काललोचन-कालविध्वंसन ५५ रुक्ष, मविक्षारक, व्यवायी. और विवन्ध, पानाह, वहां लषण विकता है। पर्वतमें लवएका एक एक विद्यम्भ, इदयवेदमा, शरीरको रूक्षता तथा शूल प्रस्तर कहीं डेढ़ और कहाँ १२ हाय तक प्रशस्त है। नाशक है। २ साचलवण, मौचरनोम । वहां ३५ मन लवण वाट लेने में सिर्फ एक रुपया देना काललोचन (सं० पु०) एक दानव । पड़ता है। गुदाममें जाने मूल्य अधिक लगता है। "प्रष्टयो भरको बाली खममः कालोचनः" (हरिब, २४५०) निकट ही दूसरा पहाड़ भी है। उसमें फिटकरी भरी काललौह (सं० लो०) कालच तत् लौहमति, कर्मघा० । है। वहां फिटकरी साढ़े तीन रुपये मन विकती है। सौक्षा लोह, तोखा लोहा । इसका संस्कृत पर्याय कृप्या कालवाध नगरमें लोहेकी अच्छी चीजें बनती हैं। यस, रुक्म, सी और क्षालायस है। खोड देखो। वहां म्युनिसिपालिटी, डाकबंगला, पौषधालय, सराय कालवड (सं.पु.) क्षुपविशेष, एक झाड़ । लोग और विद्यालय वर्तमान है। इसे कालियाकढ़ा कहते हैं। कालवाचक (स.वि.) कालपबोधक, वक्त वतान- कालवदन (सं० पु०) १ दैत्यविशेष । (वि.)२ वाला। वर्ण सुखयुश, काले मंहवाला। कालवाची (वि.) समय बतानेवाला, जो वक्त की कालवलन (सं० लो०) कलयति उपमुनक्ति विषयम बताता हो। कस्त-णिच्-अच् कालस्य कायस्थ वलनं आवरण वा, कालवान् (सं० वि०) कालः कृष्णवर्ण: प्रस्त्यस्य, काल- ६.सत्। वर्म, कवच, शिरड, वरन तर । मतुप मस्य वः। कृष्णवर्णविशिष्ट, काले रंगवाला। कालवस्ति (सं० पु.) वर्षाके पादिमें वात प्रभृसिके | कान्तवानर (स.पु.) कृष्णमुख वानर, काले मुंह- उपशमनार्थं वस्ति, शुरु बरसातमें सफाईके वास्ते वाला बन्दर लगायी जानेवाली पिचकारी। यह पञ्चदशबिध | कालवार-बम्बई प्रेसिडेन्सीके अन्तर्गत काठियावाड़ होता है। पहले एक नेहवस्ति लगता है। उसके प्रदेशका एक नगर। वह नवनगरसे १४ कोस दक्षिण- पोछे एक निरूहवस्ति लगाते हैं। पुन: सेहवस्ति पूर्व प्रवस्थित है। कालवार नामक रानखविभागका लगाया जाता है। उसके पीछे निरुहवस्ति चलता है। एक महल भी है। कालवार नगर उसोका प्रधान इसी प्रकार बादश वस्ति पन्चतर क्रमसे नगा अन्तमें स्थान है। नगर प्राचौर वेष्टित है। लोकसंख्या ठाई तौन स्नेहवस्ति देते हैं। (चरक) इनारसे कम है। १८०८ ई० को दुर्भिक्षके समय कान्तवाध-पञ्जाव प्रदेशके वन जिलेका एक नगर। वहां कोई ३०० लोग मरे थे। वालाकाठी जातिको यह अचा० ३२.५७५७"७० और देशा० ७१. १५ वसती पास ही है। प्रवादानुसार वाला नामक किसी ३७ पू० पर अवस्थित है। लोकसंख्या छह हज़ारसे गजपूतने वहां जा काठी जातिको किसी रमणीका कुछ अधिक है। वह घट कसे ५२ कोस दूर सिन्धु पाणिग्रहण किया था। उसी परिणयके फलसे वाला. नदीकै कूल पर एक लवणका पर्वत है काठी लोग उत्पन्न हुये। शतवर्षपूर्व कासवार में नगर उसी पर्वतके गानसे संलग्न है। उक्त पर्वत लवण एक प्रकारका दङ्गड़ी नामक कार्पासवस्त्र बनता था। मय है। खण्ड खण्ड काट कर बुकनी पीस लेनेसे देशस्थ राजा उसका बड़ा समादर करते थे। किन्तु ही उत्तम लवण बन जाता है। यहां मारीनामक पानकल वह देख नहीं पड़ता। स्थानमें लवण खोद कर निकाला जाता है। राशि कालवाहन (पु.) महिष, मैंसा। राशि लवण कट जाते भी पर्वत कुछ घटता मातम कालविक्रम (सं० पु.) कालस्य यमस्य समयस्य वा नहीं पड़ता। सिन्धुनदको लना नाना एक शाखा विक्रमः, ६-तत् । १ यमका विक्रम । २ मृत्युका विक्रम, नदी है। उसके . पचिमभागमें एक स्थानपर छह मौतको नाकत । ३ समयका विक्रम, वलको ताकत । खवणखात है। इसको वाई और नमकका गुदाम है। काविध्वंसन (सं• पु०) १ वैद्यक रसविशेष, एक दवा कान्तवाच
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