पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कालपुच्छक-कालपत्ति कालपुष्प (०.ली.) कालं कण पुष्य यस्ख, बडुब्रोन कालपुच्छक, कालपन देखो। कालपुरुष (सं० पू०) कालः कालचक' 'पुरुष एव कमायक्ष, मटरका पेड़। कटाय देखो। उपमि०।१ यमसहाय । रामचन्द्रकी लीलाके प्रव कालपूग (सं० पु०) कालः कृष्णवर्ण: पूंग: गुदशका, मानमें देवगणक प्रादेशमै यह उनकी सभामें पहुंचे। कर्मधा० । १ करुणवर्ण गुवाक,कालो सुपारी २ साषा- थे। फिर इन्होंने रामचन्द्रको निभूत स्थानपर कथनो. रण जन, मामूनो लोग। पकथनमें नियुक्त किया। उसी समय हारस्थ दुर्वासाके-कालपृष्ठ ( स० लो०) कालं कणं ठं यस्य बहुव्री। "पनुरोधसे लक्ष्मण वहां गये थे । रामचन्द्रने १ कर्णका धनु । २ धनुमान, कोई कमान् । (पु.) अपनी प्रतिज्ञाक अनुसार लक्ष्मणका परित्याग किया। ३ मृगविशेष, एक हिरन । ४ वकपक्षी, बूटौमार। उसी शोकसे लक्ष्मपने सरयूजलमें अपना प्राण छोडा | कानपेणिका (सं० स्त्री.) १ मनिष्ठा, मंजीठ। २ कण- • था। फिर रामादि अपर तीन माताओंने भी उसीप्रकार जोरक. काला जोरा | ३ श्यामान्लता, कालो वेल। तौला परिवर्तन कर दी। (रामायण) कालदेशी (स'. स्त्री. ) श्यामानता, कालो वेल । २ पुरुषको भांति श्राकार विशेष, प्रादमीगेसी कालपेषो (सं० स्त्रो०) पिप्यते ऽसो, पिष् कर्मणि पत्र, एक शकला यह मनुष्यका शुभाशुभ गणना करने कालचासौ पेषश्चेति, कालपेष-डीए । श्यामान्तता, ‘लिये जन्मलग्न प्रति हादश राशि दाग कल्पित कालो वेल। इसका संस्क त पर्याय-कालपेषी, महा- 'पुरुषकी भांति बनाया जाता है। इस प्राकृतिमें मस्त श्यामा, समदा, उत्पलशारिवा, दीर्घमूला, पालिन्दी कादि समुदाय अङ्ग-प्रत्यक्ष चित्रित कर शुभाशम और मसूरविदवा है। श्यामावना देखो। 'निर्दिष्ट होता है। इसके अनुसार लक्ष्य पुरुषके कालप्रजा-जातिविशेष, एक कोम। कई अष्णवण भी उसी उसी अङ्गमं शुभाशुभ पड़ा करता है। जाति इसी नामसे पुकारी जाती हैं । भारतवाले (वाक्षक) पश्चिमघाट नामक पर्वसके निम्नप्रदेशमें इसका वास ३ कालरूपेश्वरकी एक मूर्ति । यह दान करने के था। भाजकल इस जातिके लोग वहांसे जा सुरतमें रह लिये सुवर्ण से बनाया जाता है । भविष्यपुराणमें लिखा हैं। यह कृष्णवर्ण खर्व प्रथच दृढ़काय और धनुपिके कि उत्तम, मध्यम एवं अधम नियमके अनुसार उक्त व्यवहारमें :चिमहस्त होते हैं। वनमें पशु मारना मूर्ति एक शत, पञ्चाशत् वा पञ्चविंशति निष्क , सुवर्णसे इनका प्रधान कार्य है। कृषि करना यह नहीं जानते बनानेका विधि है। उसके दक्षिण पस्तमें खड़ग, वाम और सामान्य शस्यसे ही अपने को परिप्त मानते हैं। हस्तम मांस पिण्ड, कुण्डलमें अवाकुसुम, परिधानमें इनके मन्दिर या पुरोहित कोई नहीं। यह किसी इच रहवस्त्र पौर गरदेशमें पुष्पमाला तथा ' शह-माला वा प्रस्तरखण्डको पूजते हैं। इनको उनका बड़ा रखते हैं। फिर चतुर्दशौ वा चतुर्थी तिथिको पवित्र भय रहता है। किसी सन्तान, बैल वा कुक्कुटके मरने दिन स्थिर कर यथाविधान पूजापूर्वक दक्षिणा एवं पर यह भयसै देश छोड़ भग जाते हैं। अस्वहारांदिके साथ वह ब्राह्मणको दिया जाता है । उस कालप्रभात (सं.क्लो) कालं कणं प्रभातं यत्र, बहुद्री। दानके फलसे व्याधिजन्य मृत्युभय छूटता है । फिर .१ शरद ऋतु । २ अमिष्टकारक प्रभात, बुरा दिन। दानकारी विपुत्र ऐश्वर्यका अधिकारी और समुदाय कालप्रमेह ( सं० पु. ) पक्षप्रमेह, पेयाबको एक विघ्नन्य हो सकता है। अन्तको यथासमय देह त्याग बीमारी। इसमें कष्पवर्ष मूत्र उतरता है। करनेपर सूर्यकोकभेदपूर्व के परम पद मिलता है। कालमरुद (सं. वि. ) कालेन प्ररुदः परिपक्कः । यथा पुस्थचयके पीछे वा व्यक्ति धार्मिक और राना कास सत्पब, वक्षसे निकलावा हो-जन्म लेता। ४ एवर्ष पुरुष, · काला कालपत्ति (संस्नी ) कारस्य प्रपत्ति प्रारम्भः, भादमी। तत् । खण कासके व्यवहारका भारम्भ Er.