पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५४२

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झापांस ५४२ पदा करनेको विशेष चेहित हुये। भारतमें कृषि अन्यान्य देशों में भी भेजी जातो है। १८८८-८९ ई०को एवं पुष्य समितिके सभ्यों और बहुतसे दूसरे लोगों ने इङ्गलेण्ड १७ लाख, इटान्ती ७ लाख, अष्ट्रिया ७ लाख, उसके लिये बड़ी चेष्टा को थो । १८३० ई में कलकत्ते वेनजियम ८ लाख, फ्रान्स ५ लाख, चीन १ लाख, के निकट पाखाडा नामक स्थानमें ५०० बौधे जमीन जर्मनी १ लाख ४० हजार और रूस डेढ़ लाखको ले कपासको खेती करायौ गौ। सीन वर्ष पोछे देखने हुई भारतसे पहुंची घो। एतदव्यतीत पङ्गले गहसे पर कोई विशेष फल न निकला । जोसे वह परित्यक्त अन्यान्य देशों में उसे ले जाते हैं। बोनमें सत्र कासि हुयो। १८३८ ई. में अमेरिकासे बीज और नवें नये उपजता है। फिर भी वहां भारतीय रुईकी जरूरत इलोंके साथ दश पारदर्शी लोग भारत बुनाये गये। पड़तीहै। किन्तु युरोपमें महासमर हो जानेसे भारतको उनसे तीनबम्बई,तीन मद्रास और चार पादमौ वङ्गान रुईको कम रफतनी होती है। दूसरे महात्मा गांधीने में रहे। बहुत चेक्षा करते भी शेषको कोई स्थायी फल भारतमें बीस लाख घरखे चलानका भादंग दिया है, न मिला। फिर अमेरिकाको रुईका वीज भारत के कृष- उसीसे रुईका बाहर निकलना अब लोग अच्छा नहीं कोंको दिया गया।१८२ ई० को अमेरिकामें युद्ध लगा समझते। था। उससे वहांधी कई बाहर जान सकी। अंगरेज बाहर भेजने के लिये रूईको गांठ बांधना पड़ती भारतमें अमेरिकाको मांति पैदा करनेकी विशेष है। फिर माने जाने में नहाजकी सुविधा असुविधा भी चेष्टा करने लगे । भारतको कई भी खुब खपी घो। देखते हैं । नियत चेष्टा होती रहती है-जहाजको १८३० ई० से पहले सिर्फ तीन करोड़की कपास विलायत घोड़ी जगहमें कैसे ज्यादा माल भर दिया जाय । माती थी। किन्तु १८६६ ई० को ३७ करोड़की रुई जहाजके स्थानानुसार किराया भी ठहरता है। महा- भारतसे विनायत भेनी गयो। १८८७ ई को श्मेरिका जनोंको किराया देना पड़ता है। मुतरां समझनेको विवाद मिटा था । उसके साथ भारतीय रुईकी चेष्टा की जाती है-अल्प स्थानमें कितना अधिक माल रफतनी भी घट चलो। ३ वर्ष ८ करोड़ रुपयेने भी नद सकेगा सो उद्देशसे रुई की गांठ घटाने और कमको रुई को रफतनी हुयी। उसमें ज्यादा माल लगानको चेटा हुवा करतो है। १८६३ ई० में एक बम्बई प्रदेश और एक मध्य रूईके परिमाणानुसार गोठ घटती बढ़ती है। प्रदेशमें काटन-कमिशनर नियुक्त हुवा था। उसी वर्ष फिर जहाजके लिये रुईकी गांठ बहुत घटा दी जाती बम्वैया रुईको मिलावट निवारण · करनेको कानन है। उससे भारतमें विलायती वाष्पोषकन्न प्रस्तुत शौ बना । भेषको विदेशीय वीज छोड़ यन्त्र द्वारा देशीय है। उक्त कलको संख्या दिन दिन बढ़ रही है। कार्यास की बात करनेकी चेष्टा हुयो । वह पेश कुछ १८८८ ई. को भारतमें कोई ढाई सौ वैसी कलें थी। कुछ फलवती हुई थी। पाज भी विलायत भारतको भारतको रूई इङ्गले गड नाती है उससे बातमी रूईका यष्ट पादर है। नीचे तानिका दो जाती है कलोंमें उस देशका प्रयोजन माधित होता है। फिर कि१८७० ई. को इङ्गलेण्ड में किस किस देशसे कितनी रङ्गलेण्ड देशकै प्रयोजनसे अधिक कार्यासवन प्रस्तुत रुईको गाँठ पहुँचौं। कर सकता है। शेषको कलका वस्त्रादि भारत भी अमेरिकासे १६६४०१., भारतसे १०६३५४, भेजा जाता है । वह भारसमें पाकर खपता है। क्रमशः जिलसे 8०२७६०, मिसरसे २१८८२०, पौर वेष्ट मैनचेष्टरको कलों में भारतीय लोगोंके परिधेय वस्त्र का एडीज़ हीपपुनसे ११२१. गांठ । भारतको ईका अनुकरण होने लगा है। वह इंइलेण्डसे भारतको सेर पोछ । ग्यारह पाना मूल्य पड़ा था। मेना जाता है। सामान्य लोग स्वरुप मूल्यमें से घट नाते मौ पान कान्त बङ्गले में भारतको रूकाखरौद व्यवहार करते हैं। उमौसे भारतीय तन्तुवायांका बहुत पादर है। जलेण्डको छोड़-भारतको कई व्यवसाय लोप होने की अवस्थाम नापड़ा है । व्यवसाय