पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५६७

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सूरज । कार्य है। V६८ कालप्रियनाथ-कॉलमान नगरी में चैत्र मासकी शुक्ल प्रतिपत् तिथिं तथा रवि. | कालभक्ष (सं० पु. ) महादेव, शिव । वारको सूर्य उदयके पीछे दिन, मास, वर्ष पति | कानभण्डो (सं० स्त्री० ) श्वेतगुञ्जा, सफेद घुधची। खण्डकी प्रवृत्ति पड़ी है। (सिद्धान्तशिरोमणि।) कालभाण्डिका (सं० स्त्री०) कालभायै कृष्णप्रभायै कालप्रियनाथ-एक देवमूर्ति। वराहपुगणमें सूर्यको अण्डति, काल-भा-प्रडि-गवुन-टाप् इत्वञ्च । मनिष्ठा, एक मूर्तिका नाम 'कालप्रिय' लिखा है । यमुनाके 'मंजीठ। इसका काथ और निर्याम प्रभृति रावण दक्षिणस्य प्रदेश में सूर्य देवकी यह मूर्ति पूजी जाती आते भी प्रथमतः कृष्णावर्ण देखाना है। मभिष्टा देखो है। कालप्रियरूपसे सूर्यदेवका स्थापित किया हुवा कालभृत् (सं० पु.) कालं विभर्ति धारयति, काल-भृ शिवलिङ्ग 'कालप्रियनाथ' कहाता है । भवभूतिके विप । सूर्य, आफताब, समयको धारण करनेवाला 'मालतीमाधवका प्रारम्भ पढनेसे समझ पड़ता है, कि कास्वप्रियनाथके उत्सव उपलक्षमें प्रथम मालतीमाधव कालभैरव (म० ए०) कालस्य भैरवं भयं यस्मात् कान- अभिनीत हुवा मालतीमाधवको दुर्गमार्थबोधिनी भोरू अण् । कायोम्य शिवके अंशजात एक भैरव । मानी टोकामें मानाइने एनके सम्बन्धपर कोई शिवतत्त्व न समझनेवाले ब्रह्माका पञ्चम मस्तक बात नहीं लिखी। किन्तु जगहरने 'मालतीमाधव काटनेको महादेवबाग यह आविर्भूत हुये। काशीम टीका में इन्हें तद्देशका प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध देव | रहनेवाले दुष्कर्म कारीको दण्ड देना हो इनका प्रधान माना है। नहीं कह सकते-पाजकल कालप्रिय- ब्रह्मा भी कन्यागमन का पाप कर कायी नाथ कहां हैं। पहुंचे थे। इसीसे शिवको प्राज्ञा पाकर कालभैरवने कालप्रिया (सं० स्त्री०) अश्वगन्धा, असगन्ध । उनका पञ्चम मस्तक काट डाला। (कागोखछ!) कालबालन (सं० लो०.) कवच, वखतर। भारतके नाना स्थानों में कालभैरवको मूर्ति पूनी कालवलप्रवृत्त (सं० स्त्री०) आधिदैविक रागमात्र, जाती है। वक्त के ज़ोरमे होनेवाली बीमागे । शीत, उष्ण, वात, वर्षा | कालम (अ० पु.-Column ) १ पत्रभाग, कोठा। आदिके कारण लगनेवाले रोग भी दो प्रकारके होते २ सैन्यभाग, पांत। ३ स्तम्भ, खम्भा । हैं-व्यापनकत और अव्यापबतुक्कत । (सुश्रु त २४ १०) | कालमरिच (सं० लो०) कालं मरिचम् । कृष्णवर्ण कालबंजर (हिं० पु० ) पुगनी परतो, बहुत दिन | मरिच, काली मिर्च । जोती-बोयो न जानेवाली जमीन् । कानमल्लिका (सं. स्त्री० ) कणाक, काली तुलसी। वालवाल (सं० पु.) कंकुष्ठ, एक मही। कालमल्ली, कालमल्लिका देखो। कालबालक, कालबाल देखो। कालमसो ( सं० स्त्री०) कालो मसीव, पुवद्भावः । कालबूत (हिं० पु.) १ ना, कचा भराब । इससे मेह काली नदी, एक दरया। राब बनाते हैं। २ काठका एक सांचा। इस पर कालमहिमा (सं. पु.) कालस्य महिमा माहात्म्यम्,- चमार जता सोते हैं। ३ यन्त्र विशेष, एक भौजार। ६ तत्। १ समयका माहात्म्य, वक्त को शान् । इससे रस्सी बटते हैं। यह काठका फंदा. होता है। २ समयको शक्ति, वक्त की ताकत । .इसमें रस्सी डालने के कई छेद रहते हैं। वेदमें डाल कालमाधबीय (सं० पु०) माधवस्य माधवाचार्य स्व अयम्, कर बरसे रसो बराबर उतरती, मोटी या. पतल माधव-छ, कानप्रतिपादको माधवीयः 'माधवलतो -नहीं पड़ती।

था, मध्यपदलो। माधवाचार्य प्रणीत कालमान-

कालवैलिये (हिं. 'पु.) एक जाति। इसे सपेगे भी बोधक एक स्मृतिग्रन्थ । कहते हैं। सांप आदि विषैले जन्तुओंको ड़कर कालमान:(सं• पुंक) कालोमिन्यते जनेरिति शेक, यह खेख दिखलाती है। यही इसको बौविका है। काख-मन-घम्। १ कष्णपत्र बुद्र तुलसीप..