पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५५८

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कालखञ्चन-कालचिह्न कारटन (सली.) कालेन कालान्तरेण खन्नति भागका पूर्वाड, मथाइ एवं अपराज तीन ग्रंय तीनों विश्वनि गच्छति, कान-दविल्य। यत्, कलेजा। नाभि, संवत्सर परिवत्सर प्रभृति पांच पर अर्थात् कालवण्ड (स.ली.) कान्तं कृष्णवण खण्डं मांस शक्षाका भौर छही ऋतु कालचनाके नेमि पर्थात् प्रान्तमाग हैं। दिवादि कालावयव नियत चक्रको खण्डमा कधा । १ यकत. कलेजा। कामप्रति पादक एक्ष प्रन्या ३ यवतोगद, कलेजेकी एक भांनि धमता है। इमोसे कालचका साय उपमित बीमारी। हुवा है। सुश्रुतमें लिखते हैं कि निमेषादि युग पर्यन्त बालगना (सं० स्त्री.) काली क्षणवर्णा गङ्गा गङ्गावत् कानावयव नियत घुमनेसे कुछ लोग कालचक्र कहा पवित्र कारणी, कर्मधा । १ यमुना नदी। २ सिंहस- करते हैं। २ च्यातिश्चक विशेष। ३राजा लोगों के की एक नदी विजयप्रद ८४ चक्रों में एक चक्र। प देखो। ४ दामो कालगण्डका (स' स्त्रो.) नदीवियप, एक दरया। लिये रौप्यनिर्मित एक चना । यह चक्र दान करनेसे पाजकन इसे कालीगण्डक कहते हैं। अपमृत्यु का भय नहीं रहता। ५ दण्ड वियप। शालगत (हिं. पु.) सर्प विशेष, काले गण्डेवाला ६ भोटंप्रचलित एक कालमापक चक। (पु.) ७ अस्व. सांप। विशेष, एक इथियार। कालगन्ध ( स० पु.) कालः कृष्णवर्ण: गन्धः गन्धवत् कालचिन्तक (सपु.) कालं चिन्तयति विचारयति, दृश्यम्, कधः। १ काला अगुरु नामक औषध | कालचिन्ति रख ल् । ज्योतिबिंद, नजमो, समयको २वानलेग, थोड़ा कालापन । ३ काला चन्दन। विचारनेवाला। ४ सर्प विशेष, विसी धिमाका साप । काम्नचिह्न (संलो. ) कालस्य मृत्योर्धापकं चिह्नमा कालगति (सं. स्त्री०) समयका प्रवाह, वक्त की मध्यय० । मृत्युधायक लक्षण विशेष, मौतको बलामत । चान काशीखण्ड में उसके को लक्षण लिखे हैं,-"जिनके कालग्रन्थि (पु.) कानस्य अन्थिरिव, उपमित दक्षिण नासापुटसे एक अहोरात्र काल निश्वास चवता, समा । वत्सर, साल, वक्त की गांठ। वह तीन वर्ष में प्रवन मरता है। ऐसे ही दोपहो- कालपाम (#. पु.) कास्य कृतान्तस्य ग्रासः, तत् । रात्र या तीन पहोरात्र चलनेसे डेढ़ वर्ष तक प्रायु:- मृत्य, मौत, बलका कीर। काल रहता है। नासापुटवय परित्याग का वाधु काल घट (स, पु.) एक ब्राह्यण। जनमेजयके सर्प- यदि मुखसे पाता जाता, तो मनुष्य तीन दिनमात्र यजम यह भी पौरोहित्य कार्य पर नियुक्त थे । जीवित देखाता है। इसी प्रकार सूर्य सप्तम राशिख (भारत, भादि ५५०) और चन्द्र जन्मनधनस्थ होनेसे अकस्मात् मृत्यु पाता कामघाती (सं.वि.) काले यथाशाले धातयति माथ अकस्मात् किसी व्यक्तिको जो व्यक्ति अथवा यति पिनि। यथाकाल विनाशकारक, वनसे मारने पिङ्गलवर्ण की भांति समझता, वह दो वर्ष में मरता है। मन, मूव और शुक्र अथवो मल, मूवं और सुत कान्तकृत (स.पु०) इनसतोऽपि अल नः, कोः (खुखार ) एक साथ गिरने से एक वत्मरमान पायु:- काटेशः। सुवर्ण सुखी, सोनामुखौ। २ कासमद, काल रहता है। जो व्यक्ति प्राकाशमें इन्द्रनीलवर्ष कसौटी। सर्प सकल सचरण करते देखता, वह छह मासे कालचक (स.ली.) कालस्य कागतेधक्रमिन, जीताजागता है। फिर परिष्कार दिवसको सूर्य को ६-सत् । १ कामरूप चक्र, वकका पहिया या फेर। विपरीत दिक फूकार द्वारा छोड़ने पर यदि जलमें चक्री भांति इसमें भी नैमि, नाभि और अगदि इन्द्रधनुः देख पड़ता, तो भी मनुथ छह मासमें भरता प्रसूति कस्थित है। मस्यपुराणके मतानुसार दिवा- अपनी निजा, नासिकाका अग्रभाग, भूदयका