य कुचल और चतुर देख नाना. मन्द्राजके कायस्थ 'कायस्थल' नामसे परिचित स्थानों पर कानूनगोईका पद प्रदान किया। उनमें पाज भी वह नाना स्थानों में कुन्नकरणी वा कानन· जात्यभिमान वा कुसंस्कार नहीं, प्रायः सब लोग गोईके पद पर प्रतिष्ठित हैं। वह अपनेको चत्रिय लिख पढ़ सकते हैं। वह कहा करते है-'अक्षरों को वर्णान्तर्गत बताया करते हैं।* कुम्भकोणम् प्रति सृष्टि के साथ साथ कायस्थों की भी सृष्टि हुई है। कई स्थानों में कायस्थ मठाध्यक्ष भी हैं। यहां तक विधाताने लिखने-पढ़ने के लिये ही कायस्थों को कि अंगरको अधिकारके राजकार्य में वह ब्राह्मणों के बनाया है। इसीसे मध्यप्रदेशके पति सामान्य महामतिबन्दी बन गये हैं। कायस्थ भी किसी परिचारक कर्ममें नहीं लगे। दासत्व उनमें प्रति हेय कार्य समझा जाता है। गुजरात वह अपना परिचय मसिजीवी क्षत्रियके नामसे दिया कायखाको १२ श्रेणियों से केवल तीन वाल्मीक, करते हैं। १.म या ११२ वर्षके मध्य ही पुत्रका माथुर और भटनागर गुजरातमें मिलते हैं। गुज- मौली सम्पन्न होता है। मृतके उद्देश वह हादश रातके दूसरे हिन्दुवों से अपना समाज पृथक रखते दिन मात्र अशौच ग्रहण करते हैं। उनकी एक मी उनमें परस्पर पादान-प्रदान और पानाहार शाखा निजामके राज्यमें जाकर रहने लगी है। प्रचलित नौं। वहां उन्होंने हिन्दू और मुसलमान राजावों के वाल्योक कायस्थ प्रधानतः सूरतमें पाये जाते हैं। 'पधिकारमें अपनी कार्यदक्षताके गुपसे कितनी हो कहते है-काठियावाड़के वाला नगरमें प्रायः . जागीर और इमाम पाया है। १४श शताब्दको कायस्थ जाकर बसे थे। (रासमाला, श) मन्द्राज प्रेसिडेंसी। किन्तु दक्षिण गुजरातमें उन्होंने प्राय: ई०१६ शताब्दका मन्द्रान प्रान्तमें भी चित्रगुप्त और घान्द्रसेनीय अधिवेशन किया, जब गुजरात मुगलसाम्राज्यमें मिस प्रमु उभय वेषौके कायस्थों का वास है। गया सम्राट अकबरके प्रबन्धानुसार सुरतको प्रतिष्ठा उनका भाचार-व्यवहार और अनुष्ठानादि अधिकतर महा "It is not irrelevont, however, to state here that the राष्ट्रीय कायस्था जैसा है। महाराष्ट्रको मांति whole of tha third class, that of the writers, have a distinct strain of Kshatriya - blond, not only in this मन्दाजके ब्राह्मणेने भी अनेक बार कायस्थोके (Madras) Presidency, but in Upper India, where they साथ छोड़ाहोड़ी की है। किन्तु महाराष्ट्र देशमें are stronger in number as well a9 in infidence." Census ब्राह्मणों के अधिकारसे कोहणस्थ ब्राह्मणों को जो Report of British India, 1831, Vol. III, p. Xolx. Wilson's Mackenzie Collections, p. 615. सुविधा- हुई थी, तैलङ्ग ब्राह्मणों को वह सुविधा Wilson's Castes, Vol. I. p. 66. चग न सकी। जहां वेदभाष्यकार सायणाचार्य बागबमें बाल्मीक मंटनामर मा माघ र परस्पर रोटी बेटीका प्रमृतिका भन्मस्थान है, वहां बाजन्यवर्गने कायस्थों को व्यवहार रखते। हिनातिके मध्य गिमा । वेदन द्राविड़ ब्राह्मण कहते है-मुसलमान उन्हें अपने साथ गजरानाले गये थे। (Mal- colmºs Central India, Vol. 11.. P. 166.. IV. 128 + , Vol.
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