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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५११

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५१२ कायस्थ कायस्थप्रभुवोंमें जाताशौच और मृतागौच १२ प्रति अल्प हैं। उनकी अल्प संख्याका कारण दिन रहता है। त्रयोदश दिवस मृतोद्देशसे बाद क्या है? कोई कोई समझता कि मुसलमानोंके किया जाता है। पेशवावोंके प्राधान्यकाल उनके पाधियत्वकाल उनमें अनेक चान्द्रसेनीय प्रमुवों के माय जातिकटम्बवाले कोणस्थ ब्राह्मणोंने कायस्थ प्रभुषों मिस गये थे। किन्तु पाजकन्न पत्तनप्रभु चान्द्र- पर यथेष्ट अत्याचार किया। उस समय वैदिक सेनीय प्रभुवों का कोई सम्बन्ध स्वीकार नहीं करते। कर्म सम्पादनको ब्राह्मण पुरोहित न मिलने कोई वह अपनेको विशुद्ध चविय और चान्द्रसेनीयों को कोई अपने पाय पौरोहित्य और होमादि वैदिक कर्म अपेक्षा श्रेष्ठ बतनाते हैं। पेशवा पधबा कोहणख कर लेते थे। आज भी किसी किसीने सत वृत्ति नहीं ब्राह्मणवशीय प्रतिनिधियों से सतारेमें जिस समय छोड़ी। * यहां तक कि ब्राह्मणोंके उक्त प्रभावकान्त चिटनबीसों का दारुण विवाद चलता था, उसी समय जिन्होंने स्वधर्मरक्षाके लिये गुजरात, कच्छ प्रभृति दूर अधिकांश पत्तनप्रभु ब्राह्मणों के अत्याचारसे बचनेको देशों में जा कर पात्रय लिया और उपयुक्त पुरोहितके स्वतन्त्र हो गये। फिर भी जो चान्ट्रसेनीयों के साथ अभावमें वाध्य हो प्रशास्त्रीय याजनकार्य ग्रहण किया गाद मित्रता और कुटविताके सूवमें पावद रहे, वर था, आज भी उनके वंशधर पुरोहित, लेखक और स्वतन्त्र हो न सके। उनके घर पान भी चान्द्र- शस्त्रजीवी बने हैं। इसमें सन्देह नहीं कि ब्राह्मणों के सेनीयों के मध्य पाटने' उपाधि भोग करते हैं। यहां पौड़नसे व्यथित और हताश हो कर ही कायस्थ प्रभु वैसा तक कि वह पत्तम ये पोसे पृथक् हो गये हैं। कार्य करने पर वाध्य हुये थे। फिर उनके किसी पत्तनप्रभुवों को माटभाषा अनुहनवाड़ा पत्तन किसी वंशधरने उल उच्च पधिकार परित्याग करना (पाटन) के राजपूतों की भाषासे मिलती है। इसलिये उचित न समझा। बहुतसे लोगों को विश्वास है कि उक्त राजपूतों से हो दाक्षिणात्यके प्रभुवों में किसीको अवस्था मन्द पत्तनप्रभुवों का उद्भव और पाटन नगरसे उनका नाम- नहीं। दाक्षिणात्यमें वह पाज भी देशपाय तथा करण हुवा होगा। कुलकरणी बने हैं और महाराष्ट्रप-प्रदत्त नागौर कोणस्थ ब्राह्मणों द्वारा प्रक्षत क्षत्रिय स्वीकार भोग करते हैं। न किये जाते मी व बरावर यजन, अध्ययन एवं" कोणके अन्तर्गत दमन नामक स्थान में जो चान्ट्र दान विविध हिजोचित कर्म सम्पादन और चान्द्रसेनीय सेनीय प्रभु रहते, उन्हें और पत्तनप्रभुवाले चन्द्रवंधीय कायस्थों की भांति सकर संस्कार पालन करते हैं। कामपतिके दमन नामक सन्तानके वंशधरों को पत्तनप्रभु दशम वर्ष पुत्रको उपनयन देव और 'दमनप्रभु' कहते हैं। उनका प्राचार-व्यवहार और प्रशौचम १२ दिन मान लेते हैं। भाज भी कोहणके. संस्कारादि समस्त चान्द्रसेनीय प्रभुवों से मिलता है। नाना स्थानों में प्रमुखोग बहुतसी जागौर रखते और दमनश्चेशीमें चान्द्रमनीय और पाठारीय उभय श्रेणीका | बड़े बड़े पद भोग करते हैं। मिलन देख पड़ता है। महाराष्ट्रदेशम ध्रुवम्भु . नामक एक पोके चेउल, बसई, कुन्तावा, बम्बई, थाना, पूना प्रकृति कायस्थ देख पड़ते हैं। वह अपनेको पुराणवर्णित निलावों में पत्तन-प्रभुवों का वास है। वह संख्यामें उत्तानपादराजपुत्र ध्रुवका वंशधर कहते और यत्तन- प्रभुवों का एक योभुत समझते हैं। उनके प्रधान "It is certain that some bare aspired to the priest- hood, an office everywhere carefully retained by the : Brabmans, and so to Whisper the sacred formula, perform • Bombay Gazetteer, Vol. XVIII, PE, L p. 185. sacrificial rites. and. to officiate at the Homa, or burn + पत्तनप्रभुवीके वर्तमान पाचार-यवहार सम्बन्धका विरत विवरन . offering. Sherring's Tribes and Castes, Vol. II.) Bombay Gazetteer, VoL XVII, pt. I. (Poope ), . + Indian Antiquars, Vol. V, p. 171. p. 193-255. पौर हिन्दी विवकोषक 'पशवप्रस' मन्दमें द्रष्टव्य है।