पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५२१

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कारगोपाधिः-कारन्धमो 'दिये। तत्यवन यथा,-'वादीने कहा-मैं पुरुषानुन तीर्थो को जनशून्य देख ऋविशेसे इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा कि उन पांचों तीर्थो में जल- क्रमसे इस जमीनको दखल करते पाया इं, इस लिये यह मेरी है।' प्रतिवादीने उत्तर दिया,-मैं भी मन्सुका अत्यन्त डर था, उससे कोई उनमें उतरतान पुरुषानुक्रमसे इस जमीनको दखत करते पाया ई. रहा। पर्जुन यह वाक्य सुनके एक तीर्थ में उतर पड़े। इस लिये यह मेरी है। दुबंच यथा,-वादौने कहा उसी समय जलजन्तुने उनका पाददेश पकड़ा था। मैं यह जमीन पुरुषानुक्रमसे दखल करते पाया ई, इस किन्तु वह उससे न डर। फिर उन्होंने बलप्रयोगसे लिये यह मैरी है। प्रतिवादीने उत्तर दिया. मैं दश कुम्भीरको तीरमें उत्तोलन किया। वह कुम्भीर तोरमें वर्षसे यह जमीन दखत करते पाया इस लिये उस्थित होते ही सुन्दरी नारीको मूर्ति बन गया। यह मेरी है।' (व्यवहारवच ) भनुनने वह देख नितान्त विस्ायसहकार उससे पूछा कारणोपाधि (सं० पु०) ईश्वर। -वह कौन था, क्यों उस प्रकार कुम्भोरमूर्तिमें जलके. कारणव (सं० पु.) कारण्डं वाति अथवा कारण्डस्य •मध्य रहता था। नारी उन्हें उत्तर देने लगों कि इदं कारण्डं तदाकारं वाति, कारण्ड-वा-क। भावोऽनुप वह प्रसरा थी। किसी समय वह अपनी चार सगै कः। पा शा३ । १ ईसविशेष, कोई बतक । २ दौर्घ सखियोंके साथ इन्द्रालय जाती थीं। राहमें उन्होंने एक चरण कृष्णवर्ण पक्षी, लम्बे पैरवाली काली रूपवान् बामण युवकको तपस्या करते देखा। फिर दरयायी चिड़िया। वह सनकी तपस्था भङ्ग करनेको नाचने-गाने खगों। कारण्डवपती (सं० स्त्री०) कारण्डवः सविशेषः पस्ति । माअपने उससे क्रुद्ध हो पभिशाप दिया था,- पस्याम्, कारण्डव-मसुप्-डीप मस्य कः। नदीविशेष, पांची जवजन्तु बन चिरकार जन्नमें विचरण करो।' एक दरया। इसमें इंस बहुत रहते हैं। सन्होने उक्त पमियाप सुनके रोते रोते उनसे चमा 'कारहव्यूह (सं० पु.) १ कोई बौद्ध । २ बौडौका मांगी। उन्होंने कहा जब वह कुम्भीररूपसे किसी • कोई शास्त्र। पुरुषको पकड़ेंगी, तभी शापमुक्त हो अपने पूर्व रूपको कारतूस (हिं० पु.) टोटा, एक सम्बी नली पहुंचेगी। फिर वह लिन जलाशयोंमें जलजन्तुरूपसे (Cartridge)। इसमें गोली छरा और वारुद भरते रहेंगी, वह भारीतीर्थ नामसे पवित्र तीर्थको ख्याति- हैं। कारतूसको एक भोर टोपी लगती है। लाभ करेंगे। ब्राह्मणके वाक्यसें कयश्चित् कारन (हिं. पु०) १ कारण, सबब । (स्त्री०) २ करणा, श्रावस्त हो वह चिन्ता करतो घों-उन्हें कुम्भौरक्ष्य रहमा धारण कर कहां अवखान करना पड़ेगा, जहां कारनिस (० स्त्री० Cornice ) प्राकारगीर्ष, सौंका, मुक्तिकारक पुरुषका दर्शन मिलेगा। ... उसी समय कंगनी, कगर। देवर्षि नारदने वहां पहुंच उस यांचो स्थान उनकी कारनी (हिं. पु०) १ ईखर, प्रेरक। २ भेदक, बलाके कहा था कि भल्य दिनमें ही पर्जुन वहां पहुंच भेदिया। उनको मुक्त कर देंगे। उसी भाशासे वह उ एक - कारन्धम (सं० पु०) करन्धमस्य अपत्यम्, करन्धमा एक जनाभयमें रहती थी। फिर मारौमे कहा, पण। १ करन्धम रानाके पुत्र. प्रवीक्षित् (करन्धमस्य जैसे प्रतुनके पनुपहसे उन्होंने मुक्ति पायो, वैसे-ती गोवापत्यम्) २ करधमके पौत्र मरत। (मो.) . वह उनको चारो. सखियों को भी अनुग्रहपूर्वक मुक्त नागेतीर्थ विशेष, औरतोंका कोई तीर्थ । महाभारत में करके उपकत करते। पर्नुनिने सदनुसार क्रम क्रम उक्त तीर्थको उत्पत्ति कथा लिखी पर्जुनको तीर्थ- दूसरे चार तीर्थोसे सखियों को मुक्त किया। "भ्रमणके समय तपस्वियोनि पगस्य सौभद्र: पोमोम, • कारन्धम और भारद्वाज पांच तीर्थ देखायो। प्रजनने ! कारधी (पुबर एवं भारत.पादिRSARY धमति, 1 - .