कायस्थ राज्यच्यत और विताड़ित हो उहोंने हिसान- व्यक्ति कहा करते हैं-'पाले म सोगोंके साथ देवीका पात्रय लिया था। उन्हीं देवीने दया करके पसनीप्रभुवों का विवाह सम्बन्ध प्रचलित था। मध्यमें उनको कितने ही अधिकार प्रदान किये।"* गवन- उन्होंने पत्तनोप्रभुवो में मिलनेकी चेष्टा की। मण्टने स्वीकार किया है कि काठियावाड़ पौर कच्छ- पत्तनप्रभुवों ने उन्हें स्वजातीयकी भांति स्वीकार करते भी समाजमें ग्रहण किया न था। उनका पाचार• प्रदेशमें यान्तिस्थापन तथा हटिश शासनके प्रचारकाल व्यवहार और गठनादि पत्तनमभुवों की ही भांति उक्त ब्रह्मक्षत्रिय वंशीय सुन्दरजी शिवाजीने कर्नल लगता है। उनकी स्थिति भी मन्द नहीं। वह वाकर प्रकृतिको यथेष्ट साहाय्य दिया था। पेशवावोंक क्षत्रियोचित संस्कारादि सम्पादन करते और ब्राह्मणा समय कोई कोई प्रभु जा कर उनसे मिच गये। जहां व्यतीत अपर सकल जातिको अपेक्षा अपनको श्रेष्ठ प्रभु कायस्योंका वास अधिक और ब्रह्माचत्रियों की समझते हैं। ब्राह्मणको छोड़ दूसरी किसी जासिके संख्या पख्य है, वहां उभयचौके मध्य विवाह-सम्बन्ध हाथ ध्रुवप्रभु पाहार नहीं करते। अष्टमसे दशम हो जाता है। वर्षके मध्य वह पुचको उपनयन देते हैं। हादश दिन षष्ठसे दशमवर्षके मध्य वह पुत्रका उपनयन मृताशौच ग्रहण किया जाता है। फिर त्रयोदश करते हैं। उनके विवाहका पाचारादि दाक्षिणात्यके दिवस मृतके उद्देश बाप-क्रिया सम्पन होती है। ब्राह्मणांकी भांति है। पानीय और सपिण्डके मरने उपनयन, विवाह और बाद तीनों संस्कार महा. पर दश दिनमान अशौच ग्रहण करके पीछे बाद- समारोह और बहु व्ययसे किये जाते हैं। विधवा भोजादि करते अधिकांश स्थलों में प्रचत्रिय विवार वा बहुविवाह उनके मध्य प्रचलित नहीं ।* मसिजीवी और वणिक्का कर्म चलाते हैं। कहों सिन्धु, गुजरात और महाराष्ट्र में ब्रह्मचत्रिय नामक कहों उन्हें पौरोहित्य करते भी देखा जाता है। कायस्थ रहते हैं। सद्याट्रिखण्ड में सूर्यवंशीय और अधक्षत्रिय देखने में अधिकांप गुजराती ब्राह्मणों- चन्द्रवंधीय प्रभु ही मनचत्रिय नामसे वर्णित जैसे होते हैं। सकस ही सुची, परिस्क त पौर अधिक सम्भव है कि प्रश्नपति एवं थिचित हैं कामपतिके सन्तानों में जो पैठनपत्तन पथवा पनहल. बाड़पाटनमें रहते उन्हें “पत्तनप्रभु और गुजरात, सिन्धु सथा कर्णाट प्रकृति स्थानमें नो रहते उन्हें भारतवर्ष में सर्वत्र कितने ही पकायस्थ मिलते "अमक्षत्रिय कहते हैं। कर्णाट और सिन्धु प्रदेश में हैं। कायखोंसे शूद्रकन्याके अवैध संयोगमें उस सक्त ब्रह्मक्षत्रिय किसी समय पति प्रवस पड़ गये थे। सकल उपकायस्थों की उत्पत्ति है। उनके साथ प्रक्षत सिन्धु और कच्छ प्रदेशमें उन्होंने बहुकाल राजत्व कायस्थोंका कोई सामाजिक संस्रव नहीं। फिर भी किया। कच्छमें बहुसंख्यक ब्रह्मक्षत्रियांका वास है। भनेक उपकायस्थ कायखोंके निन्दावाद और नीच- वहां ब्रह्मचत्रिय कहा करते है-"परशरामको परश. जातित्व प्रतिपादन करनेकी चेष्टामें लगे रहते हैं। धारासे जो क्षत्रिय प्रामरक्षा कर सके थे, हम उन्हींके उनको अवस्था देख कर ही सम्भवतः पौधनस धर्म- वंशधर हैं। सिन्धुप्रदेशमें हमारे पूर्वपुरुषोंने बहु- शास्त्रका वचन गठित और कमलाकर द्वारा सहार- कार राजत्व किया। विदेयौ वर लोगोंके हाथ कायस्थोंको व्यवस्था लिपिवई यी है। थोड़ोसी पाखोचना करनेसे समझ पड़ेगा-भारतवर्षीय प्रकृत ध्रुवप्रभु के जन्मसे मस्य, पर्यन्त पाचार-व्यवहारादिका विवरण कायस्थ-समाजके साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं। Bombay Gazetteer, Vol. XVIII, pt. I. p. 185-192 # द्रष्टब्ध। • Indian Antiquary, Vol. V. p. 171 Vol. IV. 129 उपवाया।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५१२
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