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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/५८२

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. ५८३.. कालिका-कालिकावत' हरै। वह हिमालय पर्वत पर उपजती और तीन शिरा "चतुम जो अपणों सुधमालाविभूषिताम् । दक्षिणपाणिभ्यां विधवोन्दोवर वधः । रखती है। गन्धयोग्य कार्यमें उस हरीतकी ही प्रशस्त कौन खपरवव क्रमाामिन विमतीम् । है । २१ मासिक वृहि, माहवार सूद । २२ वयोनिरु- खं लिखन्ती' बटामको बिसतो शिरसा खयम्। पक वाजिदन्ताय रेखाविशेष, सम्म वतलानेवाली घोड़े मुण्मालाधरी शीव यौवायामपि सर्वदा। को दांतको प्रगली रेखा। वह वक्र और कृष्ण होती बचमा नागारन्तु विधी लघमाम । है। क्रमानुसार षष्ठ, सप्तम वा अष्टम पदमें उत्त रेखा कपत्रधर्ग कश्या व्याघ्राजिनसमन्विताम् । निकलती है । २३ कर्कटङ्गी, ककड़ासोंगी। २४ बामपाट शवइदिखाप्य दक्षिण पदम् । विन्यस्य सिहपृष्ठे तुमिहामामय स्खयम् । यशतखण्ड, गुरदेका टुकड़ा। २५ कृष्ण जौरक, काना साष्टाममहाधोरगवयुातिमीषा। जौरा । २६ वृश्चिकपत्र वृक्ष, विछुवाका पौधा । २७ चिन्तयोगतारा सतत मक्किमति: मुखप्सुमिः।" एना, इलायची । २८ सौराष्ट्रमृत्तिका । २६ कर्कटौ- भतिमान् और सुखेप्सु लोगों द्वारा शष्णवणे, लसा, ककड़ीको वैन । ३. कालाशाक, एक काली चतुभुजा, दक्षिणा इम्तहयो मध्य जवं इस्तमें खङ्ग सब्जी । ३१ नोलोरक्ष, नीलका पड़। ३२ करोत. एवं अधोहस्तमें पद्म तथा वामहस्तक्षयके मध्य मध्ये विशेष, कानको एक नस । ३३ वाली पुतनी । ३४ दक्ष- हस्तमें कर्बो (दांता) एवं अधाडम्तमें खपरधारिणे कन्चा- ३५ लट, जुल्फ । ३६ प्रश्चिक, विच्छ । ३७ गगनस्पर्शी एक जटायुक्ता, मस्तक तथा कण्ठदेशमै | चारवर्षको कुमारी । ३८ योगिनीविशेष 1 २८ वैशा- मुखमाझा एवं वक्षस्थन्तमें सर्पहारभूषिता, भारसा- नरक्षी एक कन्या । ४० जैनमतानुसार चौथे पतको ‘नयमा, सणवस्त्रपरिहिता, सरितटमें ध्याघ्रचर्मयुक्ता, एक दासी। ४१ नदीविशेष, एक दरया । विरात्रि उप- शवके उदयपर वाम पद एवं सिंहपृष्ठपर दक्षिण पद- वासपूर्वक उक्त नदीमें स्नान करनेमे समुदाय पाप विन्यासपूर्वक अवस्थिता, पासवपानमें पासता, विमष्ट होते हैं,- अट्टहासकारिणी और अमिभयशरा उग्रतारा सतत "कालिकासम्म मात्वा कौशिक्यारण्योर्यक्षः । चिन्ता हैं। विरावीपषितो विद्वान् सर्वपापप्रमुच्यते ।" (मारत, वन, ८४ ) कालिका देवीको पाठ योगिनी होती हैं। उनके कालिकाक्ष (सं० पु०) १ दानवविशेष, एक राक्षस । नाम है,-महाकाली, नद्राणी, उमा, भीमा, घोरा, २ कृष्णचक्षुविशेष, काली पांखवाला। भ्रामरी, महारावि और भरयो । कालिकाके पूजाकाल | कालिकापुराण (सं० को. ) कालिकाया माहात्मादि. उक्त अष्टयोगिनीकी भी पूजा करना पड़ती है। प्रतिपादकं पुराणम, मध्यप० । एक उपपुराण | उसमें (कालिकापुराण) कालिका देवीका माहात्मादि वर्णित है। २ क्वष्णता, स्याही, कालापन । ३ वृश्चिकपत्र, विछुवा. कालिकान (सं. क्लो. ) पर्वतविशेष, एक पहाड़। की पत्ती। क्रमशः देयवस्तु का मूख्य, किश्तबन्दी । कालिकावत (मं० लो०) कालिकायाः प्रीत्यर्थं व्रतम्, '५ धूसरी, ६ नतनमेघ, घटा। मध्यप० । एक व्रत । अमावस्या तिथिको उसका अनु- ७ पटोलशाखा, परवलका डाल । ८ रामावली, ख्यां। ठाम करना पड़ता है। स्त्रियां उसको ग्रहण करती जटामांसी । १० स्त्रीजाति काक, मादा कौश। हैं। भविष्योत्तरपुराणमें उक्त व्रतको उत्पत्ति-कथा

११ शृगाली, मादा गीदड़। १२ मेघणी, वादलको और अनुष्ठान प्रणाली लिखी है। यथा-"किसी

- कसार । १३ स्वर्णदोष, सोनेका एव । १४ दुग्धकोट, समय देवराज इन्द्र सभास्थलमें अमरीगणका नृत्य घका सोडा । १५ मसी, स्याही। १६ काफोशी नामक देखते थे। उसी समय अन्यान्य देव नृत्यदर्श नसे सन्तुष्ट औषधविशेष । १० श्यामापक्षी । १६ मद्य, शराव। हो पुष्पवृष्टि करने लगे! इन्द्रने अपने निकटका एक १८ कु झाटिका, कुहरा । २० हरीतकीविशेष, एक पारिजात पुष्प इठा लिया और सूंघ कर किसी किवरी।