. ५६. कालचिह्न मध्यस्थल और नेत्रज्योतिः देख न पड़नेसे अल्प मृत्यु होता है। धृन्तिराशि, वल्मीक, यूप अथवा दण्ड दिन में ही मृत्यु होता है। नौलादि वणं वा अनादि पर पारोहण करते देख ६ माममें मनुष्य प्राण छोड़ता रस अन्यथाभावमें अनुभव करने पर्थात् वस्तुका प्रकृत है। फिर स्वप्नमें गर्दभ प्रारोहण कर भूषित शरीर वर्ण छोड़ अन्य वर्ण देख पड़ने और वस्तुका प्रकृति दक्षिणदिक जानें अथवा अपना मस्तक किंवा गगैर प्रास्वादन पा अन्य प्रास्वाद मिलने से ६ मासके मध्य शुष्क काष्ठ एवं वणयुक्त देव पानसे भी आयुःकाल मृत्यु प्राजाता है। कण्ड, श्रीष्ठ, जिह्वा और तालु ६ मास रहता है। स्वप्न में कृष्णावस्त्र पहने और लौह- प्रकृति स्थान निरन्तर सूखनेसे ६ मासमें मनुष्य मरता दण्ड लिये कृष्ण पुरुषको सम्म ख खड़ा देखनसे ३. है। जिसका दन्त, नख और नेत्रकोण नीलवर्ण मासके मध्य मनुष्य मर जाता है। स्वप्नमें अतिकष्ण- लगता, उसका भी प्रायुःकान्त ६ माससे अधिक नहीं वर्णा कुमारी आनिङ्गग्न करनेसे एक मासके मध्य मृत्यु चलता। मैथुनकालमें मध्य और शेष समय छौंक पाना है। स्वप्नमें वानर पर चढ़ पूर्व दिक, गमन पानसे ५ मासमें मृत्यु होता है। मानके पीछे प्रथम करते देखनसे ५ दिनमें यमलोक यावा होती है। ही जिसका वक्षःस्थल और इस्तपद सूख जाता, वह कृपण व्यक्तिका हठात् दाता और दाता व्यक्तिका व्यक्ति ३ मास मात्र जीवित रहता है। धति और हठात् कृपण हो जाना भी मृत्य का एक लक्षण है।" कदमके मध्य जिसका पदचिन्ह खण्डरूपसे उभरता, (काशीखण, ४१०) वह ५ मासके मध्य मरता है। देह निश्चन्त रहते भी आयुर्वेदशास्त्रमें भी मृत्यु के नानाप्रकार लक्षण जिसकी छाया हिलतो डुलतो, उसको जीवितावस्था निर्दिष्ट हैं । जैसे सुश्रुतमें-शरीरका आचार व्यवहार ४ मास तक चलती है। जिस व्यक्तिको प्रतिविम्वमें स्वाभाविक अपेक्षा अकारण विकास हो जाना संजे. अपना मुकुट और मस्तकादि देख नहीं पड़ता, वह पमें मृत्य का लक्षण कहा जाता है। जो व्यक्ति- उसी मास चम्न बसता है। बुद्धि भ्रान्त होना, वाक्य किसी प्रकारका शब्द न होते भी दिय शब्द गिर जाना और रातको इन्द्रधनु, दो चन्द्र अथवा सुनता और इसीप्रकार जिसे समुद्र मेघ प्रतिका- भाकाश नक्षत्रशून्य, दिवाभागमें दो सूर्य, आकाशमें शब्द न निकलते भी दिव्य शब्दसमूह सुन पड़ता नक्षत्रसमूह, चारोदिक एक ही समय इन्द्रधनु, पिशाच एवं शब्द होते जो नहीं सुनता अथवा अन्य शब्दकोः नृत्य, एवं वृक्ष वा पर्वत पर गन्धर्व देखाना सब आशु भांति उसे समझता अर्थात् विरतिकारक शब्दसे मृत्यु के लक्षण हैं। इनमें एक भी उपस्थित होनेसे एक सन्तुष्ट तथा सुशब्दसे असन्तुष्ट रहता ; उसका मृत्यु मासके मध्य मृत्यू पाता है। हस्त द्वारा कर्ण श्रावरित अतिशय निकट आ पहुंचता है। शीतन्न द्रश्य कर जो व्यक्ति किसी प्रकार शब्द सुन नहीं सकता, उष्ण एवं उष्ण द्रव्य शीतन्त लगने, शीतपीड़ित उसका जीवन जैसे-तैसे चलता है। सल व्यक्ति हठात् होते अणमर्शमें कष्ट पड़ने पथवा अत्यन्त उष्ण- कृश अथवा वश व्यक्ति हठात् स्थल हो जानसे एक गाव रहते शीतसे कंपने, प्रहार वा अङ्गच्छेदन कर- मासके मध्य मृत्यु, पाता है। अपनी छाया दक्षिणदिक नसे किसी प्रकार वेदना न मालम पड़ने, शरीरपर अवस्थित होनेसे पांच दिनमें पञ्चत्व मिलता है। जो धूलि उड़ने, शरीरका वर्ण वदन्दने, या मर्व शरी- व्यक्ति स्वप्न में अपनेको पिशाच, असुर, काकं, भूत, प्रेत, रमें सूत्र जैसा पदार्थ निकलने, मानके पोछे अनु- कुक्कुर, सद्धी, शृगाल, गर्दभ, शूकर, शरभ, उष्ट्र, लेपनादि गावमें लगाते, नौम मक्षिका पा जुटने वानर, श्येनपक्षी, अखतर वा हक प्रभृति जन्तु द्वारा और अकस्मात् सुगन्धि वासक निकल चलने भी भक्षण वा आकर्षण किये जाते देख पाता, वह एक मनुष्य मृत्युपासत्र माना जाता है । रससमूह नो वर्ष पोळे मर जाता है। स्वपमें अपना शरीर गन्ध, व्यक्ति विपरीत भावसे प्रास्वादन करता और यथा- पृष्प और रक्तवस्त्र द्वारा भूषित देखने से मासके मध्य • युक्त रससमूह जिसके लिये दांपतषि कारक तथा
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