कार्यास भडौचसे वहां कार्पासवस्त्र भेजा जाता था। पहले कासका व्यवहार पाया था। कौन कह सकता है- भारतके मनुनिया (पाधुनिकं मसलोपत्तंग) नामक भारतसे वह अमेरिका गया या अमेरिकामें खमावत: स्थानमें उत्कष्ट कार्यासवस्त्र प्रस्तुत हाता था। उसोसे उपजा अथवा अमेरिकाके लोगोंने स्वतः उसका गुण मालिन शब्द बना है। ढाकेका असतिन् ग्रहण किया था। सम्भवतः पन्तिम पनुमान ही उस समय मी सर्वापेक्षा उत्कष्ट गिना जाता था। ठीक है। गङ्गाके कूल में प्रस्तुत होनेवाले वस्त्रको ग्रीक गादितिक अपने अभ्यस्थान के समय मुसलमानोंने कार्पास की कहते थे। चारो दिक् भारतके कार्याध्वस्त्र का आदर व्यवहार प्रणालीके सम्बन्धमें चारो दिक् शान फैलाया 'देख पडता था । क्रमशः परवसे पूर्वदिक् पारस्य पौर था। वही ज्ञान इटली और मनमें फैल गया । क्रमश: पश्चिमदिक ग्रीस तथा रोमको कार्यासवस्त्र भेजा पोलन्दाज स्वयं कार्यससे वस्त्र प्रस्तुत करने लगे। अंग- जाने लगा। पर एस पोर किसीने लक्ष्य न किया रेजीने देख उनसे उन ट्रष्योंका पादर करना सीखा था; क्या पदार्थ है। वस्त्र पहन कर ही लोग रहै। किन्तु फिर वह बोलन्दाजों के अनुकरणमें कार्यासक वस्त्रादि क्रम क्रमसे तूतको कषि पर भी लक्ष्य पड़ा था। बनाने लगे। ई० १६३ शताव्दक शेष भागमें अंगरेजोंने सूलको कृषि धीरे धीरे भारतसे पारस्य, पारस्यसे परब, तुर्किस्तानसे कार्यास संगाना प्रारम्भ किया। भरमसे मिसर और मिसरसे अफरीका मध्यभाग १६..ई में ईष्ट इण्डिया कम्पनीने रानी एलिजा. तथा पयिम भागमें फैलने लगी। पारस्यसे तुरक और वेथमे भारतमें वाणिज्य करने की अनुमति पायी थी। वहसि युरोपके दक्षिण विभाग कार्यात वृक्षको भारतसे अन्यान्य द्रयों के साथ इङ्गजेण्डको कार्पास कृषि चली थी। फिर यूरोपीय कार्यासनात तूलसे | पौर कार्पासनिर्मित वस्त्र भेजा जाने लगा। कागज तक बनाने लगे। कलिकाटसे कार्यास-वन्न पाने के कारण उक्त वस्त्रका चौनके साथ भारतका बहु कालसे वाणिज्य चलता नाम कैलिको पड़ गया। कार्यासवस्नपर लगायी जाने- है। किन्तु चीनमें उस समय भी कार्पासवृक्षको कृषिको | वाली छाप केलिको प्रिण्टिङ्ग कहाती थी। कोई चेष्टा न की गयी थी। ई०६ठे शताब्दको प्रोटी कार्पासवस्त्रको छौंटका विस्तायतमें उस समय नामक सम्राट्ने कार्यासवस्त्रका एक परिच्छद उपढौक बड़ा समादर रहा। समादर ऐसा बढा कि विलायतक नमें पाया था। पर उसका बड़ा भादर करते थे। लोगोंने इङ्गालेण्डका ऊनी वस्त्र छोड़ कार्यासके वस्खेका वें शताब्दमें चीनावोंने सुना-किसी प्रकारके वृक्षसे ही व्यवहार प्रारम्भ किया.था। कार्यास निकलता है। बहुत शोभामय होने चौना विलायत पन्न व्यक्ति का और तून्दों का प्रभेद कार्यासके वृक्षको उद्यानमें रखने लगे। किन्तु किसीने समझते न थे। उनके निकट सभी कर्ण यो। सुतरां नियमानुसार कृषि न की। वह जाति रक्षणयौल होती यह कहने लगे,- क्या कहीं पेड़ पर जन होती है, सहसा किसी प्रकारका परिवर्तन करना या नूमन है। उसोको लेकर हमार- देयको जन बिगाड़ डालो।" सामग्री लेना नहीं चाहती, सुतरां चीनमें रूईका बहुत १६७६ ई० में प्रथम इङ्गलेण्ड कार्पासका वस्त्र बना समय तक पादर न हुवा । क्रमशः वहां भी उसकी था। १६७८ ई० में विलायतके व्यवसायियों ने देयके कषि बढ़ने लगी। पान काल चीना कार्यासका पादर लोगोंके निकट दुःख प्रकाश करने के लिये एक पुस्तक समझ गये हैं। क्या छोटे क्या बडे सभी चीनो कार्यासक निकाला। पुस्तकका नाम "The ancient Trades वस्त्रका व्यवहार करते हैं। खब. समझा जाता है कि decayed and repaired again" था। असन्तोष कार्यास भारतसे निकल यूरोप और अफरीका पहुंचा क्रमयः बढने लगा। गवरनमण्ड फिर स्थिर रह न है। किन्तु अमेरिकामें भी कार्यास. वृष देख पडता सको, १७०० ३० में एक कानून बना था। कीसवसने पाविष्कार करते समय अमेरिकामें उसके पादेशानुसार अपने गाईस्था प्रयोजन के लिये अर्थात् IV. 186 Tol
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